बाजार में हम चिकन टंगडी, तंदूरी चिकन, चिकन फ्राई, लेग पीस, लॉलीपॉप समेत चिकन की और भी न जाने कितनी वैराइटी खाते हैं. ब्रॉयलर नस्ल के मुर्गों से यह सभी तरह की चीजें बनाई जाती हैं. लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि हर रोज टनों के हिसाब से चिकन की डिमांड पूरी करने वाला लाखों ब्रॉयलर मुर्गा कहां से आता है और कैसे तैयार किया जाता है. आपको जानकर हैरानी होगी कि गाजीपुर की मुर्गा मंडी दिल्ली-एनसीआर में चिकन की डिमांड पूरी करने के लिए हर रोज 5 लाख ब्रॉयलर मुर्गों की सप्लाई करती है.
एक मोटे अनुमान के मुताबिक देश को हर साल करीब 3.8 मिलियन टन चिकन की जरूरत होती है. जिसके लिए 300 करोड़ ब्रॉयलर मुर्गे तैयार किए जाते हैं. एक रिपोर्ट की मानें तो हर साल चिकन कारोबार में 10 फीसद तक की बढ़ोतरी हो रही है. भारत से दूसरे देशों को भी चिकन एक्सहपोर्ट किया जाता है.
पोल्ट्री एक्सपर्ट पवन की मानें तो ब्रॉयलर के लिए भी अंडे देने वाली मुर्गियों की तरह से पोल्ट्री फार्म तैयार किया जाता है. ब्रॉयलर के चूजे बेचने के लिए देश में 4 बड़ी कंपनियां हैं. यह एक दिन का चूजा बेचती हैं. बड़ी-बड़ी हाइटेक मशीनों की मदद से अंडों से चूजे निकाले जाते हैं. चूजे के दाम में बाजार के हिसाब से उतार-चढ़ाव होता रहता है. लेकिन आमतौर पर एक चूजा 45 रुपये तक का मिलता है. हालांकि अभी ब्रॉयलर का बाजार बहुत सस्ता है तो इसलिए चूजे भी 30 से 35 रुपये के मिल रहे हैं.
पोल्ट्री फार्म संचालक मनीष शर्मा का कहना है कि अंडे देने वाली मुर्गी को लेअर बर्ड और चिकन के लिए तैयार होने वाले मुर्गे को ब्रॉयलर कहा जाता है. दोनों के लिए दाना अलग ही होता है. यह दाना बाजार में रेडीमेड मिलता है. अंडे देने वाली मुर्गी के दाने में बाजरे की मात्रा कम होती है. जबकि चावल खिलाने की मनाही होती है. वहीं ब्रॉयलर को बाजरा भी खूब दिया जाता है और चावल भी खिलाया जाता है.
यूपी पोल्ट्री एसोसिएशन के अध्यक्ष नवाब अली का कहना है कि ब्रॉयलर मुर्गा दाना खाकर 30 से 35 दिन में सवा से डेढ़ किलो तक का हो जाता है. जबकि तंदूरी चिकन के मतलब का ब्रॉयलर 24 से 25 दिन में ही तैयार हो जाता है. तंदूरी के लिए 900 ग्राम से 1250 ग्राम तक का ब्रॉयलर मुर्गा चाहिए होता है. बहुत सारे पोल्ट्री फार्म वाले 3 से 3.5 किलो तक का मुर्गा तैयार कर लेते हैं. ऐसे मुर्गों की भी खूब डिमांड होती हैं. बोनलेस में ऐसा चिकन खूब सप्लाई होता है.