आमतौर पर गधे की पहचान बोझा ढोने वाले पशु के रूप में होती है. कई बार दो इंसान एक-दूसरे पर कमेंट करते हुए गधा बोल देते हैं. जिसका अर्थ यह निकाला जाता है कि सामने वाला कम अक्ल है. लेकिन यह बात बहुत ही कम लोग जानते होंगे कि गधी का दूध कई गुणों से भरपूर होता है और गाय-भैंस, बकरी के दूध के मुकाबले काफी महंगा होता है. अगर हलारी गधी की बात करें तो इनका दूध मुंह मांगे दाम पर बिकता है. हालांकि देश में इस प्रजाति की संख्या इतनी कम है कि इनका दूध तलाशना कस्तूरी तलाशने के जैसा माना जाता है. कॉस्मेटिक और दवाई बनाने में भी इसका इस्तेमाल किया जाता है.
अब स्थिति यह है कि अश्व अनुसंधान केन्द्र, हरियाणा ने गधी के दूध को खाने-पीने में इस्तेमाल करने की अनुमति मांगी है. इसके लिए संस्थान ने भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) को एक पत्र भी लिखा है. संस्थान का मानना है कि दूध का इस्तेमाल होने से गधी का महत्व बढ़ जाएगा और उन्हें बचाया भी जा सकेगा.
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जानकारों की मानें तो सभी ब्रीड की गधी का दूध महंगा बिकता है और दवाईयों के साथ-साथ कॉस्मेटिक आइटम बनाने के काम आता है. लेकिन हलारी गधी का दूध सबसे महंगा बिकता है. वैसे तो इसके 15 सौ से दो हजार रुपये लीटर तक बिकने की चर्चा है, लेकिन सही मायनों में हलारी गधी के दूध की कीमत उसकी उपलब्धता के आधार पर तय होती है.
एक सेहतमंद हलारी गधी एक दिन में 800 ग्राम से लेकर एक लीटर तक दूध देती है. जानकारों की मानें तो हलारी गधी के दूध के रेट तय करने से ज्यादा मुश्किल काम जरूरत के वक्त हलारी का पालन करने वाले मालधारी समुदाय को तलाश करना होता है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक देश में हलारी गधी की संख्या करीब 440 ही बची है.
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अश्व अनुसंधान केन्द्र के निदेशक टीके भट्टाचार्य ने किसान तक को बताया कि बहुत सारे ऐसे लोग होते हैं जिन्हें गाय-भैंस के दूध से एलर्जी होती है. दूध में कुछ ऐसे तत्व होते हैं जिनसे पीने वालों को कुछ अलग-अलग तरह की परेशानी होने लगती है. लेकिन गधी का दूध गाय-भैंस के दूध से बहुत ही बेहतर है.
इतना ही नहीं छोटे बच्चों के लिए तो यह मां के दूध जैसा है. गधी के दूध में वसा की मात्रा कम होती है. इसमे वसा की मात्रा सिर्फ एक फीसद तक ही होती है. जबकि गाय-भैंस और मां के दूध में वसा की मात्रा तीन से छह फीसद तक होती है. अगर दूध के उत्पादन की बात करें तो दिनभर में एक गधी अधिकतम डेढ़ लीटर तक दूध देती है.