थाई मांगुर मछली को 1998 में सबसे पहले केरल में प्रतिबंधित किया गया. उसके बाद वर्ष 2000 में देश भर में इसकी बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया गया. मांगुर मछली के पालन और विक्रय पर प्रतिबंध लगाने के पीछे सबसे बड़ी वजह इसका मांसाहारी होना है. वहीं इसका उपयोग करने वालों में कई बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है. थाईलैंड की प्रजाति होने के कारण इसे थाई मांगुर भी कहा जाता है. चिकित्सकों की मानें तो मांगुर मछली खाने से कैंसर का खतरा रहता है. प्रतिबंधित होने के बावजूद भी इस मछली को बाजारों में खुले तौर पर बेचा जा रहा है. राजधानी लखनऊ की सभी मंडियों में मांगुर मछली देखी जा सकती है. जबकि राज्य का मत्स्य विभाग इस मछली के उत्पादन और बिक्री पर रोक लगाने में पूरी तरीके से विफल साबित हो रहा है.
मांगुर मछली मूल रूप से थाईलैंड में पाई जाती रही है. इस मछली की ग्रोथ काफी तेजी से होता है. मात्र 3 से 4 महीने में ही मांगुर मछली बाजार में बेचने लायक हो जाती है. यही वजह है कि मछली पालन से जुड़े किसान इसके पालन को प्राथमिकता देते हैं. लेकिन मांगुर मछली का पालन इस पर प्रतिबंध लगने के बाद भी नहीं रुका है. उत्तर प्रदेश के शामली जनपद में बड़े पैमाने पर प्रतिबंधित थाई मांगुर मछली का पालन किया जा रहा है. मुनाफे की लालच में मछली पालन करने वाले किसान बेखौफ होकर मांगुर मछली का पालन कर रहे हैं. जबकि प्रशासन का इस पर कोई ध्यान ध्यान नहीं है. इसके अलावा लखनऊ के आसपास के जनपदों में भी मांगुर मछली का पालन जारी है. इतना ही नहीं, लखनऊ की मछली मंडियों में भी खुले तौर पर प्रतिबंधित मांगुर मछली देखी जा सकती है. उत्तर प्रदेश मत्स्य विभाग के संयुक्त निदेशक नूरुर सबूर रहमानी ने बताया की मांगुर मछली को लेकर लगातार विभाग द्वारा अभियान चलाया जा रहा है. उत्तर प्रदेश में इसका पालन नहीं हो रहा है, लेकिन दूसरे प्रदेशों से इसकी तस्करी की जा रही है. फिलहाल देसी मांगुर के ब्रीड को तैयार कर लिया गया है. जल्द ही इसकी हैचरीज से बच्चे मिल जाएंगे जिसका बड़े पैमाने पर पालन हो सकेगा. फिर प्रतिबंधित मांगुर मछली अपने आप बाजार से गायब हो जाएगी.
वर्ष 2000 में पूरे भारत में थाई मांगुर मछली के पालन और बिक्री पर रोक लगा दी गई. इस मछली के सेवन से कैंसर जैसी घातक बीमारियों का खतरा रहता है. यह मछली पूरी तरह से मांसाहारी होती है और इसके मांस में 80 फ़ीसदी तक लेड और आयरन की मात्रा होती है. इसलिए इसके आहार से शरीर में आर्सेनिक, कैडमियम, क्रोमियम, मरकरी, लेड की मात्रा बढ़ जाती है, जो स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक है. कैंसर संबंधी बीमारियों के साथ-साथ यूरोलॉजिकल, लीवर की समस्या, पेट एवं प्रजनन संबंधी बीमारियों के लिए भी यह घातक है.
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देसी मांगुर 2 महीनों में लगभग 100 से 150 ग्राम की हो जाती है. मछलियों की अन्य प्रजातियों की तुलना में मांगुर के बाजार में अच्छे दाम भी मिल जाते हैं. इसे यदि फुटकर भाव में बेचा जाए तो यह 500 से 600 रुपये किलो बिकती है. एक हेक्टेयर तालाब से लगभग 2 से 3 टन मांगुर मछलियों का उत्पादन होता है. जिससे मछली पालक 8 लाख 30 हजार रुपये का शुद्ध मुनाफा पा सकते हैं. वहीं इसमें खर्च लगभग 5 लाख 45 हजार रुपये का आता है.
थाई मांगुर स्वास्थ्य के लिए ही नहीं बल्कि पर्यावरण के लिए भी खतरा बनती जा रही है. इस मछली के पालन करने की वजह से तालाब में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है जिसके कारण दूसरी मछलियां मर जाती हैं. इसी वजह से यह छोटी मछलियों समेत कीड़े-मकोड़ों को भी खा जाती है जिसके चलते इसकी वृद्धि तेजी से होती है.
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