जायद मक्के की खेती देश में लगभग 8.79 लाख हेक्टेयर में होती है, जिसमें मुख्य रूप से बिहार में 2 लाख हेक्टेयर और उत्तर प्रदेश में 1.90 लाख हेक्टेयर खेती की जाती है. इसकी खेती करके किसान बेहतर लाभ कमाते हैं. अप्रैल में तापमान बढ़ने से जायद मक्का की खेती करने वाले किसानों का कहना है कि मक्के की लहलहाती फसल में बालियां लगीं लेकिन दाने नहीं लगे हैं जिससे मक्का की फसल की पूरी पूंजी डूब गई है. इस साल यूपी और बिहार में ज्यादा गर्मी से लोग तो परेशान हुए ही हैं, लेकिन इस मक्के की फसल में दाने न लगने से किसानों की कमर टूट गई है. कृषि विशेषज्ञो के अनुसार, इसका कारण इस अप्रैल महीने से सूरज की तपिश, गर्म हवाएं और बेहाल करने वाला मौसम देखने को मिला. गर्मी ने इस महीने सभी रिकॉर्ड तोड़ दिए. 103 साल बाद ऐसा हुआ है, जब कई जगह पारा 43 डिग्री तक पहुंच गया था. इसका असर अब फरवरी और अप्रैल में बोए गए जायद मक्के पर दिख रहा है जिसके कारण मक्के में दाने नहीं पड़े हैं.
गांव कोच्छा, जिला अयोध्या के किसान ईश्वर दयाल ने फरवरी माह में बीज लगाए थे. उन्होंने किसान तक को बताया कि बायर कंपनी की किस्म 908 के बीज लगाए थे, लेकिन उनमें दाने नहीं बने, जिससे उनके मक्के में लगाई गई पूंजी पूरी डूब गई. ईश्वर दयाल का कहना था कि उनके मक्के की फसल का बढ़वार भी अच्छा हुआ और पौधे में बालियां भी लगीं. लेकिन मक्के की बालियों में दाने नहीं बने हैं. इससे उनको काफी नुकसान हुआ है.
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उन्होंने बताया कि हम हर साल मक्के की फसल बोते थे. हमारी फसल बहुत अच्छी होती थी, लेकिन इस साल बीज का भी दाम नहीं निकल पाया है. जब दाने नहीं बने तो हमने कृषि विज्ञान केंद्र अयोध्या से संपर्क किया तो वहां के हेड डॉ. बीपी शाही ने बताया कि इस साल अप्रैल में अधिक तापमान के कारण मक्के की फसल में परागण ठीक प्रकार से नहीं हो पाया. इसके कारण मक्के में दाने नहीं बन पाए हैं. मंगलसी, जिला अयोध्या के शोभाराम, छोटी जोत के किसान हैं. हर साल एक एकड़ भुट्टे वाले मक्के की खेती करते हैं क्योंकि अयोध्या में पर्यटन बढ़ने से भुट्टे की मांग अधिक है. हर साल एक सीजन में लगभग एक लाख की कमाई कर लेते हैं. इस साल उन्होंने 20 फरवरी को मक्का की खेती की थी. लेकिन उनके मक्के में 50 फीसदी कम बालियों में दाने पड़े, वह भी बहुत कमजोर. इससे बहुत ज्यादा नुकसान हुआ है.
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार इस तरह की समस्या बिहार के कई जिलों के किसानों ने भी बताई है. हाजीपुर, मुजफ्फरपुर, नालंदा, पश्चिम चंपारण सहित कई जिलों में जिन किसानों ने जायद मक्के की खेती की, उनके मक्के की बालियों में दाने नहीं पड़े. इससे उनको भारी नुकसान हुआ है. किसानों के मुताबिक सरसों, मटर और आलू इत्यादि फसलों की कटाई करके जायद वाले मक्का की बुवाई फरवरी-मार्च में करते हैं और हर साल अच्छी फसल होती है. इस साल फसल अच्छी हुई, बालियां भी बनीं, लेकिन बालियों में दाने नहीं पड़े हैं. इससे उनको भारी नुकसान हुआ है.
बिहार के कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि फरवरी-मार्च में बोए गए मक्के की फसल में दाने न लगने की समस्या उत्पन्न हुई है. इसकी वजह अधिक तापमान है. अमूमन पौधों में पराग लगने के समय 26 से 30 डिग्री तक तापमान को अनुकूल माना गया है. लेकिन इस बार मक्के की फसलों को मौसम का साथ नहीं मिला. जरूरत से ज्यादा तापमान रहने के कारण पराग के सूख जाने से बालियों में दाने नहीं लगे. बीज बोने के बाद 45 से 60 दिनों में पराग लग जाते हैं.
इस संबंध में किसान तक ने रानी लक्ष्मी बाई केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय के फसल विज्ञान के वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक और प्रसार निदेशक डॉ. एस. एस. सिंह के साथ बातचीत की. उन्होंने बताया कि जायद मक्के की फसल के परागण के वक्त तापमान 35 डिग्री सेल्सियस से नीचे रहता है तो कोई ज्यादा दिक्कत नहीं होती है. अगर इससे ऊपर तापमान चला जाता है तो परागण में दिक्कत हो जाती है. लेकिन इस साल जिस क्षेत्र में मक्के के परागण के वक्त तापमान 40 या उससे अधिक था, उस क्षेत्र में मक्के की फसल के परागकण झुलस गए और नष्ट हो गए. इससे मक्के की फसल में परागण नहीं हो पाया है और मक्के की बालियों में दाने नहीं बन पाए हैं.
डॉ. एस. एस. सिंह ने कहा कि किसी भी फसल के अंकुरण, बढ़वार, परागण और दाना सेट होने के लिए एक निश्चित तापमान होता है और उस निश्चित तापमान पर ही बीज अंकुरित होते हैं, बढ़वार करते हैं, परागण होता है और बालियों में दाने सेट होते हैं. इसमें भी परागण और दाना सेट होने की अवस्था तापमान के प्रति बेहद संवेदनशील होती है. अगर इस अवस्था पर तापमान में अंतर आता है तो फसल में परागण नहीं होता है और दाने नहीं बनते हैं. इससे फसल की उपज में गिरावट होती है. उन्होंन बताया कि इस साल पूरे बारह महीने में औसत तापमान पूरी दुनिया 1.5 ड्रिग्री सेल्सियस अधिक रहा है. यह जलवायु परिवर्तन के प्रभाव का संकेत है.
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तापमान बढ़ने से फसल की बढ़वार से लेकर उपज पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है. एक मई 2024 को भारतीय मौसम विज्ञान विभाग द्वारा आयोजित संवाददाता सम्मेलन में बताया गया कि दक्षिणी प्रायद्वीप में अप्रैल का महीना 1901 से लेकर अब तक का दूसरा सबसे गर्म महीना रिकॉर्ड किया गया. सूरज की तपिश, गर्म हवाएं और बेहाल करने वाले मौसम की कुछ ऐसी तस्वीर अप्रैल महीने में देखने को मिली जो परेशान करने वाली थी. गर्मी ने इस महीने सभी रिकॉर्ड तोड़ दिए. 103 साल बाद ऐसा हुआ है जब कई जगह पारा 43 डिग्री तक पहुंच गया था. इसका असर अब फरवरी और अप्रैल में बोए गए जायद मक्के पर दिख रहा है जिसके कारण मक्के में दाने नहीं पड़े हैं.
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