Explained: क्या है पोल्ट्री फार्म और बैकयार्ड पोल्ट्री, दोनों में अंतर जान लीजिए  

Explained: क्या है पोल्ट्री फार्म और बैकयार्ड पोल्ट्री, दोनों में अंतर जान लीजिए  

पोल्ट्री एक्सपर्ट की मानें तो बैकयार्ड पोल्ट्री का सबसे ज्यादा चलन छत्तीसगढ़, झारखंड, बिहार, कर्नाटक, आंध्रा प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में है. घर, खेत और पशुओं के बाड़े के बीच पाले जाने वाले मुर्गे-मुर्गी को बैकयार्ड पोल्ट्री कहते हैं. 

फार्म का प्रतीकात्मक फोटो. फार्म का प्रतीकात्मक फोटो.
नासि‍र हुसैन
  • Noida ,
  • Feb 10, 2023,
  • Updated Feb 10, 2023, 7:00 AM IST

देश में दो तरह से मुर्गी पालन किया जाता है. बैकयार्ड और पोल्ट्री फार्म में मुर्गियां पाली जाती हैं. हालांकि इसमें बड़ा हिस्सा पोल्ट्री फार्म का है. जबकि बैकयार्ड पोल्ट्री छोटे पैमाने पर कम जगह में होती है. लेकिन खास बात यह है कि देसी मुर्गी और अंडे का कारोबार सबसे ज्यादा बैकयार्ड पोल्ट्री में ही होता है. देसी अंडे का कारोबार बड़े पैमाने पर कम ही होता है. बैकयार्ड पोल्ट्री के लिए कम जगह चाहिए होती है और कहीं भी शुरुआत की जा सकती है. जबकि पोल्ट्री फार्म के लिए लंबी-चौड़ी जगह चाहिए होती है. 

बैकयार्ड और पोल्ट्री फार्म में भी मुर्गी पालन तीन तरह का होता है. लेअर बर्ड मतलब अंडे देने वाली मुर्गी. ब्रायलर मुर्गे-मुर्गी मीट की डिमांड पूरी करने के लिए पाले जाते हैं. वहीं तीसरी होती है हैचरी बर्ड. जैसा कि हैचरी शब्द से ही पता चलता है कि इस तरह के पालन में मुर्गी के अंडों से चूजे लिए जाते हैं. फिर उन एक दिन के चूजों से लेकर 5 दिन के चूजों को बाजार में मुर्गी पालन करने वालों को बेच दिया जाता है. 

ऐसी होती है बैकयार्ड पोल्ट्री  

पोल्ट्री एक्सपर्ट अनिल शाक्या ने 'किसान तक' को बताया कि घर के किसी भी हिस्से में, खेत पर, फार्म हाउस पर या ये कह लें कि जहां भी थोड़ी सी जगह मिल जाए वहां बैकयार्ड पोल्ट्री की जा सकती है. इसके तहत 20 से 25 मुर्गे और मुर्गियां पाले जाते हैं. यह ज्यादातर देसी नस्ल‍ के होते हैं जिसके चलते इनके अंडे खासे महंगे जाते हैं.

ये भी पढ़ें- CIRG: बकरियों को हरा चारा खिलाते समय रखें इन बातों का खयाल, नहीं होंगी बीमार 

देसी नस्ल का चिकन भी महंगा बिकता है. इनका कोई बाजार रेट नहीं होता है. खरीदने वाले और बेचने वाला आपस में तय कर लेते हैं. यहां पलने वाली मुर्गियों के दाने पर भी कोई खास खर्चा नहीं आता है. सुबह से शाम तक यह यहां-वहां चुगते रहते हैं. लेकिन बैकयार्ड पोल्ट्री में अंडे और चिकन की बिक्री सर्दी के मौसम में ही ज्यादा होती है. 

पोल्ट्री फार्म को बड़े एरिया की जरूरत

अंडे देने वाली लेयर मुर्गी का फार्म हो या फिर ब्रॉयलर चिकन का फार्म, उसके लिए बड़े एरिया की जरूरत होती है क्योंकि दोनों में से किसी का भी फार्म कम से कम पांच हजार मुर्गियों का होता है. पोल्ट्री फार्म में अंडे देने वाली मुर्गी पाली जाती हैं, तो चिकन के लिए ब्रायलर मुर्गे तैयार किए जाते हैं. यह काम पूरे साल चलता रहता है. हालांकि सर्दियों को अंडे का सीजन माना जाता है. लेकिन चिकन 12 महीने खाया जाता है.

ये भी पढ़ें- शहरों में पालने के ल‍िए सबसे मुफीद है बरबरी नस्ल की बकरी, वैज्ञान‍िक लगा चुके हैं मुहर

बैकयार्ड पोल्ट्री में कड़कनाथ

बीते चार साल से देशभर में कड़कनाथ नस्ल के मुर्गे-मुर्गी का ऐसा नाम गूंजा है कि इसका एक अंडा 50 से 60 रुपये तक का बिक जाता है. अभी भी कड़कनाथ मुर्गी का अंडा 30 से 35 रुपये का बिक रहा है. कड़कनाथ मुर्गे-मुर्गी देखने में काले रंग के होते हैं. यह नस्ल खासतौर पर छत्तीसगढ़, झारखंड और बिहार में पाई जाती है. कड़कनाथ का मीट अभी भी 15 सौ रुपये किलो तक बिक रहा है. जबकि तीन-चार साल पहले तक इसका मीट 4 हजार रुपये किलो पहुंच गया था.

100 रुपये है असील का अंडा

देशी मुर्गे-मुर्गी में असील एक खास नस्ल है. यह सिर्फ बैकयार्ड पोल्ट्री में ही पाला जाता है. हालांकि देसी में कड़कनाथ, वनश्री, निकोबरी, वनराजा, घागुस और श्रीहिंदी भी बैकयार्ड पोल्ट्री में पाले जाते हैं. लेकिन असील की अपनी एक खास पहचान है. महंगा होने के चलते असील बैकयार्ड पोल्ट्री के तहत पाले जाते हैं. इसका मीट बहुत कम खाया जाता है. लेकिन अंडे की डिमांड ज्यादा रहती है. सर्दियों में इसका अंडा 100 रुपये तक का बिका है.

दवाई के तौर पर भी असील का अंडा खाया जाता है. बाकी डिमांड के हिसाब से मुर्गी वाला जो मांग ले. हैचरी के लिए सरकारी केंद्रों से ही असील मुर्गी का अंडा 50 रुपये तक का मिलता है. असील मुर्गी पूरे साल में सिर्फ 60 से 70 अंडे देती है. आज भी कुछ लोग इसे शौक के तौर पर पालते हैं. 

ये भी पढ़ें-

            अडानी कंपनी मथुरा में गौशाला के साथ मिलकर बनाएगी CNG, जानें प्लान

           CIRG की इस रिसर्च से 50 किलो का हो जाएगा 25 किलो वाला बकरा, जानें कैसे 

MORE NEWS

Read more!