बाढ़ और रोगों से निपटने में सक्षम बीएयू की ये तीन धान किस्में, किसानों को मिलेगी भरपूर उपज

बाढ़ और रोगों से निपटने में सक्षम बीएयू की ये तीन धान किस्में, किसानों को मिलेगी भरपूर उपज

बीएयू सबौर के वैज्ञानिकों ने ऐसी धान की किस्में विकसित की हैं, जो बाढ़ और रोग जैसी बड़ी चुनौतियों को आसानी से झेल सकती हैं. विश्वविद्यालय के कुलपति के अनुसार, इन किस्मों से किसान कम खर्च में ज़्यादा पैदावार लेकर अपने जीवन स्तर को बेहतर बना सकते हैं.

paddy new varietypaddy new variety
अंक‍ित कुमार स‍िंह
  • Patna,
  • Sep 11, 2025,
  • Updated Sep 11, 2025, 1:29 PM IST

मॉनसून सीजन आते ही बिहार में बड़े पैमाने पर धान की खेती शुरू हो जाती है. लेकिन धान की खेती के साथ बाढ़ का खतरा भी बढ़ जाता है. राज्य के उत्तरी बिहार सहित दक्षिण बिहार के कई जिलों में हर साल बाढ़ देखने को मिलती है, और इसके चपेट में आने से धान की फसल को काफी नुकसान होता है. हालाँकि आधुनिकता के इस दौर में, जहां विज्ञान हर रोज नए प्रयोगों के जरिए नई खोजें कर रहा है, वहीं कृषि के क्षेत्र में भी काफी प्रगति हुई है.  इसके तहत धान की कई ऐसी किस्में विकसित की गई हैं जो बाढ़ के पानी को भी आसानी से सहन कर लेती हैं. इनमें बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर (भागलपुर) की ओर से विकसित सबौर श्री सब-1, सबौर कतरनी धान-1, और सबौर विभूति धान किस्में बाढ़ और रोगों की चुनौती में सफल साबित हो रही हैं.

बाढ़ और जलवायु परिवर्तन के दौर में ये किस्में सबसे बेहतर

बीते दिनों बीएयू के खेतों का फील्ड निरीक्षण विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. डी. आर. सिंह ने किया. उन्होंने धान की नई किस्मों—सबौर श्री सब-1, सबौर कतरनी धान-1 और सबौर विभूति धान—के प्रदर्शन का जायजा लिया. निरीक्षण के दौरान कुलपति ने बताया कि बाढ़ और रोगों की बढ़ती घटनाएं दर्शाती हैं कि ऐसी किस्में समय की आवश्यकता हैं. बीएयू की ये धान किस्में किसानों को जलवायु संकट और रोगों के दबाव से सुरक्षा प्रदान कर रही हैं. विश्वविद्यालय के अनुसंधान निदेशक डॉ. ए. के. सिंह ने कहा कि हाल की आपदाओं में इन किस्मों की सफलता यह प्रमाणित करती है कि ये किस्में बिहार के किसानों के लिए वरदान साबित हो रही हैं.

जलमग्न रहने के बाद भी ये किस्में देती हैं अच्छा उत्पादन

विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा मार्कर-असिस्टेड ब्रिडिंग के माध्यम से विकसित धान की किस्म सबौर श्री सब-1 (BRR0266/IET32122) 14 दिनों तक जलमग्न रहने के बावजूद 30–35 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की उपज दे चुकी है, जबकि सामान्य परिस्थितियों में इसकी उपज 50–55 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक होती है. यह किस्म 140–145 दिनों में तैयार हो जाती है और बिहार के बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों के लिए आदर्श मानी जाती है.

वहीं, सबौर विभूति धान की फसल इस साल बाढ़ में 7–8 दिन जलमग्न रहने के बावजूद केवल 5–10% तक क्षति हुई. इसमें बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट (BLB) के खिलाफ तीन प्रतिरोधी जीन मौजूद हैं, साथ ही यह ब्लास्ट रोग को भी सहन कर सकती है. यह अर्ध-बौनी किस्म 135–140 दिनों में तैयार होती है और औसतन 55–60 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की उपज देती है. अनुकूल परिस्थितियों में इसकी उपज 85 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक पहुंच सकती है.

जीआई टैग वाली कतरनी को टक्कर देती है सबौर कतरनी धान-1

विश्वविद्यालय द्वारा बताया गया कि भागलपुर की जीआई टैग वाली कतरनी अपने सुगंध और गुणवत्ता के लिए प्रसिद्ध है. कुछ इसी तरह के गुण सबौर कतरनी धान-1 में भी पाए जाते हैं. यह उन्नत किस्म केवल 110–115 सेमी ऊंची होती है, जिससे गिरने की संभावना कम होती है. इसकी उपज 42–45 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है और यह 135–140 दिनों में तैयार हो जाती है. बिहार में  हर साल लगभग 30 लाख हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में धान की खेती की जाती है, लेकिन बाढ़, जलमग्नता और BLB जैसी बीमारियों के कारण किसानों की उपज और आय पर बुरा असर पड़ता है. यदि किसान इन किस्मों की खेती करें तो उन्हें कम नुकसान हो सकता है.

MORE NEWS

Read more!