जलकुंभी को पर्यावरण का आतंकवादी पौधे के रूप में पहचाना जाता है. यह एक जलीय खरपतवार है. वहीं तालाब से लेकर नदियों तक इस जलीय खरपतवार से लोगों को ही नहीं बल्कि पर्यावरण को भी काफी ज्यादा नुकसान पहुंच रहा है. सरकार हर साल नदियों और तालाबों से जलकुंभी हटाने के लिए करोड़ों रुपए की धनराशि को खर्च करती है. वहीं इस बेकार पौधे को ही असम की महिलाओं ने अपनी कमाई का जरिया बना डाला.
असम के कामरूप की रहने वाली शिवानी सिंह ने खुद को पहले जलकुंभी के पौधे से सामान बनाने के लिए तैयार किया. आज वे अकेले नहीं बल्कि उनके साथ सैकड़ों महिलाएं जलकुंभी से घरेलू उपयोग में आने वाली टोकरी, चटाई और अलग-अलग तरह की बास्केट को बनाकर बाजार से अच्छी आमदनी कर रही हैं. जलकुंभी में कई औषधीय गुण भी होते हैं, जिसके चलते कई बीमारियों में भी अब इसके गुणों का उपयोग किया जाने लगा है.
जलकुंभी से value-added प्रोडक्ट बनाने वाली शिवानी सिंह बताती है कि असम की राजधानी गुवाहाटी के पास कामरूप में रहती है. उनके द्वारा जलकुंभी से कई तरह के value-added प्रोडक्ट बनाए जा रहे हैं. वह मूलत बिहार की रहने वाली है. वहीं उन्होंने जलकुंभी कि बेकार पौधे को अपनी आमदनी का जरिया बनाने के लिए काफी काम किया है. इस पौधे को पहले तालाब से निकालकर सुखाते हैं. वही सूखने के बाद इसके रेशों से वह कई तरह के घरेलू उपयोग में आने वाले सामान को बनाती हैं. उनके साथ सैकड़ों महिलाएं जुड़ी हुई है. वहीं इससे उनको अच्छी आमदनी भी हो रही है. जलकुंभी को उपयोग में लाकर चटाई ,टोकरी ,लॉन्ड्री बॉस्केट, फ्रूट बास्केट टी कोस्टर और महिलाओं के पर्स जैसे कई उपयोगी सामान बनाए हैं, जिनकी बाजार से लेकर विदेशों तक अच्छी डिमांड है. जलकुंभी से बने हुए सामान पूरी तरीके से इको फ्रेंडली है.
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जलकुंभी का पौधा को उत्तर भारत में बेकार समझा जाता है, लेकिन इसमें पोषक तत्व भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं. जलकुंभी के ऊपर काम करने वाली शिवानी सिंह बताती है कि इसमें विटामिन ए, विटामिन बी, प्रोटीन, मैग्नीशियम जैसे कई पोषक तत्व है. इसके अलावा ब्लड प्रेशर, हृदय रोग और मधुमेह में जलकुंभी काफी फायदेमंद मानी जाती है. इसके अलावा इसकी सब्जी और सलाद भी खाई जाती है. इसका फूल सजावट के लिए उपयोग किया जाता है.
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