एनीमल एक्सपर्ट की मानें तो मौसम बरसात का हो या गर्मी-सर्दी का, हर एक मौसम पशुओं के लिए बीमारी भी लाता है. पशुओं के खानपान, रखरखाव और टीकाकरण में जरा सी भी लापरवाही हुई तो फौरन ही बीमार पड़ जाते हैं. कई बार तो ये बीमारी पशुओं के लिए जानलेवा भी साबित होती हो जाती है. साथ में उसका दूध भी कम हो जाता. पशुपालक को इसका खासा आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है. लेकिन किसी भी मौसम की शुरुआत में ही कुछ उपाय अपना लिए जाएं तो इस तरह की परेशानी और आर्थिक नुकसान दोनों से ही बचा जा सकता है. ऐसा करने से पशु हैल्थी भी रहेंगे और दूध-मीट भी बढ़ेगा.
केन्द्र और राज्य सरकार भी किसानों को इस तरह के नुकसान से बचाने के लिए कई तरह की योजनाएं चलाती हैं. समय-समय पर एडवाइजरी भी जारी करती हैं. अगर ऐसी ही कुछ योजनाओं का फायदा किसान भाई-बहिन उठा लें तो पशुपालन में आने वाले जोखिम को कम किया जा सकता है. गांव और कस्बों के पशु अस्पताल में भी ये सभी सुविधाएं आसानी से मिल जाती हैं.
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अक्टूबर से सर्दी शुरू हो जाती है. इसलिए पशुओं को सर्दी से बचाने का इंतजाम कर लें.
सर्दी के मौसम में ज्यादातर भैंस हीट में आती हैं. ऐसा होते ही पशु को गाभिन कराएं.
भैंस को मुर्राह नस्ल के नर से या नजदीकी केन्द्र पर कृत्रिम गर्भाधान कराएं.
भैंस बच्चा देने के 60-70 दिन बाद दोबारा हीट में ना आए तो फौरन ही जांच कराएं.
गाय-भैंस को जल्दी हीट में लाने के लिए मिनरल मिक्च्र जरूर खिलाएं.
पशुओं को बाहरी कीड़ों से बचाने के लिए समय-समय पर दवाई का छिड़काव कराएं.
दुधारू पशुओं को थैनेला रोग से बचाने के लिए डाक्टर की सलाह लें.
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पशुओं को पेट के कीड़ों से बचाने के लिए डॉक्टर की सलाह पर दवाई दें.
ज्यादा हरा चारा लेने के लिए बरसीम की बीएल 10, बीएल 22 और बीएल 42 की बिजाई अक्टूबर में कर दें.
बरसीम का ज्यादा चारा लेने के लिए सरसों की चाइनीज कैबिज या जई मिलाकर बिजाई करें.
बरसीम के साथ राई मिलाकर बिजाई करने से चारे की पौष्टिकता और उपज दोनों ही बढ़ती हैं.
बरसीम की बिजाई नए खेत में कर रहे हैं तो पहले राइजोबियम कल्चर उपचारित जरूर कर लें.
जई का ज्यादा चारा लेने के लिए ओएस 6, ओएल 9 और कैन्ट की बिजाई अक्टूबर के बीच में कर दें.
बछड़े को बैल बनाने के लिए छह महीने की उम्र पर उसे बधिया करा दें.