Goat Breed for Meat बकरी पालन अब सिर्फ गांव तक ही सीमित नहीं रह गया है. अब तो गांव से ज्यादा शहर में बड़े-बड़े गोट फार्म शुरू हो रहे हैं. शहर में तो ये युवाओं का रोजगार बन चुका है. केन्द्र और राज्य सरकारें भी बकरी पालन को बढ़ावा दे रही हैं. बकरियों की सभी नस्ल की बाजार में डिमांड हो इसके लिए सरकारें काम भी कर रही हैं. राज्यों में पलने वालीं नस्लों को रजिस्टर्ड नस्ल का टैग दिया जा रहा है. हाल ही में बकरियों की तीन और नस्ल को रजिस्टर्ड नस्ल का टैग दिया गया है.
टैग मिलने के बाद से देश ही नहीं विदेशों में उस खास नस्ल के बकरों की डिमांड बढ़ गई है. ये तीन नई नस्ल सोजत, गुजरी और करोली हैं. खास बात यह है कि तीनों ही नस्ल राजस्थान की हैं. अभी तक देशभर में 37 अलग-अलग नस्ल की बकरियां पाली जा रही हैं. देश के कुल दूध उत्पादन में बकरियों का योगदान करीब तीन फीसद है. लेकिन हमारे यहां बकरियों के मीट कारोबार पर खासा ध्यान दिया जाता है.
गोट एक्सपर्ट की मानें तो गुजरी नस्ल खासतौर पर राजस्थान के अलवर में पाई जाती है. इस नस्ल के बकरे का औसत वजन 69 और बकरी का 58 किलो तक होता है. लेकिन इस नस्ल के बकरे की स्पेशल तरीके से खिलाई कर उसे वजनी बनाया जा सकता है. जानकारों की मानें तो बकरा 150 किलो के वजन को भी पार कर जाता है. इस नस्ल की बकरी रोजाना औसत 1.60 किलोग्राम तक दूध देती है. यह सफेद और भूरे रंग की होती है. इसके पेट, मुंह और पैर पर सफेद धब्बे होते हैं.
सोजत नस्ल की बकरी नागौर, पाली, जैसलमेर और जोधपुर में पाई जाती है. यह जमनापरी की तरह से सफेद रंग की बड़े आकार वाली नस्ल की बकरी है. इसे खासतौर पर मीट के लिए पाला जाता है. इस नस्ल का बकरा औसत 60 किलो वजन तक का होता है. बकरी दिनभर में एक लीटर तक दूध देती है. सोजत की नार्थ इंडिया समेत महाराष्ट्रा में भी खासी डिमांड रहती है.
कोटा, बूंदी, बांरा और सवाई माधोपुर में करोली नस्ल की बकरियों खूब पाली जाती हैं. औसत 1.5 लीटर तक दूध रोजाना देती हैं. लेकिन स्थानीय लोगों की मानें तो राजस्थान और यूपी के लोकल बाजारों में इसके मीट की खासी मांग है. इसका पूरा शरीर काले रंग का होता है. सिर्फ चारों पैर के नीचे का हिस्सा भूरे रंग का होता है. इसकी एक खास बात यह भी है कि सिर्फ मैदान और जंगलों में चरने पर ही यह वजन के मामले में अच्छा रिजल्ट देती है.
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