मछली पालन में झारखंड आज काफी आगे बढ़ रहा है. यहां पर मछली उत्पादन में बढ़ोतरी हुई है. इसके पीछे यहां के मछली उत्पादक किसानों की मेहनत छिपी हुई है. राजधानी रांची के रातू में मछली पालन करने वाले निशांत भी उन्हीं युवा किसानों में से एक हैं जिन्होंने अच्छी नौकरी छोड़कर मछली पालन को चुना और आज सफलता की कहानी लिख रहे हैं. निशांत के इस सफर में उनके और दो दोस्तों ने मदद की है. उन तीनों ने मिलकर किंगफिशरीज की स्थापना की. आज किंगफीशरीज मछली उत्पादन के क्षेत्र में झारखंड में एक जाना माना नाम है. यहां मछली पालन की आधुनिकतम तकनीकों का प्रयोग किया जाता है.
मछली पालन की शुरुआत करने को लेकर निशांत बताते हैं कि वे अपने फार्म में स्थित तालाब में बैठकर कुछ नया काम शुरू करने के बारे में सोच रहे थे. फिर उन्होंने विचार किया कि मछली पालन किया जाए, क्योंकि उनके पास मछली पालन से जुड़े जरूरी इंफ्रास्ट्रक्चर और तालाब आदि उपलब्ध थे. इसके बाद उन्होंने एक 20X24 टैंक से मछली पालन की शुरुआत की. शुरुआती दौर में सफलता नहीं मिली. एक बार के लिए तो लगा कि इस काम को छोड़ कर कुछ और किया जाए. पर उन्होंने हार नहीं मानी. फिर से जीरा डालकर मछली पालन शुरू किया. इस बार उन्हें सफलता मिली. इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.
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एक छोटे से टैंक से शुरू हुआ मछली पालन का सफर आज काफी बड़ा हो चुका है. फार्म के पास आज 98 एकड़ का तालाब है जिसमें केज कल्चर और आरएफएफ तकनीक से मछली पालन किया जाता है. पारंपरिक तकनीक से मछली पालन के लिए एक तीन एकड़ का तालाब है जहां पर सघन मछली पालन किया जाता है. निशांत बताते हैं कि पारंपरिक मछली पालन में सफलता मिलने के बाद उन्होंने मछली उत्पादन को बढ़ाने के लिए आधुनिक तकनीक को अपनाने के बारे में सोचा और 24 बॉयोफ्लॉक टैंक से इसकी शुरुआत की. आज उनके पास 74 बॉयोफ्लॉक टैंक हैं. प्रत्येक टैंक की क्षमता 15 हजार लीटर है.
बॉयोफ्लॉक, पॉन्ड के अलावा किंशफिशरीज में 10 लाख लीटर की क्षमता आएएएस (Recirculatory Aquaculture System) लगा हुआ है. जो पूरी आईओटी से संचालित है. यह पूरी तरह से स्वचालित है. इसमें पानी की गुणवत्ता और ऑक्सीजन की कमी होने पर यह अपने आप खुद को ठीक कर लेता है. निशांत ने बताया कि हाल ही में उनके फार्म में एक बॉयोफ्लॉक पॉन्ड बनवाया है जिसकी क्षमता 15 लाख लीटर है. इस तरह से यह देश का पहला ऐसा फार्म है जहां पर एक साथ इतने तकनीक से मछली पालन किया जाता है.
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मछली पालन के अलावा किंगफिशरीज की तरफ से एक्वाटूरिज्म को बढ़ावा देने के लिए भी पहल की गई है. फिश फार्म के साथ ही यहां छोटानागपुर फन कैसल के नाम से एम्यूजमेंट पार्क है. अगर कोई यहां पर आकर रहना चाहता है तो उनके रहने के लिए बेहतरीन सुविधाओं से लैस रिसोर्ट है. एक वाटर पार्क भी है. जो लोग मछली पालन के संबंधित जानकारी लेना चाहते हैं वे यहां पर आकर जानकारी हासिल कर सकते हैं और देख भी सकते हैं.
किंगफिशरीज में हर साल लगभग 200-250 टन से अधिक मछली की पैदावार होती है. इनमें इंडियन मेजर कार्प (रोहू, कतला और मृगल) के अलावा ग्रास कार्प, अमूर कार्म, कॉमन कार्प, सिंघी, पाब्दा, वियतनामी कोई, मोनोसेक्स तिलापिया, पंगास और सिल्वर कार्प मछली का पालन किया जाता है. मछली बेचने वाले व्यापारी और ग्राहक उनके फार्म से आकर मछली खरीद ले जाते हैं. हाल ही उन्होंने ओर्नामेंटल मछली पालन की शुरुआत की है. झारखंड में यह पहली बार है जब बॉयोफ्लॉक टैंक में ओर्नामेंटल मछली जैपनीज पोई का पालन किया जा रहा है.
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मछली पालन के क्षेत्र में इस उपलब्धि के लिए निशांत को कई राष्ट्रीय स्तर और राज्य स्तर के पुरस्कार मिल चुके हैं. उन्हें दो बार डॉ हीरालाल चौधरी सम्मान मिल चुका है. इसके साथ एक बार झारखंड गौरव सम्मान मिला है और एक बार मोतीपुर में बेस्ट प्रोग्रेसिव फार्मर का अवार्ड सीआईएफई की तरफ से दिया गया है. निशांत बताते हैं कि वे अपनी इस उपलब्धि से खुश हैं. उन्होंने बताया कि उन्हें सरकारी योजनाओं का भी लाभ मिला है. इसके जरिए मछली पालन में नई तकनीक को अपनाना उनके लिए आसान हुआ है. वे युवाओं को संदेश देते हुए कहते हैं कि अगर सही दिशा में मेहनत की जाए तो सफलता जरूर मिलती है.
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