Animal Care in Monsoon मॉनसून यानि बरसात के दिनों को छोड़ दें तो पशुपालन में बहुत ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ती है. लेकिन खासतौर पर बरसात के दिनों में देखभाल ज्यादा बढ़ जाती है. क्योंकि मॉनसून में पशुओं को गर्मी से तो राहत मिल जाती है, लेकिन संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है. जिसके चलते पशुओं को कई बीमारियों से जूझना पड़ता है. साथ ही पशुपालक की लागत बढ़ने के साथ-साथ मेहनत भी बढ़ जाती है. लेकिन देखभाल के साथ ही अगर पशुओं को दिए जाने वाले चारा-पानी और वैक्सीन का खास ख्याल रखा तो संक्रमण फैलने से रोका जा सकता है.
और खास बात ये है कि इसके लिए पशुपालक को कोई अलग से खर्चा भी नहीं करना है. इसमे कुछ काम तो ऐसे हैं जो सरकारी योजनाओं के तहत फ्री कराए जा सकते हैं. और ये उपाय अपनाकर पशुपालक दवाई का खर्च बचाकर लागत को भी कम कर सकता है. और दूध उत्पादन भी नहीं घटेगा.
टिक्स बरसात के मौसम में तेजी से बढ़ते और फैलते हैं. टिक्स पशुओं का खून चूसते हैं और एनीमिया बीमारी का कारण बनते हैं, जिसके चलते पशुओं की मौत तक हो जाती है. बरसात के मौसम में मक्खियों की संख्या भी बढ़ जाती है. ये पशुओं को परेशान करने के साथ ही जलन पैदा करती हैं. इसका पशुओं की उत्पादन और प्रजनन क्षमता पर असर पड़ता है.
दूध देने वाले मवेशियों में बरसात के मौसम में स्तनदाह (थनैला बीमारी) आम बात है. बरसात के मौसम में गीले, गंदे शेड और गीले-गंदे थनों से भी ये बीमारी फैलती है. इसके चलते दूध का उत्पादन कम और कभी भी बंद तक हो जाता है.
बरसात के दिनों में बछड़ों को बाहर खुला नहीं छोड़ना चाहिए. एक्सपर्ट का कहना है कि बछड़ों में बीमारियों से लड़ने के लिए प्रतिरोधक क्षमता विकसित नहीं होती है. बछड़ों के शरीर में पानी की मात्रा ज्यादा होती है और ठंड से उनका तनाव बढ़ जाता है. इसलिए बछड़ों को गर्मी दी जानी चाहिए, बछड़ों को थोड़ी-थोड़ी मात्रा में दूध पिलाया जाना चाहिए. बछड़ों को ठंड के झटकों से बचाने के लिए कपड़े पहनाए जाने चाहिए. तीन महीने से ज्यादा उम्र के बछड़ों को कृमिनाशक दवा दी जानी चाहिए. छह महीने से ज्यादा उम्र के बछड़ों को बीक्यू और एचएस का टीका लगवाया जाना चाहिए.
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