बीते साल में मॉनसून के बाद के मौसम में बारिश में भारी कमी आई है जिसका असर फसलों और बागवानी पर पड़ सकता है. भारत मौसम विज्ञान विभाग यानी कि IMD के विक्रम सिंह ने कहा कि पिछले साल बारिश सामान्य से काफी कम थी, चाहे मैदानी इलाका हो या पहाड़ी. 2023 में मॉनसून के बाद के मौसम के दौरान, उत्तराखंड में अक्टूबर में बारिश में 35 प्रतिशत की कमी, नवंबर में 66 परसेंट की कमी और दिसंबर में 75 प्रतिशत की कमी देखी गई. कुल मिलाकर, उत्तराखंड में 2023 की अंतिम तिमाही में 52 परसेंट कम बारिश हुई, औसत 55 मिमी की तुलना में केवल 26.6 मिमी बारिश हुई.
पर्वतीय क्षेत्रों के बारे में कहा गया है कि इन इलाकों में छिटपुट वर्षा और बर्फबारी हुई, जो उम्मीद से कम रही. जहां तक 2024 का सवाल है, मौसम का मिजाज अनिश्चित बना हुआ है, बारिश या बर्फबारी का अभी तक कोई आकलन नहीं किया गया है. हालांकि शीतलहर ने पूरे क्षेत्र को प्रभावित किया है, खासकर मैदानी इलाकों में जहां कोहरे ने जनता के लिए चुनौतियां पेश की हैं.
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पहाड़ों में मौसम के बदलाव और बारिश न होने की मार किसानों को झेलनी पड़ रही है. अक्टूबर माह में वर्षा नहीं होने और नवंबर में कम ही स्थानों पर वर्षा होने से रबी की फसल पर असर पड़ा है. खेतों में पर्याप्त तौर पर पहाड़ों में बुवाई की जानें वाली मटर और आलू की फसलों पर खराब प्रभाव देखा जा रहा है. किसानों को आशंका है कि ये असर अब उत्पादन पर पड़ सकता है. अगर आगे बारिश नहीं हुई तो रबी की फसलें मारी जाएंगी और पैदावार भी घट जाएगी.
उत्तराखंड में बारिश नहीं होने से मटर और आलू के अलावा कई सब्जियों की फसलें पीली पड़ने लगी हैं. कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार रबी की फसल को बुवाई के बाद दिसंबर माह तक कम से कम 40 मिलीमीटर वर्षा की आवश्यकता होती है. मगर इस बार ऐसा नहीं हो पाया जिसका असर अब रबी की फसलों पर दिखने लगा है.
उत्तराखंड में सिंचाई की सुविधा की बात करें तो यहां मौदानी राज्यों की तरह टूयूबवेल और नहरों की व्यवस्था न के बराबर होती है. इस राज्य में किसानों को सिंचाई के लिए बारिश और बर्फबारी के पिघलने वाले पानी निर्भर रहना पड़ता है. दरअसल रबी की फसल के कुल कृषि क्षेत्र का सिर्फ 10 प्रतिशत ही सिंचाई सुविधा से जुड़ा है, बाकि 90 प्रतिशत क्षेत्र वर्षा के जल पर ही निर्भर है. ऐसे में बारिश कम होने से रबी की फसलें बर्बादी की कगार पर पहुंच जाएंगी.
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