पशुधन के मामले में भले ही देश का पहला स्थान है, लेकिन बात उत्पादन की करें तो प्रति पशु उत्पादकता के मामले में हम बहुत पीछे हैं. दूसरे देशों की तुलना में उत्पादकता के इस गैप को पाटने के लिए नए-नए तरीके खोजे जा हो रहे हैं, लेकिन इनके साथ पशुपालकों को भी सचेत होना पड़ेगा. इसमें मौसम के अनुसार पशुओं की देखभाल करने पड़ेगी, तब जाकर ही मौसम के चलते उत्पादन में आने वाली गिरावट को रोका जा सकेगा. आज डेयरी पशुओं में संकर नस्लों की संख्या बढ़ती जा रही है, जिन पर मौसम की मार अधिक पड़ती है. इन पशुओं की मौसम के अनुसार देखरेख की जरूरत पड़ती है, जिससे कि इनके उत्पादन में गिरावट ना आए और किसानों को लगातार उत्पादन मिलता रहे.
गर्मियों में पशुओं में श्वसन क्रिया बढ़ जाती है, पशु सूखा चारा खाना कम कर देते हैं, जिसका असर दुधारू पशुओं के उत्पादन पर पड़ता है. इसके अलवा इस मौसम में भैसों और संकर गायों की प्रजनन क्षमता मंद हो जाती है. इसका असर पशुपालकों की आर्थिक स्थिति पर पड़ता है. पशुओं में अगर ऐसी स्थिति दिखे तो पशुपालक को तुरंत सावधान हो जाना चाहिए और तबीयत न बिगड़े, इसके लिए सभी जरूरी उपाज किए जाने चाहिए.
गर्मी में दुधारू पशुओं का आवास साफ-सुथरा और हवादार होना चाहिए, जिसका फर्श पक्का भी हो सकता है, लेकिन फिसलने वाला नहीं होना चाहिए. पशु का आवास ऐसा हो कि गर्मियों में अत्यधिक गरम ना हो. इसके लिए एस्बेस्टस शीट काम में लें. गर्मियों में उसकी छत पर 4-6 इंच मोटी घास-फूस की परत या छप्पर डाल दे, इससे पशुशाला के अंदर का तापमान सही बना रहता है. पशुशाला की छत की ऊंचाई से कम 10 फुट ऊंची होनी चाहिए.
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दुधारू पशुओं के लिए बाड़े में 3.5 से 4.0 वर्ग मीटर स्थान ढका हुआ और 7 से 8 वर्ग मीटर खुला स्थान प्रति पशु उपलब्ध होना चाहिए. संभव हो तो तालाब में भैसों को नहलाएं. पशुओं को आहार में हरा चारा अधिक से अधिक मात्रा में दें, पशुओं को गर्मी से बचाने के लिए पशुशाला में पंखे लगवाएं, दरवाजों और खिड़कियों पर खस और टाट लगाकर उन पर पानी का छिड़काव करें. इससे पशुशाला का तापमान सामान्य बना रहता है.
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