महानंदा की मछलियों के DNA से होगा वार, नैनो पावर से परजीवी होंगे खाक

महानंदा की मछलियों के DNA से होगा वार, नैनो पावर से परजीवी होंगे खाक

मछली में जूं और लर्निया (एंकरवर्म) जैसे परजीवी के खात्मा को लेकर मात्स्यिकी महाविद्यालय नैनो पार्टिकल पर काम कर रहा है.  बता दें कि महाविद्यालय द्वारा महानंदा नदी में पाए जाने वाले सभी स्वदेशी मछलियों के डीएनए बारकोड तैयार कर रही है.

महानंदा की मछलियांमहानंदा की मछलियां
अंक‍ित कुमार स‍िंह
  • Patna,
  • May 28, 2025,
  • Updated May 28, 2025, 4:52 PM IST

मछलियों में परजीवी रोगों का खतरा सबसे अधिक रहता है. इन परजीवियों के संक्रमण से जहां काफी संख्या में मछलियां मरती हैं, वहीं, मछली पालकों को इसके दवा में काफी खर्च आने कि वजह से आर्थिक नुकसान का सामना करना पड़ता है. परजीवी संक्रमणों में सबसे अधिक बाह्य परजीवियों के तौर पर आर्गुलस (मछली जूं) और लर्निया (एंकरवर्म) जैसे परजीवी का खतरा अधिक देखने को मिलता है. ये मछली के शरीर की सतह पर चिपक जाते हैं फिर त्वचा को नुकसान पहुंचाते हैं, जिसके बाद मछलियों में अन्य सूक्ष्मजीवों के संक्रमण का खतरा भी बढ़ जाता है. लेकिन अब इन समस्याओं का हल आसानी से हो सके. इसके लिए बिहार सरकार की ओर से पोषित किशनगंज स्थित एकमात्र मात्स्यिकी महाविद्यालय नैनो पार्टिकल बनाने के काम में लगा हुआ है. इन नैनो पार्टिकल यौगिक का उपयोग करते हुए मछलियों के बाह्य परजीवियों जैसे आर्गुलस और लर्निया के संक्रमण को मुक्त करना है.

मछलियों का डीएनए बारकोड हो रहा तैयार

बता दें कि महाविद्यालय द्वारा महानंदा नदी में पाए जाने वाले सभी स्वदेशी मछलियों के डीएनए बारकोड तैयार कर रही है. इस नदी में मिलने वाली सभी मछलियों की जानकारी कुछ ही समय में आसानी से लोगों को मिल जाए. इसके साथ ही मात्स्यिकी महाविद्यालय द्वारा किए गए शोध में कटिहार के पास गंगा नदी में डॉल्फिन की भी उपस्थिति दर्ज की गई है, जिसको लेकर मात्स्यिकी महाविद्यालय, किशनगंज के डीन डॉ. वीपी सैनी और सहायक प्राध्यापक भारतेंदु विमल ने किसान तक से बातचीत में जानकारी दी.

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इस प्रयोग से मछली पालकों को मिलेगा मदद

मात्स्यिकी महाविद्यालय, किशनगंज के डीन डॉ. वीपी सैनी ने बताया कि महाविद्यालय में करीब 11 शोध परियोजनाओं पर काम चल रहा है, जिसमें यह देखा गया है कि पानी के तापमान कम या ज्यादा होने पर परजीवी रोगों का खतरा सबसे अधिक रहता है. जिसमें मछली जूं (आर्गुलस) का सबसे अधिक प्रभाव देखने को मिलता है. वहीं, बाहरी और आंतरिक परजीवी का प्रभाव कुछ बूंदों से खत्म हो जाए, इसको लेकर नैनो पार्टिकल पर काम किया जा रहा है, जिसके तहत हर्बल्स के कुछ नैनो पार्टिकल को तैयार कर पानी में डालने से इन परजीवियों के इन्फेक्शन को कम किया जा सकता है, जिसको लेकर काम जारी है. इस शोध को आने वाले सात महीनों में पूर्ण होने की उम्मीद है. वहीं, महाविद्यालय के सहायक प्राध्यापक भारतेंदु विमल कहते हैं कि इस तरह का प्रयोग मछली पालकों को काफी मदद मिलेगा.

महानंदा नदी में मिलीं इतने प्रकार की मछलियां

डीन डॉ. वीपी सैनी के अनुसार, महाविद्यालय की ओर से पिछले तीन वर्षों तक महानंदा नदी में पाई जाने वाली मछलियों पर अनुसंधान किया गया. यह अध्ययन नदी के उद्गम स्थल पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग जिले के पर्वतीय क्षेत्रों से लेकर मालदा के निकट ढुलियान (Dhulian) तक किया गया. इस दौरान बिहार के किशनगंज और कटिहार जिलों से होकर बहने वाले क्षेत्र भी अध्ययन में शामिल थे. इस शोध में कुल 57 प्रकार की देसी मछलियों की पहचान की गई. इनमें से कई मछलियां रंग-बिरंगी 'कलर फिश' की श्रेणी में आती हैं, जिन्हें बेहतर ढंग से ब्रीडिंग (प्रजनन) करके विदेशों में निर्यात किया जा सकता है. इसके अतिरिक्त महानंदा नदी में पाई गई इन मछलियों का डीएनए बारकोड तैयार किया गया है, जिससे इनकी पहचान कुछ ही समय में की जा सकती है और लोगों को मछलियों की जानकारी आसानी से उपलब्ध हो सकेगी.

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