पिछले 3-4 सालों में मौसम चक्र में आ रहा बदलाव दक्षिण एशियाई देशों में शिद्दत से महसूस किया जा रहा है. मौसम चक्र में बदलाव का सर्दी के सिकुड़ने, गर्म दिनों की संख्या में इजाफा होने और बारिश का असमान वितरण होने के रूप में साफ तौर पर दिख रहा है. भारतीय मौसम विभाग के पूर्व महानिदेशक डॉ के. जे. रमेश ने बताया कि भारत के सभी Agro Climatic Zone मौसम चक्र के इस बदलाव का सामना कर रहे हैं. इस स्थिति का पूर्वानुमान एक दशक पहले ही लगा लिया गया था. उन्होंने 'किसान तक' को बताया कि भारत में मौसम पर आधारित फसल चक्र पर इस बदलाव का सीधा असर पड़ना लाजिमी है. इससे देश के किसान समुदाय की चुनौतियों में संभावित इजाफे को देखते हुए बदलते मौसम के अनुरूप फसल चक्र में बदलाव की परियोजना भी 2011 में देशव्यापी स्तर पर शुरू कर दी गई थी. उन्होंने बताया कि यूपी में अधिक पानी की जरूरत वाली वर्षा पर आधारित गेहूं और धान जैसी फसलों के बजाए बागवानी खेती को बढ़ावा देकर इसके शुरुआती प्रयोग किए गए हैं.
डाॅ रमेश ने कहा कि जलवायु परिवर्तन का असर वैसे तो पूरे भारत में अलग अलग रूप में दिख रहा है, लेकिन खेती के लिहाज से इसका सबसे तीव्र असर उत्तर पश्चिम राज्यों, खासकर यूपी में दिख रहा है. उन्होंने कहा कि यूपी की भौगोलिक स्थिति को देखते हुए राज्य के मौसम संबंधी दोनों जोन (पूर्वी एवं पश्चिमी जोन) में मॉनसून के असमान वितरण का सामना किसानों को करना पड़ रहा है. इसके फलस्वरूप एक ही स्थान पर बहुत ज्यादा बारिश हो रही है और इसके पास के इलाकों में बिल्कुल भी बारिश नहीं हो रही है. इतना ही नहीं बारिश की अधिकता वाले स्थानों पर लंबे अंतराल तक बारिश न होने वाले शुष्क समय यानी Wet Spell की अधिकता किसानों की परेशानी को बढ़ा रही है.
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उन्होंने कहा कि अल नीनो को भारत में निष्प्रभावी बनाने में आईओडी सक्षम है, इसलिए भारत, खास कर यूपी सहित अन्य उत्तरी राज्यों में Wet Spell की तीव्रता अन्य देशों की तुलना में बहुत कम है. अगर IOD Effect न होता तो भारत के किसानों के लिए स्थिति और भी ज्यादा भयावह होती.
डाॅ रमेश ने आगाह किया कि 21वीं सदी का दूसरा दशक, मौसम चक्र के लिहाज से पूरी तरह उथल पुथल भरा है. मौसम विज्ञान की भाषा में इसे संक्रमण काल कहा जाता है. उन्होंने कहा कि 2015 और 2016 में अल नीनो का भारत में मॉनसून पर नकारात्मक प्रभाव दिखने के बाद मौसम चक्र में बदलाव का असर तेजी से हो रहा है.
देश के अग्रणी मौसम विज्ञानी डॉ रमेश ने आगाह भी किया कि यह स्थिति 2030 तक, साल दर साल अपने गंभीर रूप में दिखेगी. इससे यूपी की विशिष्ट भौगोलिक स्थिति के कारण मॉनसून के असमान वितरण और कम बारिश की काली छाया के रूप में इस इलाके के किसानों की चुनौतियां बढ़ेंगी.
डॉ रमेश ने कहा कि यूपी सहित अन्य उत्तरी राज्यों में किसानों के लिए ये पूरा दशक, बारिश के संक्रमण काल के तौर पर देखा जा सकता है. खासकर यूपी के के पूर्वी और मध्य जोन में 2030 तक हालात ज्यादा गंभीर हो सकते हैं. इन इलाकों में किसानों को कम बारिश का दंश झेलना पड़ेगा.
उन्होंने इस समस्या के समाधान के रूप में Farm Pond यानी खेत तालाब को एकमात्र कारगर उपाय बताया है. उन्होंने कहा कि किसानों को हर हाल में अपने खेत के निचले हिस्सों में छोटा और 3 से 4 मीटर तक गहरा, कम से कम एक तालाब जरूर बनाना चाहिए. इस किफायती उपाय से किसान अपनी फसलों में कम से कम एक बार की सिंचाई कर सकेंगे. इसके अलावा बड़ी जोत के किसानों को अपने खेत में बड़े तालाब बनाकर अपनी और आसपास के छोटी जोत के किसानों की सिंचाई जरूरतों को पूरा करना चाहिए. उन्होंने कहा कि इससे सामूहिक खेती की विलुप्त हो चुकी पद्धति को भी फिर से उभरने का मौका मिलेगा.
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केंद्र सरकार ने पीएम सिंचाई योजना के तहत खेत में किसानों को तालाब बनाने के लिए अनुदान देने का भी प्रावधान किया है. इसके तहत यूपी में राज्य सरकार द्वारा खेत तालाब योजना का संचालन भी किया जा रहा है. इसके तहत लघु एवं मध्यम आकार के तालाब बनाने के लिए किसानों को कुल लागत का 50 प्रतिशत अनुदान दिया जाता है.
यह योजना बुंदेलखंड जैसे सूखा प्रभावित इलाकों में काफी सफल साबित हुई है. इससे किसानों की सिंचाई की समस्या का हल होने के अलावा भूजल स्तर में बढ़ोतरी भी देखने को मिल रही है.
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