ग्लोबल वार्मिंग का असर सिर्फ मैदानी इलाकों में नहीं, बल्कि पहाड़ी क्षेत्रों में भी देखने को मिल रहा है. देश के प्रमुख पहाड़ी राज्य उत्तराखंड के तराई क्षेत्र में ग्लोबल वार्मिंग के चलते बारिश में काफी गिरावट आई है. इसके अलावा तापमान के पैटर्न में भी उल्लेखनीय बदलाव दर्ज किया गया है. एक शोध में यह दावा किया गया है कि पिछले 40 वर्षों के दौरान उत्तराखंड के मौसम में कुछ ज्यादा ही चेंजिंग आई है. इससे क्षेत्र में फसल उत्पादन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है.
उत्तराखंड में जीबी पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए शोध से पता चला कि क्षेत्र में न्यूनतम तापमान में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, जबकि अधिकतम तापमान में कोई खास बदलाव नहीं हुआ है, जो तापमान की एक संकीर्ण सीमा का संकेत देता है. पिछले सप्ताह भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के 'मौसम जर्नल' में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार, इस बदलाव के कारण फसलें समय से पहले परिपक्व हो सकती हैं, जिससे फसल की पैदावार कम हो सकती है.
अध्ययन में कहा गया है है कि उत्तराखंड के तराई क्षेत्र में 40 वर्षों में वर्षा, धूप के घंटे और वाष्पीकरण में वास्तविक कमी क्रमश: 58.621 मिमी, 1.673 घंटे और 1.1 मिमी है. वैज्ञानिकों ने कहा कि इन जलवायु कारकों में कमी जनसंख्या वृद्धि, शहरीकरण, ग्लोबल वार्मिंग, बढ़ते प्रदूषण के कारण मंद प्रभाव और बादल वाले दिनों की संख्या में वृद्धि जैसे कारणों से हो सकती है. धूप के घंटों में गिरावट अधिक बादल वाले दिनों और बढ़ते प्रदूषण से जुड़ी है, जो सूर्य के विकिरण को अवशोषित करते हैं. धूप के घंटों में कमी और वाष्पीकरण सामूहिक रूप से संक्षेपण प्रक्रिया को प्रभावित करता है, जिससे क्षेत्र में वर्षा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है.
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अगर उत्तराखंड के ताजा मौसम के बारे में बात करें, यहां पहाड़ी और मैदानी इलाकों में 9 जनवरी से मौसम बदलने के आसार हैं. मौसम विभाग के अनुसार, प्रदेश में 9 और 10 जनवरी को हल्की से मध्यम बारिश हो सकती है. वहीं, ऊंचाई वाले इलाकों में बर्फबारी की भी संभावना जताई गई है. क्षेत्र में लंबे समय से बारिश और बर्फबारी न होने का असर फसलों पर पड़ रहा है. खास कर बर्फबारी और बारिश न होने से बागवानी किसान काफी परेशान हैं. उन्हें लग रहा है कि इसका असर कहीं, फ्रूट्स के उत्पादन पर न पड़ जाए.
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