पशुओं की अच्छी सेहत और अधिक दूध उत्पादन के लिए उनका समय पर टीकाकरण और डीवर्मिंग (कृमिनाशक दवा देना) बेहद ज़रूरी है. इससे न केवल पशु बीमारियों से बचते हैं, बल्कि इंसानों में फैलने वाली बीमारियों (जूनोटिक रोग) पर भी नियंत्रण रहता है. आइए जानते हैं टीकाकरण और डीवर्मिंग से जुड़ी जरूरी बातें.
टीकाकरण से पहले की सावधानियां
- पशु की जांच करें – टीकाकरण से पहले पशु का तापमान ज़रूर जांचें. बीमार पशु को टीका नहीं लगवाना चाहिए.
- कृमिनाशक दवा पहले दें – टीकाकरण से लगभग दो हफ्ते पहले कृमिनाशक दवा दी जानी चाहिए. यह काम पशु चिकित्सक की सलाह से करें.
- उम्र और बीमारी के अनुसार टीका – हर बीमारी का टीका एक निश्चित उम्र में दिया जाता है, इसलिए सही समय और बीमारी के अनुसार ही टीकाकरण कराएं.
- वैक्सीन को समय पर इस्तेमाल करें – वैक्सीन को रेफ्रिजरेटर (2-7°C) में रखा जाता है. निकालने के बाद जल्द से जल्द इसका उपयोग करना चाहिए.
- पशु को काबू में रखें – टीका लगाते समय पशु को अच्छी तरह पकड़ें ताकि इंजेक्शन सही जगह, मात्रा और दिशा में लगाया जा सके.
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टीकाकरण के बाद की सावधानियां
- साफ-सुथरी सिरिंज का इस्तेमाल – एक सिरिंज का उपयोग केवल एक बार करें और उसके बाद उसे नष्ट कर दें.
- अच्छा आहार दें – टीकाकरण के बाद पशु को संतुलित आहार और जरूरी खनिज मिश्रण दें.
- आरामदायक आवास – पशु को बहुत ज्यादा धूप या ठंड से बचाकर आरामदायक जगह पर रखें.
- बुखार आने पर दवा दें – कई बार टीकाकरण के बाद बुखार आ सकता है. ऐसी स्थिति में डॉक्टर की सलाह से बुखार की दवा दें.
- टीके की जगह सूजन हो तो – अगर टीके की जगह पर सूजन हो जाए, तो वहां बर्फ लगाने से राहत मिलती है.
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टीकाकरण के लाभ
- पशुओं को खतरनाक बीमारियों से सुरक्षा मिलती है.
- पूरे झुंड में इम्युनिटी विकसित होती है (Herd Immunity).
- सुरक्षित और गुणवत्तापूर्ण दूध/मांस उत्पादन होता है.
- खाद्य जनित रोगों का खतरा कम होता है.
- रेबीज, ब्रुसेलोसिस, इन्फ्लूएंजा जैसी बीमारियों से इंसानों को भी सुरक्षा मिलती है.
कीड़ामार (दवा) देने का सही समय
कृमि का प्रकार | दवा देने का समय |
जिगर की जूं (Liver Flukes) | साल में दो बार (विषम वर्ष में) |
गोल कृमि (Roundworms) | जन्म के 10 दिन बाद पहली खुराक, फिर 6 महीने तक हर महीने, साल में 3 बार |
टेप कृमि (Tapeworms) | साल में दो बार (जनवरी और जून) |
दवा की श्रृंखला और समय
- आईवरमेक्टिन / क्लोसेन्टल / एल्बेंडाज़ोल (विस्तृत स्पेक्ट्रम): साल में 2 बार या हर तिमाही
- प्राज़ीक्विंटल (संकीर्ण स्पेक्ट्रम): अप्रैल/मई
- सल्फामेथाज़ीन / ट्राइमेथोप्रिम (एंटीकोक्सिडियल): जून/जुलाई
(लेखक: जे.पी गोदारा)