
Dairy Emergency देश में इमरजेंसी का मतलब सिर्फ युद्ध ही नहीं होता है. कई तरह की प्राकृतिक आपदाओं को भी इमरजेंसी घोषित किया जाता है. और भी बहुत सारी ऐसी घरेलू वजह होती हैं जब देश में इमरजेंसी घोषित की जाती है. इमरजेंसी किसी भी वजह से घोषित की जाए, लेकिन उसका असर देश की बहुत सारी सुविधाओं और कारोबार पर पड़ता है. बिजली व्यवस्था और ट्रांसपोर्टशन पर बड़ा असर पड़ता है. और जब बिजली व्यवस्था और ट्रांसपोर्टशन प्रभावित होता है तो शहरों में जरूरत की रोजमर्रा वाली चीजों की सबसे पहले सप्लाई बाधित होने लगती है. लेकिन ऐसे हालात यानि इमरजेंसी से निपटने के लिए सभी कारोबारी सेक्टर के पास अपना इमरजेंसी प्लान होता है.
इसी तरह से डेयरी सेक्टर भी अपना इमरजेंसी प्लान बनाकर रखता है. पूरे साल उस प्लान के हिसाब से काम किया जाता है. जिससे इमरजेंसी के दौरान दूध-मक्खन की सप्लाई पर कोई असर नहीं पड़े. क्योंकि इमरजेंसी घोषित होने पर शहरों में दूध की कमी होने लगती है. बच्चों और बुर्जुगों को हर रोज दूध की जरूरत होती है. इस परेशानी से बचने के लिए डेयरी इमरजेंसी प्लान पर काम करती है.
वीटा डेयरी, के रिटायर्ड सीईओ चरन सिंह ने किसान तक को बताया कि इमरजेंसी के हालात में डेयरी के सभी सेंटर को अलर्ट कर दिया जाता है. सबसे पहले सेंटर पर मिल्क पाउडर की सप्लाई की जाती है. हर एक सेंटर पर तीन से चार टन मिल्क पाउडर रखा जाता है. ये पाउडर आम शहरियों खासतौर से बच्चों और बुर्जुगों के काम आता है. वहीं मक्खन का भी पूरा स्टॉक रखा जाता है. जिससे शहर में सप्लाई और फौज के लिए जितना मांगा जाता है तो डेयरी सप्लाई करने को तैयार रहती है. सरकार जब, जहां दूध-मक्खन पहुंचाने के लिए कहती है वहीं डेयरी यूनिट सप्लाई देती हैं.
डेयरी एक्सपर्ट की मानें तो इमरजेंसी प्लान को देखते हुए देश में हर वक्त वक्त 70 से 80 हजार टन मक्खन मौजूद रहता है. इमरजेंसी के लिए 80 हजार टन की जरूरत होती है. स्टॉक और जरूरत के अंतर को दो से चार दिन में पूरा कर लिया जाता है. अब अगर दूध की बात करें तो उसकी डिमांड को पूरा करने के लिए 1.5 लाख टन मिल्क पाउडर चाहिए होता है. जबकि बाजार के कुछ कारणों के चलते देश में हर वक्त दो से 2.5 लाख टन मौजूद रहता है.
डेयरी एक्सपर्ट ने बताया कि जंग की तैयारी और हालात को देखते हुए डेयरियों के काम करने का समय बदल जाता है. सुबह की पहली किरन के साथ डेयरी कंपनी पशुपालकों से दूध का कलेक्शन शुरू कर देती हैं. जल्दी-जल्दी दूध खरीदकर कलेक्शन सेंटर और चिलर प्लांट पर जमा कर लिया जाता है. फिर डेयरी प्लांट पर पैकिंग कर उसे सूरज छिपने से पहले शहरों में सप्लाई के लिए भेज दिया जाता है.
ये भी पढ़ें- मीट उत्पादन में 5वीं से 4 पोजिशन पर आया भारत, दूध-अंडे में पहले-दूसरे पर बरकरार
ये भी पढ़ें- जरूरत है अंडा-चिकन को गांव-गांव तक पहुंचाकर नया बाजार तैयार किया जाए-बहादुर अली