जिंदा मुर्गे में भी मिलावट हो सकती है. बेशक ये नामुमकिन सी बात लगती हो, लेकिन ये हकीकत है. पोल्ट्री एक्सपर्ट की मानें तो चिकन के लिए बिकने वाले महंगे ब्रॉयलर मुर्गों में लेयर बर्ड की मिलावट की जाती है. अंडा देने वाली मुर्गी को लेयर बर्ड कहा जाता है. वहीं लेयर बर्ड अंडा देने के काम आती है. बाजार में जो सफेद रंग का छह से सात रुपये का अंडा बिकता है वो लेयर बर्ड का ही होती है. लेयर बर्ड का पालन सिर्फ और सिर्फ अंडे के लिए किया जाता है. दो से सवा दो साल तक यह अंडा देती है.
इसके बाद इसे रिटायर कर दिया जाता है. जब अंडा देने वाली मुर्गी अंडा देना बंद या बहुत कम कर देती है तो उसे कटने के लिए बेच दिया जाता है. ब्रॉयलर मुर्गे के मुकाबले लेयर बर्ड बहुत सस्ती होती है. हालांकि मुर्गों में होने वाली मुर्गियों की मिलावट को पकड़ना कोई नामुमकिन नहीं है. अगर दोनों के बीच शरीरिक बनावट के अंतर को पहचान लिया जाए तो आसानी से अंडे देने वाली मुर्गी को पहचाना जा सकता है.
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पोल्ट्री एक्सपर्ट चरनजीत ने किसान तक को बताया कि ब्रॉयलर चिकन वो है जो बाजारों में चिकन फ्राई, चिकन टंगड़ी, चिकन टिक्का और तंदूरी चिकन के नाम से बिकता है. चिकन बिरयानी भी इसी की बनती है. खासतौर पर चिकन करी के लिए घरों में भी यही बनाया जाता है. बाजार में आजकल फ्रेश ब्रॉयलर चिकन का भाव 200 रुपये किलो से लेकर 350 रुपये तक चल रहा है.
लेयर बर्ड पतली-दुबली, पौने दो किलो वजन तक की होती है.
ब्रॉयलर मुर्गा 900 ग्राम से लेकर तीन किलो वजन तक का होता है.
लेयर बर्ड के शरीर पर चर्बी नहीं होती है.
मोटा ताजी होने के चलते ब्रॉयलर के शरीर पर चर्बी होती है.
लेयर बर्ड के शरीर पर घने पंख होते हैं.
जबकि ब्रॉयलर के शरीर पर पंख बहुत ही कम होते हैं.
लेयर के सिर पर लाल गहरे सुर्ख रंग की बड़ी सी झुकी हुई कलंगी होती है.
ब्रॉयलर में बहुत छोटी कलंगी होती है. रंग भी थोड़ा दबा हुआ होता है.
लेयर के पंजे यानि पैर पतले होते हैं.
ब्रॉयलर मुर्गे के पंजे मोटे होते हैं.
लेयर मुर्गी काफी फुर्तीली होती है. खुला छोड़ने पर पकड़ना मुश्किल होता है.
वजनी और मोटा होने के चलते ब्रॉयलर मुर्गा दौड़ नहीं सकता है.
पकाने के दौरान लेयर मुर्गी का मीट अच्छी तरह से गलता नहीं है.
ब्रॉयलर मुर्गे का मीट आसानी से पक जाता है.
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