बैलों की बल्ले-बल्ले! इस राज्य में आज भी बैलों पर ट्रैक्टर से ज्यादा भरोसा करते हैं किसान, जानें वजह

बैलों की बल्ले-बल्ले! इस राज्य में आज भी बैलों पर ट्रैक्टर से ज्यादा भरोसा करते हैं किसान, जानें वजह

यूपी-ब‍िहार जैसे राज्यों से अलग हटकर महाराष्ट्र में अब भी ट्रैक्टर की जगह बैलों का जलवा. आख‍िर यहां खेती-क‍िसानी के ल‍िए क्यों इतने महत्वपूर्ण हैं बैल. क्यों मनाते हैं किसान बैल पोला त्यौहार. जलगांव के क‍िसानों ने ग‍िनाया बैलों का फायदा. 

महाराष्ट्र में बैलों के जरिए अब भी हो रही खेती (All Photo-Sarita Sharma/Kisan Tak)महाराष्ट्र में बैलों के जरिए अब भी हो रही खेती (All Photo-Sarita Sharma/Kisan Tak)
सर‍िता शर्मा
  • Jalgaon,
  • May 22, 2023,
  • Updated May 22, 2023, 7:50 PM IST

उत्तर प्रदेश और ब‍िहार जैसे राज्यों के खेतों में अब बैल नहीं द‍िखते हैं. उनकी जगह अब ट्रैक्टर ने ले ली है. बैलों को पीछे कर अब ट्रैक्टर खेती-क‍िसानी का नया प्रतीक बन गया है. लेक‍िन महाराष्ट्र में कुछ अलग ही तस्वीर देखने को म‍िल रही है. यहां के अध‍िकांश क्षेत्रों में बैल से खेती करते हुए क‍िसान द‍िख रहे हैं. हालांक‍ि, ट्रैक्टर का दबदबा यहां भी द‍िख रहा है, लेक‍िन दूसरे राज्यों से अलग हटकर यहां के क‍िसानों की नजर में अब भी खेती के ल‍िए बैल जरूरी हैं. खासतौर पर छोटे क‍िसानों के ल‍िए. यहां तो अब भी बैलों को इतना महत्व है क‍ि हर साल अगस्त या स‍ितंबर में बैल पोला त्योहार मनाया जाता है. ज‍िसमें बैलों को खूब सजाकर उन्हें अच्छे से ख‍िलाया-प‍िलाया जाता है. 

जलगांव जिले में एक  तालुका है यावल. यहां के एक बुजुर्ग क‍िसान विजय त्रयम्बक ने 'क‍िसान तक' से कहा क‍ि जिले में सबसे ज्यादा केले की खेती होती हैं. यहां के किसान अभी भी बैलों से ही खेती करना पसंद करते हैं. बैलों के जर‍िए की गई जुताई से जमीन सॉफ्ट होती है. जबक‍ि ट्रैक्टर चलाने से जमीन हार्ड होती है. हार्ड होने की वजह से केले पौधे जल्द तैयार नहीं होते. इसलिए केले की खेती में बैलों का अच्छा उपयोग है. खासतौर पर बारिश के द‍िनों में बैलों से खेती करना सबसे अच्छा माना जाता है.  

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क्यों करते हैं बैलों से खेती? 

युवा किसान पराग सराफ ने बताया क‍ि वो केला, कपास और चने की खेती करते हैं. वो भी बैलों के जरिए ही खेती कर रहे हैं. जलगांव जिले में काली मिट्टी पाई जाती है. काली जमीन में थोड़ा भी पानी गिरता है तो कीचड़ हो जाता है. ऐसे में ट्रैक्टर का सही तरीके से उपयोग नहीं हो पाता है. उसकी जुताई वाली फसल उतनी अच्छी नहीं होती ज‍ितनी क‍ि बैलों द्वारा की गई जुताई में होगी. इसल‍िए यहां पर बैलों का अधिक उपयोग देखने को म‍िलता है. इसके अलावा हमारी धारणा यह भी है क‍ि अगर खेती में बैलों का इस्तेमाल करेंगे तो हमें सफलता मिलेगी. हम किसान आज भी बैलों को पूजते हैं. उनके ब‍िना खेती और क‍िसान अधूरा है. 

किसान ने कहा ट्रैक्टर से नहीं बैलों से खेती अच्छी होती है

बैलों से जुताई का फायदा बताया 

सराफ ने बताया क‍ि आज के समय में जिले में 70 फीसदी किसान बैलों से ही खेती करते हैं. किसान काका ने बताया कि पहले पारंपरिक तरीके से खेती ही सही मानी जाती थी. जब खेत‍िहर श्रम‍िक नहीं म‍िलते तभी क‍िसान ट्रैक्टर का इस्तेमाल करते हैं. हमारे पास छोटा ट्रैक्टर है. लेक‍िन हमें खेत की जुताई बैलों से ही पसंद है. बैलों से खेती करने पर मिट्टी अच्छी बनती है. क्वाल‍िटी का काम होता है. एग्री टेक में बीएससी करने वाले युवा यादनेश राने कहते हैं क‍ि ट्रैक्टर से खेती करने में लागत तो कम आती है लेकिन उससे मिट्टी खराब होती है. इसलिए यहां के क‍िसान अब भी ट्रैक्टर से ज्यादा बैलों पर भरोसा करते हैं.

क्यों मनाया जाता है बैल पोला त्यौहार

क‍िसान और बैल पोला 

किसान काका ने कहा क‍ि खेती में बैलों की भूम‍िका इतनी बड़ी है क‍ि हमें उनके सम्मान में एक द‍िन बैल पोला त्योहार मनाते हैं. क्योंकि हम साल भर बैलों से काम करवाते हैं. इसल‍िए इस त्योहार के दिन हम बैलों की पूजा करते हैं. उस द‍िन बैलों से कोई काम नहीं ल‍िया जाता. बैलों को सजाकर पूरे गांव में घुमाते हैं. यह त्योहार हम क‍िसान सिर्फ बैलों को धन्यवाद करने के ल‍िए मनाते हैं. हम उनके कंधों को अच्छे से मालिश भी करते हैं. महाराष्ट्र के क‍िसानों के ल‍िए यह बहुत बड़ा त्योहार है. अब भी हमारी खेती-क‍िसानी की पहचान ट्रैक्टर नहीं बल्क‍ि बैल ही हैं.

 

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