पंजाब में बड़ी संख्या में किसान धान की फसल उगाते हैं. ऐसे में यहां पराली के निपटान की समस्या पैदा होती है. छोटे और सीमांत किसानों का कहना है कि उन्हें पराली का निपटान करने में अधिक पैसे खर्च करने पड़ते हैं. यही वजह है कि यहां के किसान पराली जलाने लगे, जिसके चलते प्रदूषण और तमाम समस्याएं पैदा हो रही है. वहीं, इस सब से अलग लुधियाना के जटाना गांव के रहने वाले 42 साल के सीमांत किसान अमनदीप सिंह मंगत ने पराली प्रबंधन का स्थायी समाधान ढूंढ लिया है.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, अमनदीप के पास 1.5 एकड़ जमीन है, जिस पर वे धान उगाते हैं, इसके अलावा वह खेती के लिए 30 एकड़ जमीन लीज पर लेते हैं. अमनदीप ने छह साल पहले कुछ एकड़ खेत पर पराली प्रबंधन करना शुरू किया था. आज हालात ऐसे है कि वे अपने खेत के अलावा सालभर में 150 से 180 एकड़ खेत में धान की पराली के प्रबंधन का काम करते हैं. अमनदीप कृषि मशीनरी के लिए एक कस्टम हायरिंग सेंटर भी चलाते हैं.
अमनदीप ने 2018 में हैप्पी सीडर मशीन खरीदी थी. उस वक्त उन्हें केंद्र सरकार की फसल अवशेष प्रबंधन (सीआरएम) योजना के तहत 50 प्रतिशत सब्सिडी मिली थी. यह मशीन धान के डंठल में गेहूं बोती है. अमनदीप ने अपने खेत में हैप्पी सीडर मशीन का उपयोग किया. इसके बाद अगले साल उनके गांव और आस-पास के क्षेत्रों में भी किसानों ने हैप्पी सीडर किराए पर लेने लगे. इस प्रकार वे 150 से 180 एकड़ में पराली प्रबंधन की देखरेख करने लगे.
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अमनदीप बताते है कि उन्होंने पिछले छह सालों एक बार भी अपने खेत पराली नहीं जलाई है. वहीं, उनके गांव में कई अन्य किसान सीआरएम मशीनों से पराली का निपटान कर रहे हैं. गांव में अब कोई पराली नहीं जलाता है. अमनदीप ने बताया कि पुरानी हैप्पी सीडर मशीन खराब होते देख एक और नई मशीन खरीदी है, जिसपर उन्हें इसी योजना के तहत 50 प्रतिशत की सब्सिडी पर एक स्मार्ट सीडर और एक सुपर सीडर मिला है. सुपर और स्मार्ट सीडर की सहायता से धान की पराली को जलाए बिना गेहूं की बुआई की जाती है. इन मशीनों के उपयोग से पराली अवशेष मिट्टी में मिल जाते हैं, जो खाद की तरह काम करते हैं.
अमनदीप बताते हैं कि वे हैप्पी सीडर और स्मार्ट सीडर मशीन से गेहूं की बुआई के लिए लिए किसानों से 2200 रुपये प्रति एकड़ और सुपर सीडर से 2500 रुपये प्रति एकड़ फीस लेते हैं. वह 20-30 दिनों में 140 से 180 एकड़ भूमि पर बुआई कर लेते हैं. इन मशीनों से बुआई करने पर उन्हें डीजल, रखरखाव और मजदूरी की लागत निकालने के बाद 700 से 800 रुपये प्रति एकड़ की बचत होती है.
इसके अलावा अमनदीप रीपर का इस्तेमाल कर पशुओं के लिए गेहूं के अवशेष से भूसा (सूखा चारा) बनाते हैं. इस पर उन्हें हर एकड़ पर 1,400 रुपये मिलते हैं. वे हर सीजन में करीब 350 ट्रॉली भूसा बनाते हैं. इससे 180 एकड़ खेत में गेहूं के ठूंठ का निपटान होता है और अब इन अवशेषों को जलाने की जरूरत नहीं पड़ती. अमनदीप अपने सभी उपक्रमों से हर साल 17 से 18 लाख रुपये सालाना कमाई करते हैं.
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