Green Fodder Issue भेड़-बकरी हो या गाय-भैंस सभी के लिए हरा चारा एक बड़ी परेशानी बनता जा रहा है. दूध की सबसे ज्यादा लागत सिर्फ हरे चारे की वजह से ही बढ़ती है. दूध से बने प्रोडक्ट भी सिर्फ इसी वजह से महंगे हो रहे हैं. बीते से तीन से चार साल में ये परेशानी और ज्यादा बड़ी हो गई है. इस परेशानी को देखते हुए ही सरकार हरे चारे की कमी से निपटने के लिए लगातार काम कर रही है. चारे से जुड़ी करोड़ों रुपये की कई सरकारी योजनाएं लागू की गई हैं.
लेकिन एक्सपर्ट का कहना है कि योजनाओं के जमीन पर आने और फिर उनका फायदा पशुपालक तक पहुंचने में वक्त लगता है. फौरी तौर पर पशुपालकों की इसी परेशानी को दूर करने के लिए भारतीय चरागाह एवं चारा अनुसंधान संस्थान (IGFRI), झांसी ने इसके लिए एक बहुत अच्छा प्लान तैयार किया है. संस्थान की तकनीक के मुताबिक अब फलों और फूलों के बाग और चारागाह में भी पशुओं के लिए चारा उगाया जा सकता है.
हरे चारे के मामले में यूपी की बात करें तो यहां की बंजर भूमि पर खेती मिट्टी और नमी की कमी के चलते मुश्किल है. लेकिन वैकल्पिक भूमि उपयोग (ALU) प्रणाली के चलते चारा उगाया जा सकता है. जैसे सिल्वी-चारागाह (पेड़+चारागाह), हॉर्टी-चारागाह (फलदार पेड़+चारागाह) और कृषि-बागवानी-सिल्वी चारागाह (फसल+फलदार पेड़+MPTS + चारागाह). ALU प्रणाली से उगने वाली कई बहुउद्देशीय पेड़ों की प्रजातियां (MPTS) या झाड़ियां लकड़ी के अलावा पशुओं के चारे के लिए इस्तेमाल होने वाले पत्तेदार चारे के रूप में बहुत उपयोगी हैं. ये गतिविधियां घरेलू पशुधन उत्पादन में महत्वपूर्ण योगदान देती हैं, जो बदले में दूध और मीट उत्पादन को बढ़ाती हैं. MPTS पेड़ों के साथ चरने वाले पशुओं को न केवल पौष्टिक चारा मिलता है बल्कि चमकदार और गर्म धूप वाले दिनों में जानवरों को आराम करने की जगह भी मिलती है. उत्तर प्रदेश में कृषि वानिकी में उगाई जाने वाली पेड़ों की प्रजातियों का इस्तेमाल खासतौर पर छोटे जुगाली करने वाले पशुओं और बड़े जुगाली करने वाले पशुओं के चारे के रूप में हो रहा है.
मौजूदा बागों में चारा फसलों को शुरू करने के लिए कई अवसर हैं. बागवानी प्रणाली चारागाह (घास और फलियां) फलों के पेड़ों को एकीकृत करती हैं ताकि छोटे रूप में बंटी जमीन का इस्तेमाल करके फल, चारा और ईंधन की लकड़ी की मांग और आपूर्ति के बीच के अंतर को पूरा किया जा सके. ज्यादा चारा उत्पादन के लिए आंवला और अमरूद आधारित बागवानी प्रणाली विकसित की गई है. इस प्रणाली में आजमाई गई घासों में सेंचरस सिलिएरिस, स्टाइलोसेंथेस सीब्राना और स्टाइलोसेंथेस हैमाटा शामिल हैं.
हॉर्टीपास्टर मैंगो/अनोला/अमरूद/बेल+गिनी घास/बारहमासी ज्वार.
मैंगो/अनोला/अमरूद+सेंचरस सिलियारिस, स्टाइलोसेंथेस.
सीब्राना और स्टाइलोसेंथेस हमाटा.
सिल्वीपास्टर/घास का मैदान ल्यूकेना ल्यूकोसेफाला/मेलिया एज़ादिराच + सेंचरस सिलियारिस, स्टाइलोसेंथेस सीब्राना और स्टाइलोसेंथेस हमाटा.
ल्यूकेना ल्यूकोसेफाला+एनबी हाइब्रिड.
ल्यूकेना ल्यूकोसेफाला+गिनी घास.
IGFRI में विकसित बागवानी-चारागाह प्रणालियों में वर्षा आधारित क्षेत्रों की बंजर भूमि पर 6.5-12 टन प्रति हेक्टेयर चारे की अच्छी उत्पादन क्षमता है. बागवानी-चारागाह प्रणालियां मिट्टी के नुकसान को रोकने और नमी को संरक्षित करने के साथ-साथ चारा, फल और ईंधन की लकड़ी और पारिस्थितिकी तंत्र संरक्षण के उद्देश्यों को पूरा कर सकती हैं. लंबे समय तक रोटेशन के बाद यह मिट्टी की उर्वरता और सूक्ष्मजीव गतिविधियों में सुधार करती हैं.
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