Goat Farming: इस राज्य में बहुत है बकरे के मीट की डिमांड, CIRG ने बनाया बकरी पालन का ये प्लान, पढ़ें डिटेल 

Goat Farming: इस राज्य में बहुत है बकरे के मीट की डिमांड, CIRG ने बनाया बकरी पालन का ये प्लान, पढ़ें डिटेल 

अरुणाचल प्रदेश में में बकरे के मीट की डिमांड बहुत है. इसी के देखते हुए वहां बकरी पालन को बढ़ावा देने के लिए योजनाएं शुरू की जा रही हैं. क्षेत्र स्तरीय प्रदर्शन (FLD) नाम से भी योजना शुरू की गई है. इस योजना में असम की पहाड़ी बकरी नस्ल की 25 मादा और 5 बकरे शामिल हैं. 

बकरी पालन (सांकेतिक तस्वीर)बकरी पालन (सांकेतिक तस्वीर)
नासि‍र हुसैन
  • NEW DELHI,
  • Dec 02, 2024,
  • Updated Dec 02, 2024, 4:03 PM IST

देश ही नहीं विदेशों में भी बकरे के मीट की डिमांड बढ़ रही है. केन्द्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान (CIRG), मथुरा के डॉयरेक्टर का कहना है कि खासतौर पर अरुणाचल प्रदेश में बकरे के मीट की बहुत डिमांड है. अगर यहां के किसान बकरी पालन से जुड़ें तो अच्छी इनकम कर सकते हैं. इसी के चलते डॉयरेक्टर, सीआईआरजी ने किसानों को अरुणाचल प्रदेश में बकरी पालन की संभावनाओं के बारे में हर छोटी-बड़ी जानकारी दी. उन्होंने किसानों को बकरियों के टीकाकरण चार्ट और सामान्य बीमारियों की रोकथाम के बारे में भी जानकारी दी. कैसे प्योर ब्रीड के बकरे-बकरियों का चयन किया जाए और हर साल प्रजनन कराया जाए. दो साल में कम से कम तीन बार प्रजनन या छह बच्चे तक लिए जाएं. अरुणाचल के किसानों ने भी बकरी पालन में खासी रूचि दिखाई. 

इसी को देखते हुए किसानों को एक दिन की ट्रेनिंग भी दी गई. 100 किसानों ने इस ट्रेनिंग प्रोग्राम में हिस्सा लिया. किसानों को बकरी पालन में ज्यादा से ज्यादा मदद करने के लिए क्षेत्र स्तरीय प्रदर्शन (FLD) योजना भी शुरू की गई है. राष्ट्रीय याक अनुसंधान केंद्र, दिरांग, अरुणाचल प्रदेश इस योजना में सीआईआरजी को मदद करेगा. वहीं संस्थान के निदेशक डॉ. मिहिर सरकार ने क्षेत्र में मल्टीप्लायर झुंडों की स्थापना के लिए एफएलडी को मजबूत करने का आश्वासन भी दिया.

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ऐसे बढ़ाया जाएगा बकरे का वजन 

सीआईआरजी के सीनियर साइंटिस्ट एसपी सिंह ने बताया कि सीआईआरजी के दैहिकी जनन और प्रबंधन विभाग में एचओडी एसडी खर्चे के निर्देशन में हम पिछले डेढ़ साल से जीन एडिटिंग पर रिसर्च पर काम कर रहे हैं. इसके तहत बकरे-बकरी की किसी एक नस्ल पर काम चल रहा है. हम अपनी रिसर्च में उस बकरे और बकरियों के जीन को एडिट कर रहे हैं. जो उस नस्ल के पुराने जीन हैं उन्हें नए जीन से बदला जा रहा है. यानि की उनके पुराने जीन जिससे उनका वजन उनकी नस्ल के हिसाब से ज्यादा से ज्यादा 25 किलो हो सकता है तो उन जीन को नए जीन से बदल दिया जाएगा.

नए जीन को बकरी में ट्रांसप्लांट कर दिया जाएगा. इसके बाद बकरी जो बच्चा देगी तो नया जीन उस बच्चे में आ जाएगा. इसके बाद बच्चा नए जीन के साथ ही आगे बढ़ेगा. जीन एडिटिंग की इस रिसर्च में हमारा दावा है कि अगर 25 किलो वाले बकरे का वजन 50 किलो नहीं होगा तो 40 किलो से कम भी नहीं होगा. इस रिसर्च का प्रयोग अब बकरियों पर शुरू हो गया है. नए जीन के साथ कुछ बकरियों को गाभिन (गर्भवती) किया गया है.

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वजन बढ़ने के बाद मीट का होगा परीक्षण 

साइंटिस्ट एसपी सिंह ने बताया की जैसे ही नए जीन के साथ बकरी का बच्चा बड़ा होगा तो उसका वजन भी उसकी नस्ल के हिसाब से ज्यादा होगा. ऐसे बच्चे के मीट का लैब में परीक्षण किया जाएगा. परीक्षण में यह जांचा जाएगा कि नए जीन के साथ बड़े हुए उस खास नस्ल के बकरे के मीट के स्वाद में तो कोई फर्क नहीं आया है. क्योंकि होता यह है कि कुछ खास ऐसी नस्ल हैं जिन्हें मीट में इसलिए पसंद किया जाता है, क्योंकि उनके मीट का स्वाद अच्छा होता है, जैसे बरबरी, जमनापरी, ब्लैक बंगाल आदि.  

 

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