बरसात और बाढ़ के बाद इंसानों संग पशुओं की परेशानियां भी बढ़ जाती हैं. क्योंकि बाढ़ और बरसात के बाद पानी भरने और उतरने के दौरान पशुओं में किलनी, खुर सड़ना और पेट की परेशानियां खड़ी हो जाती हैं. किलनी पशुओं के शरीर से चिपक कर उनका खून चूसती हैं. जबकि बाढ़ का पानी साल्मोनेला और ई. कोलाई से प्रदूषित होने के चलते पशुओं को दस्त लग जाते हैं. वहीं लगातार एक ही जगह गीले में खड़े रहने के चलते पशुओं के खुर भी सड़ने लगते हैं. लेकिन कुछ उपाय करके पशुओं को इन तीनों ही बीमारियों से बचाया जा सकता है. साथ ही बाढ़ के रुके हुए पानी के कारण भूसे और चारे की कमी को भी दूर किया जा सकता है.
एनिमल एक्सपर्ट का कहना है कि बाढ़ का पानी साल्मोनेला और ई. कोलाई से दूषित हो जाता है. जिसकी वजह से पशुओं को दस्त हो जाते हैं. साथ ही क्लोस्ट्रीडियम और लेप्टोस्पाइरा की वजह से पशु टिटनेस, गर्भपात और पीलिया की चपेट में भी आ जाते हैं. इन बीमारियों से पशुओं को बचाने के लिए पानी की क्वालिटी की जांच कराई जा सकती है. खासतौर बछड़ों को पानी पिलाने से पहले उबाल लें और फिर ठंडा कर उसे पिलाएं.
एक्सपर्ट बताते हैं कि बरसात और बाढ़ का पानी उतरने के बाद सब जगह दलदली कीचड़ वाली मिट्टी हो जाती है. सूखी जगह बचती नहीं है. ऐसे में पशु कई घंटे नहीं कई-कई दिन तक गीले में ही खड़े रहते हैं. जिसके चलते उनके खुर सड़ने की नौबत आ जाती है. पशु लगड़ा हो सकता है. इसलिए मुमकिन हो तो पशु के नीचे सूखी मैट या लकड़ी का बुरादा और रेत बिछा सकते हैं.
मच्छर-मक्खी, जोंक, किलनी से पशुओं को होने वालीं बीमारियां हमेशा से ही पशुपालकों की बड़ी परेशानी रही हैं. एक रिपोर्ट के मुताबिक ये परेशानी अब और बड़ी हो गई है. अभी तक परजीवी रोगों का इलाज कुछ खास तरह की दवाई देकर हो जाता था. लेकिन अब परेशान करने वाली बात ये है कि बीते कुछ वक्त से दवाईयां भी पशुओं पर असर नहीं कर रही हैं. जिसकी बड़ी वजह है परजीवी विरोधी प्रतिरोध (एंटीपैरासिटिक रेसिस्टेंस) है.
ये भी पढ़ें-Water Usage: अंडा-दूध, मीट उत्पादन पर खर्च होने वाले पानी ने बढ़ाई परेशानी, जानें कितना होता है खर्च
ये भी पढ़ें-Egg Export: अमेरिका ने भारतीय अंडों पर उठाए गंभीर सवाल, कहा-इंसानों के खाने लायक नहीं...