रांची के अनगड़ा प्रखंड स्थित गेतलसूद डैम में मछलीपालन के जरिए डैम के आस-पास गांवों के रहने वाले लोगों को रोजगार मिल रहा है. मिली जानकारी के अनुसार डैम के आस-पास बसने वाले 16-17 गांवों के लोगों को इसका लाभ मिल रहा है. खास कर लाभ उन लोगों को मिल रहा है जो इस डैम के बनने के दौरान विस्थापित हो गए थे. गेतलसूद डैम का निर्माण साल 1971 में स्वर्णरेखा नदीं पर किया गया था. इसके कारण ओरमांझी और अनगड़ा प्रखंड के कई गांव विस्थापित हुए थे. यह 1400 हेक्टेयर में फैला हुआ है. पूरे साल यहां से लोग मछली पक़ड़ते हैं और बेचते हैं. यह उनके रोजगार का एक प्रमुख जरिया है.
इस डैम की सीमाएं ओरमांझी और अनगड़ा प्रखंड से लगती हैं. इस डैम में फिलहाल आठ मत्स्यजीवी सहयोग समिति सक्रिय हैं जो मछली पालन करती हैं. इस डैम में केज कल्चर और आरएफएफ के जरिए मछली पालन किया जाता है. डैम में मछलीपाल करने के लिए महेशपुर मत्स्यजीवी सहयोग समिति के अध्यक्ष क्लेश नायक बताते हैं कि डैम के बनने के बाद से इलाके की तस्वीर अब बदल रही है. डैम के किनारे रहने वाली 100 फीसदी आबादी मत्स्यपालन पर ही निर्भर है. कई लोग समिति से जुड़कर मछली पालन करते हैं तो कुछ लोग सीधे डैम में जाकर मछली पकड़ते हैं और स्थानीय बाजार में बेचते हैं.
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महेशपुर मत्स्यजीवी सहयोग समिति में लगभग 400 लोग जुड़े हुए हैं जिन्हें मछलीपालन के जरिए रोजगार मिल रहा है. समिति के पास 365 केज है. केंद्र और राज्य सरकार की तरफ से मिलने वाली योजनाओं के जरिए यह केज लगाए गए हैं. इन केजों और आएफएफ के जरिए महेशपुर मत्स्यजीवी सहयोग समिति सालाना 300-400 टन मछली का उत्पादन करती है. इससे लोगों को रोजगार के अवसर मिल रहे हैं. पीएमएमएसवाई की योजनाओं के जरिए उन्हें यह केज मिला है. इसके अलावा केज हाउस भी दिया गया है. मछलियों को बाहर निकालने के लिए दो स्पीड बोट भी समिति को दिए गए हैं. इसके अलावा एक पोर्टेबल हैचरी भी है जिसमें जीरा तैयार किया जाता है.
हाल ही में केंद्र के मत्स्य डेयरी और पशुपालन सचिव डॉ अभिलाक्ष लिखी ने गेतलसूद डैम का दौरा किया था. उन्होंने डैम के आसपास इंटिग्रेटेड मछली पालन को बढ़ावा देने के लिए विभाग से प्लान तैयार करने के लिए कहा है. इसके तहत डैम के किनारे में ही फीड प्लांट स्थापित करना, हैचरी लगाना और मछली की प्रोसेसिंग के लिए यूनिट तैयार करने से संबंधित बात कही गई है. इसके जरिए अधिक से अधिक लोगों को रोजगार मिलेगा. बता दें कि डैम में हर साल विभाग की तरफ से मछलियों की स्टॉकिंग की जाती है, जिससे आसपास के लोगों को रोजागर का एक बेहतर साधन मिलता है.
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महेशपुर मत्स्यजीवी सहयोग समिति के अध्यक्ष क्लेश नायक ने बताया कि मछली पालन के जरिए चार साल में उनका जीवन बदल गया है. चार साल पहले तक वो साइकिल में चलते थे. कच्चा मकान था. पर आज उनके पास पक्का मकान है. अपनी कार है और मोटरसाइकिल भी है. इसके साथ ही वो एक बेहतर जीवन जी रहे हैं. विभाग की तरफ से उनकी समिति को मोटरसाइकिल दिया गया है. साथ ही पिकअप वैन भी दिया गया है जिसका इस्तेमाल मछली बेचने के लिए किया जाता है. उन्होंने कहा कि डैम के किनारे रहने वाले लोगों को मछुआरा आवास भी मिला है. डैम के आस-पास रहने वाले 16 गांव के लोगों को मछली के जरिए रोजगार मिलता है. इसके अलावा लोग खेती भी करते हैं.