
"उत्तम खेती मद्धम वाण, नीच चाकरी भी निदान". बेशक संस्कृत की कहावत एक दौर में काफी प्रचलित और प्रासंगिक थी. यह एक ऐसा दौर था जब समाज का ताना-बाना इसी के इर्द-गिर्द बुना जाता था. संस्कृत की इस कहावत का अर्थ होता है खेती ही समाज में सर्वोत्तम काम है और अगर आप खेती नहीं करते हैं तो व्यापार करना चाहिए. किसी और की नौकरी करना नीच काम है. हालांकि यह भी नहीं करने पर भीख मांग कर अपना पेट आप भर सकते हैं. हालांकि समय के साथ यह अवधारणा बदलती चली गई. लेकिन समय का पहिया एक बार फिर वापस घूमकर वहीं पहुंच रहा है और आज की युवा पीढ़ी फिर से उस कहावत को चरितार्थ करने में लग गई. आज युवा नौकरी छोड़कर कृषि को अपना रहे हैं और अच्छी सफलता हासिल कर रहे हैं.
झारखंड के बोकारो स्थित पेटवरवार प्रखंड के युवा पंकज रॉय आज की तारीख में उसी कहावत को चरितार्थ करते नजर आ रहे हैं. एक वक्त था जब पढ़ाई करके पंकज दुबई के बैंक में अच्छे पद और अच्छी सैलरी पर नौकरी कर रहे थे. पर खेती करने के लिए उन्होंने नौकरी छोड़ दी. आज कृषि के दम पर पंकज ने झारखंड में अपनी अगल पहचान बनाई है. कृषि के प्रति अपनी समझ और तकनीक के इस्तेमाल को लेकर वे युवा किसानों के बीच काफी प्रसिद्ध और युवा किसानों को खेती बाड़ी से जुड़ी तकनीक और तथ्यों की जानकारी भी देते रहते हैं. बेहतर खेती करने के लिए प्रोत्साहित भी करते हैं.
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किसान परिवार से ताल्लुक रखने वाले पंकज रॉय का बचपन बोकारो के एक गांव में बीता. घर गांव में अपने खेतों में खेती बारी होते देखा. हालांकि हजारीबाग के कॉलेज से स्नातक की डिग्री हासिल करने के बाद उन्होंने इंदिरा गांधी ओपेन यूनिवर्सिटी से एमबीए की डिग्री हासिल की. फिर उन्होंने आदित्य बिरला समूह, आईसीआईसीआई बैंक और यस बैंक जैसे संस्थानों में काम किया. इसके अलावा दुबई के एक बैंक में तीन सालों तक काम किया. विदेश में रहने के दौरान और अच्छी सैलरी पाते हुए भी अपने गांव और खेती को लेकर पंकज रॉय का प्रेम जगा रहा और उन्होंने नौकरी अंततः नौकरी छोड़कर अपने गांव में बसने का और खेती करने का फैसला कर लिया.
हालांकि काम के दौरान भी पंकज कृषि और किसानों से जुड़ी समस्याओं की जानकारी हासिल करते रहते थे और उसका आकलन और अध्ययन करते रहते थे. इसके बाद उन्होंने 2011 में नौकरी छोड़ने का मन बना लिया. इस दौरान उनकी माता जी को कैंसर हो गया. तब पंकज ने अपनी मां की सेवा करने की ठानी और गांव में रहकर खेती करने का फैसला कर लिया. पर उनके फैसले का उनके घरवालों ने ही विरोध किया. घरवाले नहीं चाहते थे कि लाखों रुपये की तनख्वाह पाने वाले पंकज गांव में खेती किसानी करें क्योंकि यह एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें अनिश्चितता, संघर्ष और चुनौती है. पंकज बताते हैं कि इस समय वे घरवालों से बहस करने से बचने के लिए घर के बाहर जाकर अपने खेतों में सोते थे.
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घरवालों के विरोध के बाद भी पंकज नहीं माने और क्षेत्रीय स्तर पर मौजूद कृषि विज्ञान केंद्र, जिला कृषि कार्यालय और बिरसा कृषि विश्वविद्यालय जाकर खेती बारे से जुड़े तथ्यों की जानकारी हासिल करने लगे. साथ ही इसकी आधुनिक खेती के बारे में जानकारी जुटाने लगे. इस दौरान वे आईसीएआर रांची के अलावा और भी केंद्रीय संस्थानों में गए और आधुनिक कृषि से जुड़ी जानकारी हासिल की. पूरी जानकारी हासिल करने बाद उन्होंने पहली बार साल 2016 में अपनी तीन एकड़ पुश्तैनी जमीन पर तरबूज की खेती करने का फैसला किया. इसके लिए उन्होंने ड्रिप इरिगेशन प्रणाली को अपनाया. इस तरह से बोकारो जिले में वे तरबूज की खेती करने वाले पहले किसान बन गए.
उनकी इस पद्धति को देखकर कई स्थानीय किसानों ने उनका मजाक उड़ाया और कहा कि इस तकनीक से खेती नहीं होगी और उपज नहीं होगी. लेकिन पंकज ने अपनी सूझबूझ और समझ का सहारा लिया. बेहतर तकनीक और उचित प्रबंधन का इस्तेमाल करके उन्होंने तरबूज की खेती की और पहली बार भी तीन एकड़ में उन्होंने 75 टन का उत्पादन हासिल किया. जो पंकज, उनके परिवार वालों और अन्य किसानों के लिए आश्चर्य कर देने वाला था. पर तरबूज की पैदावार की हकीकत सबके सामने थी. इसके बाद से ही पंकज रॉय ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.
पंकज की इस सफलता के बाद और भी युवा किसान उनसे जुड़ते चले गए. जिससे पंकज को झारखंड में कृषि और किसानों से जुड़ी समस्याओं और चुनौतियों से वाकिफ होने का अवसर मिला. तब पंकज रॉय को यह अहसास हुआ कि राज्य में कृषि को और बेहतर बनाने के लिए और भी संघर्ष की जरूरत है. पंकज रॉय के पास वर्तमान में 75 एकड़ पैतृक जमीन है. इसमें से लगभग 20 एकड़ में वे सब्जियों की खेती करते हैं जिसमें मुख्य तौर पर वो तरबूज, खीरा, करेला, बैंगन, टमाटर, आलू, प्याज और लहसुन इत्यादि शामिल हैं. वे कृषि की उन्नत तकनीकों का इस्तेमाल करते हुए खेती करते हैं. इसके अलावा 15 एकड़ में मछली पालन का भी काम करते हैं. अभी हाल में उन्होंने इसमें बत्तख बालन भी शुरू किया है. इस तरह से पंकज सालाना 8 से 10 लाख रुपये कमाते हैं.
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पंकज रॉय बताते हैं कि भविष्य में उनकी योजना अपने फार्म को एग्रो टूरिज्म के तौर पर विकसित करने की है जिसमें रहने और खाने की समुचित व्यवस्था होगी. साथ ही कोई भी व्यक्ति या संस्था से जुड़े लोग यहां पर आकर कृषि से जुड़ी जानकारी हासिल कर सकेंगे. इतना ही नहीं, पंकज पिछले पांच सालों से मोटे अनाज को लेकर भी गंभीर और सकारात्मक प्रयास कर रहे हैं. उन्होंने मोटे अनाज को लेकर एक स्टार्टअप मिल लाइफ भी शुरू किया है. इसका उत्पादन अमेजॉन और फ्लिपकार्ट के जरिए लोगों तक पहुंच रहा है. उनका मानना है कि झारखंड में मोटे अनाजों की खेती को लेकर बड़ी संभावनाएं हैं.
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