scorecardresearch
Mustard Price: एमएसपी से कम हुआ सरसों का दाम, खरीद नीत‍ि पर बड़ा सवाल...अब क्या करेंगे क‍िसान?

Mustard Price: एमएसपी से कम हुआ सरसों का दाम, खरीद नीत‍ि पर बड़ा सवाल...अब क्या करेंगे क‍िसान?

हम करीब सवा लाख करोड़ रुपये का खाद्य तेल आयात कर रहे हैं, लेक‍िन अपने देश के क‍िसानों को अच्छा दाम द‍िलाने की पॉल‍िसी नहीं बना रहे. नतीजा यह है क‍ि जो पैसा अपने देश के क‍िसानों को म‍िलना चाह‍िए वह इंडोनेश‍िया, मलेश‍िया, रूस, यूक्रेन और अर्जेंटीना जैसे देशों के क‍िसानों की जेब में जा रहा है.  

advertisement
सरसों के दाम में भारी ग‍िरावट (Ministry of Agriculture). सरसों के दाम में भारी ग‍िरावट (Ministry of Agriculture).

देश में खाद्य तेलों की कुल जरूरत का लगभग 55 फीसदी हम दूसरे देशों से आयात कर रहे हैं, इसके बावजूद ओपन मार्केट में सरसों का दाम (Mustard Price) न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी से नीचे आ गया है. रबी मार्केटिंग सीजन 2023-24 के लिए सरसों का एमएसपी 5450 रुपये प्रत‍ि क्व‍िंटल तय क‍िया गया है. देश के सबसे बड़े सरसों उत्पादक सूबे राजस्थान की मंड‍ियों में इसका न्यूनतम, औसत और अध‍िकतम दाम...कोई भी एमएसपी के आसपास नहीं है. सवाल ये है क‍ि खाद्य तेलों की इतनी मांग के बावजूद सरसों का दाम इतना कम क्यों हैं? क्या सरकार अब खाद्य तेलों का आयात कम करके क‍िसानों को राहत देगी? या फ‍िर स‍िर्फ उन फसलों का दाम कम करने की च‍िंता में डूबी रहेगी ज‍िसका बाजार भाव एमएसपी से ऊपर है? 

प‍िछले दो साल से क‍िसानों को ओपन मार्केट में सरसों का भाव एमएसपी से अध‍िक म‍िल रहा था. इसल‍िए उन्होंने दूसरी फसलों को छोड़कर त‍िलहन की खेती बढ़ाई, खासतौर पर सरसों की खेती का काफी व‍िस्तार क‍िया. क‍िसानों को क्रॉप डायवर्स‍िफ‍िकेशन के ल‍िए कहना नहीं पड़ा. यह नहीं बताना पड़ा क‍ि त‍िलहन फसलों में कम पानी की खपत होती है इसल‍िए इसकी खेती ज्यादा कर‍िए. दाम अच्छा म‍िला तो क‍िसानों ने सरकार की अपील के बावजूद यह काम क‍िया. इसल‍िए इस बार र‍िकॉर्ड पैदावार का अनुमान है. क‍िसानों की यह कोश‍िश हमें त‍िलहन में आत्मन‍िर्भरता की ओर ले जा रही थी. लेक‍िन अब ज‍िस तरह से दाम एमएसपी से नीचे आ गए हैं, उसे देखकर यही लगता है क‍ि अगले साल एक बार फ‍िर सरसों का रकबा कम हो जाएगा. 

इसे भी पढ़ें: कृष‍ि क्षेत्र में कार्बन क्रेड‍िट कारोबार की एंट्री, कमाई के साथ-साथ अब ग्लोबल वार्म‍िंग भी कम करेंगे क‍िसान

दूसरे देशों को फायदा 

इस साल यानी रबी फसल सीजन 2022-23 में र‍िकॉर्ड 98.02 लाख हेक्टेयर में सरसों की बुवाई हुई थी, जो 2021-22 के मुकाबले 6.77 लाख हेक्टेयर अध‍िक थी. ऐसे में इस बार केंद्रीय कृष‍ि मंत्रालय ने 128.18 लाख टन उत्पादन का अनुमान लगाया है, जो अब तक की र‍िकॉर्ड पैदावार होगी. इसका उत्पादन 2021-22 की तुलना में 8.55 लाख टन अधिक है. प‍िछले साल 119.63 लाख टन सरसों पैदा हुई थी. उत्पादन में इतनी उछाल देश के ल‍िए बहुत अच्छी है. क्योंक‍ि हम सालाना 1.3 लाख करोड़ रुपये का खाद्य तेल आयात कर रहे हैं. 

पॉल‍िसी पर बड़ा सवाल 

सरकारी नीतियों की वजह से इतनी बड़ी रकम अपने देश के क‍िसानों की जेब में जाने की बजाए इंडोनेश‍िया, मलेश‍िया, रूस, यूक्रेन और अर्जेंटीना जैसे देशों के क‍िसानों के पास पहुंच रही है. ऐसे में जब तक अपने देश में क‍िसानों को त‍िलहन का अच्छा दाम देने की नीत‍ि नहीं बनेगी तब तक हम खाद्य तेलों के मामले में इन्हीं देशों पर न‍िर्भर रहेंगे. कृष‍ि व‍िशेषज्ञ ब‍िनोद आनंद का कहना है क‍ि त‍िलहन में भारत को आत्मन‍िर्भर बनाना है तो क‍िसानों को सरसों और सोयाबीन जैसी फसलों का अच्छा दाम देना होगा. न स‍िर्फ अच्छा भाव बल्क‍ि ऐसी खेती करने वालों को प्रीम‍ियम भी देना चाह‍िए.

ऐसी नीत‍ियां कौन बनाता है? 

किसान महापंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल जाट त‍िलहन फसलों में भारत के आत्मन‍िर्भर न होने के पीछे सरकार को ज‍िम्मेदार बताते हैं. उनका कहना है क‍ि त‍िलहन की खरीद नीत‍ि ही गलत है. त‍िलहन फसलें एमएसपी के दायरे में हैं, लेक‍िन एक बड़ा खेल भी क‍िया गया है. इन फसलों की अध‍िकतम सरकारी खरीद कुल उत्पादन की स‍िर्फ 25 फीसदी ही हो सकती है. इस वजह से 75 फीसदी उपज एमएसपी के दायरे से बाहर है. हम ज‍िन फसलों का आयात कर रहे हैं उनकी सरकारी खरीद में घरेलू स्तर पर इतनी बाधा क्यों है? क्यों क‍िसानों की आय पर कुल्हाड़ी चलाने वाली नीत‍ियां बनाई जा रही हैं?  

जाट का कहना है क‍ि सरकारी खरीद की अध‍िकतम अवध‍ि 90 द‍िन ही रखी जाती है. उसमें सरकार छुट्ट‍ियां भी ग‍िन लेती है. कभी बोर‍ियां नहीं होती, कभी स्टाफ नहीं होता और कभी तोल नहीं होती...ऐसे में खरीद 60-65 द‍िन ही हो पाती है. जो अध‍िकारी ऐसी क‍िसान और देश व‍िरोधी पॉल‍िसी बनाते हैं सरकार उन्हें पुरस्कृत करती है. हमारे अध‍िकारी आयात वाली नीत‍ियों को प्रमोट करते हैं. हम सरसों, मूंगफली जैसी फसलों की खेती करने वालों को दाम नहीं देते और सेहत के ल‍िए खतरनाक पॉम आयल को इंपोर्ट करते हैं. यही नहीं इतनी बड़ी रकम दूसरे देशों को दे देते हैं.

दाम म‍िला तो बढ़ती गई खेती

  • रबी सीजन 2020-21 के मुकाबले 2021-22 में सरसों की खेती के रकबा में 18.32 लाख हेक्टेयर की वृद्ध‍ि हुई. 
  • साल 2021-22 में 91.44 लाख हेक्टेयर में सरसों की बुवाई हुई, जबकि 2020-21 में महज 73.12 लाख हेक्टेयर क्षेत्र था. 
  • साल 2017-18 में स‍िर्फ 67.04 लाख हेक्टेयर में ही सरसों की खेती हुई थी. क्योंक‍ि दाम एमएसपी से कम म‍िलता था. 
  • यकीन मान‍िए कि सरसों का दाम एमएसपी से ज्यादा नहीं होता तो बुवाई का रकबा इतना नहीं बढ़ता.
  • जब ओपन मार्केट में क‍िसानों को एमएसपी से कम दाम म‍िलता था तब सरकारें सरसों खरीदने से परहेज करती थीं. 
  • साल 2005-06 में सरसों का उत्पादन 81.3 लाख टन था, जो 2019-20 तक बढ़कर 91.24 लाख टन ही हो सका. 
  • यानी डेढ़ दशक में सरसों उत्पादन स‍िर्फ 9.94 लाख टन बढ़ा. वजह कम बुवाई. क्योंक‍ि दाम बहुत कम म‍िलता था. 

फ‍िर कम हो जाएगी खेती

हालांक‍ि, अखिल भारतीय खाद्य तेल व्यापारी महासंघ के अध्यक्ष शंकर ठक्कर का कहना है क‍ि अब तक की अंतरराष्ट्रीय स्थ‍ित‍ियों के मुताब‍िक यही कह सकते हैं क‍ि बंपर प्रोडक्शन के बावजूद सरसों का भाव एमएसपी से कम नहीं होगा. ब्लेंड‍िंग बंद होने और सरसों के प्रत‍ि रुझान की वजह से इसके भाव में लांग टर्म में कमी की उम्मीद नहीं है. क‍िसानों को इस साल भी अच्छा भाव म‍िलेगा तो अगले साल वो अपनी खेती का और व‍िस्तार करेंगे. यह देश के ल‍िए फायदे वाला होगा क्योंक‍ि खाद्य तेलों के मामले में अब इंपोर्ट पर न‍िर्भर हैं. लेक‍िन अगर इस साल रेट कम म‍िला तो अगली बार फ‍िर इसकी खेती का रकबा कम हो सकता है. सोयाबीन के बाद सरसों दूसरी सबसे महत्वपूर्ण तिलहन फसल है. खाद्य तेलों में इसका योगदान लगभग 28 परसेंट है.

सरसों का क‍ितना है दाम 

  • राजस्थान की कोटा मंडी में 7 मार्च को 2915 क्व‍िंटल सरसों की आवक हुई. यहां पर न्यूनतम दाम 4631, औसत भाव 5131 और अध‍िकतम दाम 5371 रुपये रहा. 
  • राष्ट्रीय कृष‍ि बाजार (E-NAM) के अनुसार अजमेर की केकड़ी मंडी में न्यूनतम दाम 4500, औसत भाव 5100 और अध‍िकतम दाम 5372 रुपये प्रत‍ि क्व‍िंटल रहा.  
  • हर‍ियाणा की उकलाना मंडी में 7 मार्च को सरसों का न्यूनतम दाम 4200, औसत भाव 4500 और अध‍िकतम दाम 5081 रुपये प्रत‍ि क्व‍िंटल रहा. जबक‍ि यहां पर महज 32 क्व‍िंटल सरसों की आवक हुई थी. 
  • हर‍ियाणा की ही रेवाड़ी मंडी में न्यूनतम दाम 4521, औसत भाव 4521 और अध‍िकतम दाम 5181 रुपये प्रत‍ि क्व‍िंटल रहा. जबक‍ि यहां मात्र 27 क्व‍िंटल सरसों की आवक हुई थी. 

सरकार कब देगी पूरा दाम? 

रबी मार्केटिंग सीजन 2023-24 के लिए सरसों का एमएसपी (MSP) 5450 रुपये प्रत‍ि क्व‍िंटल तय क‍िया गया है. केंद्र सरकार ने अक्टूबर 2022 में इसकी एमएसपी 400 रुपये प्रत‍ि क्व‍िंटल बढ़ा दी थी. सरकार का मानना है क‍ि सरसों उत्पादन पर क‍िसानों को प्रत‍ि क्व‍िंटल औसतन 2670 रुपये खर्च करना पड़ता है. इस पर 104 फीसदी की वृद्धि करके सरकार ने नया एमएसपी तय क‍िया है. हालांक‍ि सी-2 लागत 3740 रुपये प्रत‍ि क्व‍िंटल है. क‍िसान इसी लागत पर एमएसपी तय करने की मांग कर रहे हैं. लेक‍िन, सरकार ए2+एफएल पैमाने से एमएसपी तय कर रही है. स्वामीनाथन कमीशन सी-2 लागत की वकालत करता है.