राजस्थान अपनी विविधतापूर्ण संस्कृति के लिए दुनियाभर में पहचान रखता है, लेकिन जब आप इसकी खेती-किसानी की ओर ध्यान देते हैं तो यह विविधता उसमें भी पूरी तरह दिखाई पड़ती है. यही विविधता पशुपालन में भी स्पष्ट दिखती है. दरअसल, राजस्थान में मुर्गी की एक ऐसी प्रजाति भी है जो कड़कनाथ को टक्कर देती है. इस प्रजाति का नाम है प्रताप धन. ग्रामीण क्षेत्रों में केवीके की ओर से किसानों और मुर्गी पालकों के लिए यह मुर्गे उपलब्ध कराए जा रहे हैं. इससे गांव में लोगों की आय में बढ़ोतरी हो रही है.
मुर्गे की इस प्रजाति को साल 2016 में उदयपुर स्थित महाराणा प्रताप यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर एंड टेक्नोलॉजी ने विकसित किया है. इसे यूनिवर्सिटी से जुड़े केवीके में भी भेजा जाता है और फिर वहां से जरूरतमंद किसान या मुर्गी पालकों को इसे उपलब्ध करा दिया जाता है. राजस्थान के साथ-साथ देश के कई हिस्सों में इस प्रजाति के मुर्गे और मुर्गियों की अच्छी डिमांड है.
भीलवाड़ा कृषि विज्ञान केन्द्र के हेड और सीनियर साइंटिस्ट डॉ. सीएम यादव से इस प्रजाति के बारे में किसान तक ने बात की. वे बताते हैं, “हमारी महाराणा प्रताप यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर एंड टेक्नोलॉजी ने इसे डेवलप किया है. इसे विकसित करने में करीब तीन साल का समय लगा था. इसकी खासियत यह है कि इसे तीन स्थानीय मुर्गियों की नस्ल से मिलाकर बनाया गया है. इनमें रोड आईलेण्ड रेड (आरआईआर), कलर ब्राइलर और मेवाड़ी नस्ल की मुर्गियां शामिल हैं.
आरआईआर मुर्गी साल में 200 अंडे देती है. वहीं कलर ब्राइलर पांच महीने में ही ढाई किलो तक की हो जाती है. वहीं मेवाड़ी नस्ल की मुर्गी में बीमारी नहीं लगती. नस्ल को नेशनल ब्यूरो ऑफ एनिमल जेनेटिक रिसोर्स करनाल से रजिस्टर्ड करवाया गया है. इसीलिए प्रतापधन मुर्गी में ये तीनों खासियतें हैं.
यादव कहते हैं कि प्रतापधन मुर्गी साल में 160-180 तक अंडे देती है. सामान्य मुर्गी साल में 80 से 100 ही अंडे दे पाती है. वहीं, प्रतापधन मुर्गे का वजन भी आम मुर्गों से अधिक है. इसमें चार किलो तक वजन होता है. आम मुर्गों या देसी नस्लों में ढाई-तीन किलो वजन ही होता है. इसीलिए बाजार में इसका भाव भी 500 रुपये तक जाता है.
यादव बताते हैं, “भीलवाड़ा कृषि विज्ञान केन्द्र में उदयपुर यूनिवर्सिटी कैंपस से एक दिन का चूजा लाया जाता है. फिर इसे अगले 30-40 दिन तक एक विशेष तापमान में रखा जाता है. गर्मियों में यह 40 डिग्री तक होता है और सर्दियों के दिनों में तापमान कम करने के लिए इसमें बल्व लगाए जाते हैं. ताकि गर्माहट बनी रहे.”
ये भी पढ़ें- 53 साल का सूखा हाेगा खत्म, अब किसानों के खेतों में पहुंचेेगा निलवंडे डैम का पानी... जानें पूरी कहानी
यादव किसान तक से बातचीत में बताते हैं कि देश में हर एक कृषि विज्ञान केन्द्र ने अपने आसपास के गांवों को गोद ले रखा है. केवीके भीलवाड़ा ने भी चार-पांच गांवों को गोद लिया हुआ है. 40 दिन बाद इन मुर्गे-मुर्गियों के बड़ा होने के बाद हमसे जुड़े किसान, मुर्गीपालक, ग्रामीणों को 20-50 की संख्या में यह मुफ्त में दिए जाते हैं. वहीं, जो लोग इसे खरीदना चाहते हैं, उसके लिए सिर्फ एक चूजा 130 रुपये का दिया जाता है.
ये भी पढ़ें- किसान के पास किसान तकः राजस्थान के इन बगीचों से जाते हैं रोजाना 70 ट्रक जामुन
डॉ. सीएम यादव कहते हैं कि इस पूरी प्रैक्टिस का एक ही उद्देश्य किसानों की आय में वृद्धि करना है. खेती के अलावा किसान अंडे बेचकर, चिकन बेचकर और ब्रीडिंग के बाद चूजे बेचकर लाभ कमा सकते हैं. इससे उन्हें खेती के अलावा एक्स्ट्रा आय होती है.