असंगठित होने की वजह से आज भी बकरी पालन मीट की वजह से ही किया जाता है. बकरी का दूध बहुत फायदेमंद होता है, लेकिन दूध की न तो आसान उपलब्धता है और न ही दूध के बकरी पालकों को सही दाम मिल पाते हैं. लेकिन धीरे ही सही अब दूध कारोबार में बढ़ोतरी होने लगी है. ऑनलाइन बाजार ने बकरी के दूध की डिमांड और रेट दोनों ही बढ़ा दिए हैं. डेंगू की बीमारी में बकरी का दूध दवाई की तरह से काम करता है.
गोट एक्सपर्ट मानते हैं कि और भी कई ऐसी बड़ी बीमारियां हैं जिसमे बकरी का दूध दवाई का काम करता है. ये बात आम होने के बाद से बकरी पालन करने वालों की संख्या बढ़ने लगी है. यही वजह है कि बकरी पालन को अब दो तरीके से देखा जाता है. हालांकि बकरियों की एक खास नस्ल ऐसी भी है जिसे पालकर दो नहीं तीन तरह से मुनाफा कमाया जा सकता है.
सीआईआरजी के सीनियर साइंटिस्ट डॉ. गोपाल दास ने किसान तक को बताया कि जैसा हम जानते हैं कि बकरी की पहचान उसके दूध, मीट और बच्चे देने की क्षमता से आंकी जाती है. जखराना एक ऐसी नस्ल है जिसके बकरे और बकरी 25 से 30 किलो वजन तक पर आ जाते हैं. इसके अलावा इस नस्ल की बकरी रोजाना एक से डेढ़ लीटर तक दूध देती है. सीआईआरजी खुद जखराना के दूध को रिकॉर्ड कर चुका है. एक बकरी ने 90 दिन में 172 लीटर दूध दिया था. यह नस्ल एक यील्ड में पांच महीने तक दूध देती है. अब रहा सवाल बच्चे देने की क्षमता के बारे में तो 60 फीसद जखराना बकरी दो या तीन बच्चे तक देती हैं. किसी और दूसरी नस्ल की बकरी में यह तीनों खूबी एक साथ नहीं मिलेंगी.
वजन के मामले में भी बकरे और बकरियों को तीन कैटेगिरी में रखा जाता है. जैसे बड़े आकार वाली, मध्यम आकार और छोटे आकार की. डॉ. गोपाल दास बताते हैं कि बड़े आकार के बकरे और बकरी का वजन 25 से 30 किलो होता है. इस कैटेगिरी में जखराना, बीटल, जमनापरी और सोरती नस्ल की बकरी आती है. मध्य म आकार के बकरे-बकरी का वजन 20 से 24 किलो होता है और इसमे बरबरी नस्ल की बकरी शामिल है. तीसरी होती है छोटे आकार की बकरी जैसे ब्लैक बंगाल और आसाम हिल. इनका वजन 14 से 15 किलो तक ही होता है.
ये भी पढ़ें- Meat Production: देश की बड़ी यूनिवर्सिटी ने बताया, क्यों बढ़ रहा मीट का उत्पादन और डिमांड
ये भी पढ़ें- Dairy: विदु ने 50 गाय पालकर दूध से कमाए 49 लाख और गोबर से 44 लाख, जानें कैसे