आज भी ग्रामीण इलाकों में बड़े पैमाने पर पशुओं का पालन किया जाता है. छोटे और सीमांत किसान जिनके पास ज्यादा जमीन नहीं होती, वे पशु पालकर अपना जीवन यापन करते हैं. ग्रामीण इलाकों में जगह अधिक होने के कारण पशुपालक पशुओं को खुले में बांधते हैं ताकि पशु चर सकें और अपना पेट भर सकें. लेकिन इससे पशुओं को कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है. खुले में बंधे रहने के कारण पशुओं को कई तरह के कीड़े-मकोड़ों, मक्खियों, मच्छरों और दूसरे खून चूसने वाले कीड़ों का सामना करना पड़ता है. जिससे न सिर्फ पशु कमजोर होते हैं बल्कि दूध उत्पादन क्षमता पर भी इसका असर पड़ता है.
गाय-भैंसों को खुले में बांधने से एक बड़ी समस्या यह पैदा होती है कि उनके शरीर पर खून चूसने वाले कीड़े जैसे मच्छर, टीक और दूसरे परजीवी जीव हमला कर देते हैं. ये कीड़े न केवल इन पशुओं को शारीरिक रूप से कमज़ोर करते हैं, बल्कि उन्हें कई तरह की जानलेवा बीमारियों से भी ग्रसित कर सकते हैं. खास तौर पर टीक और मच्छर से संक्रमण होने पर 'बुखार', 'हेजिंग-कफ' और 'मलेरिया' जैसी बीमारियां फैल सकती हैं.
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अधिक खुजली: यदि आपके गाय-भैंसों के शरीर पर अधिक खुजली हो रही हो, तो यह खून चूसने वाले कीड़ों के आक्रमण का संकेत हो सकता है.
कमजोरी और सुस्ती: इन कीड़ों के कारण जानवरों में शारीरिक कमजोरी और सुस्ती महसूस हो सकती है, क्योंकि कीड़े उनका खून चूसकर उन्हें कमजोर कर देते हैं.
सिर और शरीर में धब्बे: शरीर के विभिन्न हिस्सों में धब्बे या घाव दिखाई दे सकते हैं, जहां परजीवी जीवों ने हमला किया हो.
तेज़ बुखार: अगर गाय-भैंस को बुखार हो, तो यह खून चूसने वाले जीवों के संक्रमण का परिणाम हो सकता है.
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गायों और भैंसों में आंतरिक परजीवियों का संक्रमण एक गंभीर समस्या है. ये पशु का खून चूसकर उसे कमजोर करते हैं और अन्य बीमारियां भी फैलाते हैं. इनसे बचाव के लिए 'इवरमेक्टिन' दवा का प्रयोग सही माना जाता है. इस एक ही दवा से अधिकांश परजीवी समाप्त हो जाते हैं. परजीवियों का जीवन चक्र एक ही खुराक से समाप्त हो जाता है. यह दवा बाजार में नियोमैक, इवोमैक आदि नामों से उपलब्ध है.
इसकी खुराक 1 मिली प्रति 50 किलोग्राम शरीर भार की दर से चमड़े के नीचे इंजेक्शन के रूप में दी जाती है. एक वयस्क पशु में एक इंजेक्शन की कीमत मात्र 50 रुपये है. राउंडवॉर्म और लंगवॉर्म पर नियंत्रण के लिए पैनाक्योर, पाइरेंटेल, फेनवेंडाजोल, एल्बेंडाजोल, ऑक्सीक्लोजोनाइड, लेवामिसोल जैसी अन्य सस्ती दवाएं और लिवरवॉर्म के लिए जोनिल, डिस्टोडिन, बैनमिन्थ जैसी दवाएं पशु चिकित्सक के परामर्श से दी जा सकती हैं. पशुओं में कृमिनाशक दवाओं के प्रयोग से दूध उत्पादन में लगभग 5 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई है.