1990 के दशक की शुरुआत में, जब 'जैविक खेती' का नाम बहुत कम सुनाई देता था, उपेंद्र दत्त ने पंजाब में इसे एक नई दिशा देने का बीड़ा उठाया. उन्होंने हरित क्रांति के एक अनदेखे और चिंताजनक पहलू को उजागर किया कि पंजाब, जिसे 'भारत का खाद्यान्न कटोरा' कहा जाता है, वहां के लोग सबसे ज्यादा कैंसर जैसी बीमारियों से पीड़ित क्यों हैं. उन्होंने किसानों को जागरूक किया कि हरित क्रांति ने भले ही देश को खाद्यान्न में आत्मनिर्भर बना दिया, लेकिन इसके साथ ही पंजाब में कई गंभीर समस्याएं भी उत्पन्न हुईं. खेतों की मृदा की गुणवत्ता में गिरावट, भूजल का अत्यधिक दोहन से सिंचाई जल कमी और जहरीली खाद्य शृंखला के कारण कैंसर सहित कई घातक बीमारियों का खतरा बढ़ गया है.
इसके अलावा, उन्होंने आने वाली पीढ़ियों के लिए इस खेती के तरीके की घातकता को भी उजागर किया. हालांकि, लोग उनके तर्कों को सुनने के लिए तैयार नहीं थे. उनकी समझ पर सवाल उठाए गए, उनका मजाक उड़ाया गया. यहां तक कि उन्हें सीआईए का एजेंट तक कह दिया गया. लेकिन मुखर विरोधियों को समझाने के बजाय, उपेंद्र दत्त ने किसानों का एक नेटवर्क तैयार किया और जैविक खेती के विचार को प्रोत्साहित करने का दृढ़ संकल्प लिया.
उपेंद्र दत्त किसान तक से कहते हैं, पंजाब के पास भारत की केवल 1.5 प्रतिशत कृषि भूमि थी, लेकिन वह अपने खेतों में 18 प्रतिशत रसायनों का उपयोग करता था. जब मुझे इस सच्चाई का एहसास हुआ, तो मुझे लगा कि यह एक मरती हुई सभ्यता है. कभी हरित क्रांति के अगुआ के रूप में प्रसिद्ध पंजाब, आज कैंसर के गढ़ के रूप में जाना जाता है. बठिंडा से बीकानेर जाने वाली ट्रेन को "कैंसर ट्रेन" कहा जाने लगा, क्योंकि इसके यात्रियों में अधिकतर कैंसर के मरीज होते हैं. यह समस्या केवल कैंसर तक सीमित नहीं है. कई अन्य बीमारियों का प्रकोप भी फैलता जा रहा है.
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पंजाब के किसानों को यह अहसास नहीं था कि जिन रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों को वे एक वरदान मानकर अपना रहे हैं, वही एक दिन उनके लिए अभिशाप बन जाएंगे. हालांकि, 90 के दशक में कुछ लोगों को यह समझ में आने लगा था कि पंजाब में क्या हो रहा है. इनमें से एक थे स्वदेशी पत्रिका के कार्यकारी संपादक, उपेंद्र दत्त. उन्हें ऐसी कई जानकारियां मिलीं जिन्होंने उन्हें अंदर तक झकझोर दिया. उपेंद्र दत्त को 1996 में एक रिपोर्ट पढ़ने को मिली, जिसमें बताया गया था कि जिन रसायनों का आज कीटनाशकों के रूप में इस्तेमाल हो रहा है, उन्हें अमेरिका ने वियतनाम युद्ध के दौरान रासायनिक हथियार के तौर पर विकसित किया था. इसके बाद, इन रसायनों में मामूली परिवर्तन कर कृषि क्षेत्र में काम कर रही बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने इन्हें किसानों के बीच बेचना शुरू कर दिया. इस खुलासे ने उपेंद्र दत्त को हिला कर रख दिया.
उपेंद्र दत्त ने बताया कि 1996 में किसी ने उनसे कहा कि ये केमिकल खेती पंजाब एक मरती हुई सभ्यता है, जहां अब कृषि का संकट नहीं, बल्कि अस्तित्व का संघर्ष है. उन्होंने कहा, इसके बाद मैंने सोचा इस केमिकल खेती के प्रणाली के चलते किसान और उनके परिवार धीरे-धीरे कैंसर सहित अन्य घातक बीमारियों की चपेट में आकर खत्म हो जाएंगे. चाहे हमारे माता-पिता हों, भाई-बहन या बच्चे. यह जहरीली खाद्य शृंखला सबको अपनी गिरफ्त में ले लेगी. यह सोचकर मैं रात भर सो नहीं सका.
इस बात ने भीतर तक झकझोर दिया और उन्होंने खेती की इस प्रणाली में बदलाव के लिए कदम उठाने का निर्णय लिया. जब उन्होंने किसानों के साथ पहली बैठक की, तो उन्हें जवाब मिला, "हमारे खेतों में जैविक खेती का कोई नामोनिशान नहीं था." उन्होंने महसूस किया कि किसानों को जागरूक करना और उन्हें जैविक खेती की दिशा में प्रोत्साहित करना बेहद जरूरी है. इसी संकल्प के साथ, उपेंद्र दत्त ने पंजाब में एक नई सोच और खेती के एक नए तरीके की शुरुआत की, ताकि किसानों को केमिकल खेती के खतरों से बचाया जा सके और एक स्वस्थ भविष्य की नींव रखी जा सके.
इसके बाद एक दशक तक वे केमिकल खेती दुष्प्रभाव के सबूतों के साथ अलख जगाने के बाद, उन्होंने लगभग एक दशक तक जमीनी स्तर पर किसानों के अपने नेटवर्क का विस्तार किया. धीरे-धीरे, उन्होंने अपने साथियों का नेटवर्क बढ़ाया. उपेंद्र दत्त को धीरे-धीरे यह समझ में आया कि पंजाब की इस समस्या का समाधान प्राकृतिक खेती में ही है. परंतु, उनके इस निष्कर्ष को सुनने के लिए लोग तैयार नहीं थे. उनकी समझ पर सवाल उठाए गए, उनका मजाक उड़ाया गया और यहां तक कि उन्हें सीआईए का एजेंट तक कह दिया गया. उन्होंने बताया कि 'मुखर विरोधियों को समझाने के बजाय, मैंने अपनी यात्रा शुरू की और ऐसे लोगों के साथ मिलकर काम किया जो मेरी सोच को समझते थे. जिसका नतीजा रहा कि '2003-2004 तक, किसानों का एक छोटा समूह जैविक खेती के विचार के इर्द-गिर्द इकट्ठा हो गया था, और फिर उन्होंने जैविक खेती पर कुछ कार्यशालाएं शुरू की थीं.
दत्त कहते हैं, "हमने राज्य के बाहर से भी विषय विशेषज्ञों को लाने का प्रयास किया." उन्होंने छोटे किसानों से मुलाकात की और जैविक खेती के पक्ष में तर्क दिए. किसानों को जैविक खेती के बारे में गंभीरता से सोचने के लिए प्रेरित किया. उपेंद्र दत्त को पहली सफलता तब मिली जब उनके प्रयासों से 2005 में पीजीआई चंडीगढ़ ने एक रिपोर्ट जारी की, जिसमें स्वीकार किया गया कि पंजाब में कैंसर के बढ़ते मामलों का सीधा संबंध यहां के खेतों में इस्तेमाल होने वाले कीटनाशकों से है. पंजाबियों के खून में पेस्टीसाइड की मात्रा खतरनाक रूप से बढ़ गई है.
इसी के बाद, 2005 में उन्होंने "खेती विरासत मिशन" की स्थापना की. खेती विरासत मिशन का उद्देश्य किसानों के लिए नए तरीके की खेती की शुरुआत करने की थी, ताकि किसानों को केमिकल खेती के खतरों से बचाकर स्वस्थ भविष्य की नींव रखी जा सके. उपेंद्र दत्त ने किसानों के साथ मिलकर जैविक खेती, टिकाऊ कृषि, जैव विविधता और पारंपरिक फसलों के पुनरुद्धार पर जोर देते हुए KVM यानी कि खेती विरासत मिशन की स्थापना की. आज केवीएम पंजाब राज्य में खेती के तरीके को बदलने में अहम भूमिका निभा रहा है. उपेंद्र दत्त के नेतृत्व में, खेती विरासत मिशन ने पंजाब में अपनी एक खास पहचान बनाई है. इस मिशन ने जैविक तरीके से कपास, बाजरा, रागी जैसे मोटे अनाज उगाने पर जोर दिया है, जिसका नतीजा है कि पंजाब में मिलेट्स की खेती और उपभोग में वृद्धि हुई है. उपेंद्र दत्त ने अपने काम को केवल आर्थिक नहीं, बल्कि मनोवैज्ञानिक और सांस्कृतिक पुनरुत्थान के रूप में भी देखा और अपने मिशन को देशभक्ति और आध्यात्मिकता से जोड़ा है.
साल 2010 में, "खेती विरासत मिशन" (KVM) ने पंजाब के गांवों में जैविक रसोई बागवानी की पहल की शुरुआत की. इस परियोजना के तहत, महिलाओं को उनके किचन गार्डन में जैविक तरीकों से सब्जियां उगाने का प्रशिक्षण दिया गया. इस पहल का विस्तार 60 से अधिक गांवों तक हो गया, जिससे लगभग 2000 महिलाएं जैविक खेती के साथ जुड़ गईं. 2015 में, KVM ने 'कुदरती किसान हाट' नामक एक बाजार की स्थापना की, जहां किसान और उपभोक्ता सीधे एक-दूसरे से जुड़ सकते थे. इस पहल ने किसानों को अपनी उपज पर पूर्ण स्वामित्व प्रदान किया और उपभोक्ताओं को स्वस्थ और जैविक भोजन तक पहुंचने में मदद की.
'कुदरती किसान हाट' नामक ये बाजार अबोहर, फरीदकोट, जालंधर, बठिंडा, लुधियाना, बटाला, गुरदासपुर, मुक्तसर, बरनाला, कोटकपूरा, संगरूर, और अमृतसर जैसे शहरों में हर हफ्ते आयोजित किए जाते हैं. उपेंद्र दत्त की यह यात्रा संघर्षों और चुनौतियों से भरी रही, लेकिन उनका दृढ़ संकल्प और किसानों के साथ गहरा जुड़ाव पंजाब में जैविक खेती के आंदोलन को एक नई दिशा देने में सफल रहा. इन बाजारों में जैविक उत्पादों की बिक्री के लिए किसानों का एक बड़ा नेटवर्क तैयार हुआ, जो न केवल जैविक खेती को प्रोत्साहित करता है, बल्कि किसानों की आय और जीवन स्तर में भी सुधार लाता है.
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इस प्रकार, "खेती विरासत मिशन" ने पंजाब के किसानों को रासायनिक खेती के खतरों से बचाने और एक स्वस्थ, टिकाऊ, और पारंपरिक कृषि प्रणाली को पुनर्जीवित करने में अहम भूमिका निभाई है. इसका प्रभाव न केवल पर्यावरण के संरक्षण में मददगार साबित हुआ, बल्कि पंजाब के कृषि परिदृश्य को भी पुनः परिभाषित किया.
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