चुनौती और संघर्ष की यह कहानी केरल के अलाप्पुझा जिले के किसान केपी उदयकुमार की है. 15 साल पहले वे कारपेंटर का काम करते थे. काम के दौरान ऐसी घटना हुई कि उनकी दाईं आंख की रोशनी चली गई. इसके बाद भी उन्होंने हार नहीं मानी और कारपेंटरी का काम छोड़कर खेती में लग गए. उन्होंने अपने गृह जिला अलाप्पुझा के महादेवीकाडु में खेती का काम शुरू किया. आज वे इसमें बड़ी सफलता पा चुके हैं और वे इस पेशे से खुश भी हैं.
आज उदयकुमार ऑर्गेनिक फार्मिंग के क्षेत्र में बड़ा नाम कमा रहे हैं. वे 2.5 एकड़ खेत में सब्जी, फल और फलों की खेती करते हैं. उन्होंने दो एकड़ में एक एक्वाकल्चर फार्म भी खोल रखा है. खेती-बाड़ी का नतीजा है कि किसान उदयकुमार आज हर महीने 1 लाख रुपये तक की कमाई करते हैं. उनकी दृढ़ इच्छाशक्ति और काम के प्रति जुनून से यह साबित होता है कि लाख चुनौतियों और कठिनाइयों के बीच भी सफलता की राह निकाली जा सकती है.
58 साल के उदयकुमार कहते हैं, "एक लकड़ी के कारीगर के रूप में मेरा करियर अचानक खत्म हो गया, जब लकड़ी का एक टुकड़ा काम करते समय मेरी दाहिनी आंख पर लगा. इससे मेरी रोशनी चली गई और मेरी जिंदगी हमेशा के लिए बदल गई. मैंने अपने पिता के नक्शेकदम पर चलने का फैसला किया और खेती-बाड़ी में हाथ आजमाया. शुरुआती सालों में मुश्किलों के बाद, मुझे सफलता मिलनी शुरू हुई. खेती-बाड़ी ने मुझे जीवन में आने वाली बाधाओं से उबरने में मदद की है." उदयकुमार ने 'द हिंदू' से यह बात कही.
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आज उनके खेत में केमिकल फ्री सब्जियां और फल उगाए जाते हैं, जिनमें पालक, बैंगन, हरी मिर्च, टमाटर, करेला, चिचिंडा, खीरा, मूंगफली आदि शामिल हैं. चूंकि खेत पानी से घिरा हुआ है, इसलिए वह किनारे पर चिचिंडा और करेले के पौधे लगाकर और जलभराव वाले क्षेत्र पर जाली लगाकर जगह का बेहतर उपयोग करते हैं. मूंगफली को ग्रो बैग में उगाया जाता है जिसे मछली फार्म के ऊपर बने फुटब्रिज पर रखा जाता है.
आजकल औसतन उनके खेत में पीक अवधि के दौरान प्रतिदिन 50 किलो से अधिक सब्जियां पैदा होती हैं. इसके अलावा, वह हर महीने आठ अलग-अलग सब्जियों के लगभग 30,000 पौधे तैयार करते हैं और उन्हें अपने इको-शॉप के जरिए बेचते हैं. यह इको-शॉप दो एकड़ में फैले एक्वाकल्चर फार्म पर बनाया गया है. वे ‘कट्टुरुम्बु’ ब्रांड नाम से जैविक खाद भी बनाते हैं, जिसे वह 10 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बेचते हैं.
किसान उदयकुमार कहते हैं कि कुछ साल पहले उनके बेटे को मस्कुलर डिस्ट्रॉफी का पता चलने के बाद उन्होंने पूरी तरह से जैविक खेती अपना ली. वे कहते हैं, "मैं अपने बेटे और क्षेत्र के ज्यादा से ज्यादा लोगों को केमिकल फ्री भोजन उपलब्ध कराना चाहता हूं." उन्होंने पिछले कुछ सालों में कई पुरस्कार जीते हैं, जिसमें कुछ साल पहले कृषि विभाग द्वारा सब्ज़ी किसानों के लिए शुरू किया गया पुरस्कार भी शामिल है.
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