बिहार के बांका जिले के किसानों ने मक्का की खेती में एक नई और किफायती तकनीक डिब्बलर विधि को अपनाना शुरू कर दिया है. इस पद्धति में जमीन की जुताई या केमिकल खादों की जरूरत नहीं होती है, जिससे लागत में भारी कमी आती है और पैदावार में बढ़ोतरी होती है. यह पद्धति पर्यावरण की रक्षा करने के साथ ही किसानों की कमाई बढ़ाती है.
यह विधि शुरू की है बांका के छुटिया गांव के प्रगतिशील किसान राज प्रताप भारती ने. आइए सबसे पहले जान लेते हैं कि डिब्बलर विधि क्या है. दरअसल, इस विधि में लोहे के सिरे वाली एक लकड़ी (डिब्बर) से जमीन में छोटे-छोटे गड्ढे बनाए जाते हैं और मक्का के बीज सीधे उनमें बो दिए जाते हैं. बीज के साथ वर्मी कंपोस्ट या गोबर की खाद मिलाई जाती है जिससे अंकुरण तेजी से होता है. धान की फसल के बाद बची पत्तियां जमीन में प्राकृतिक रूप से सड़ जाती हैं, जो मिट्टी की उर्वरता बढ़ाती हैं.
राज प्रताप ने करीब 13 साल पहले इस तकनीक को खुद प्रयोग करके देखा था. उन्होंने पाया कि बिना जुताई के बीज बोने पर पौधे ज्यादा हरे-भरे और मजबूत होते हैं. शुरुआत में गांव वालों की आलोचना सहने के बाद, उन्होंने 5 कट्ठे जमीन पर इस विधि को अपनाया. अब वे 10 एकड़ पर मक्का की खेती कर रहे हैं और आसपास के गांवों के किसानों को भी यह विधि सिखा रहे हैं. इस तकनीक से बांका में अब तक कुल 250 एकड़ जमीन पर मक्का की खेती हो रही है.
किसान राज प्रताप के अनुसार, डिब्बलर विधि से बीज अंकुरण दर 99% तक पहुंच जाती है, जबकि पारंपरिक खेती में यह 70-75% होती है. इसके साथ ही सिंचाई की जरूरत कम होती है और जुताई, खुदाई, केमिकल खादों की लागत बचती है. यह तरीका प्रति एकड़ लगभग ₹10,000 की लागत बचाता है.
इस सफलता को मान्यता मिली है केवीके और सबौर कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों से, जिन्होंने खेतों में जाकर फसल कटिंग ट्रायल कर उत्पादन की पुष्टि की है. बिहार के अलावा झारखंड के किसान भी इस तकनीक को सीखने बांका आते हैं.
मंहगे इनपुट लागत के बीच यह डिब्बलर विधि बिहार के किसानों के लिए एक सस्ती और टिकाऊ विकल्प के रूप में उभर रही है. आसपास के किसान इस विधि को सीख रहे हैं ताकि उन्हें खेती की लागत घटाने में मदद मिले. विधि चूंकि आसान और पूरी तरह से देसी है, इसलिए अपनाने में किसानों को किसी तरह की परेशानी नहीं हो रही है.
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