
भारत सरकार के कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के पौधा किस्म और कृषक अधिकार संरक्षण प्राधिकरण के द्वारा देश के किसानों को हर साल देसी और परंपरागत किस्मों के संरक्षण और संवर्द्धन के लिए प्लांट जीनोम सेवियर पुरस्कार दिया जाता है. अबकी बार बिहार के किसानों को भी इस पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा है. प्लांट जीनोम सेवियर कम्युनिटी अवॉर्ड के लिए बिहार के दो किसान संघ का चयन किया गया है. इसके साथ ही प्लांट जीनोम सेवियर कृषक पुरस्कार के लिए चार किसानों का चयन किया गया है. यह पुरस्कार 12 से 15 सितंबर को दिल्ली में आयोजित होने वाली किसान अधिकारों पर वैश्विक संगोष्ठी कार्यक्रम के दौरान दिया जाएगा.
किसान तक से बिहार कृषि विश्वविद्यालय सबौर के प्रसार शिक्षा के निदेशक डॉ आर. के सोहाने ने बताया कि बिहार के लिए यह बहुत गर्व की बात है. वहीं पहली बार विश्वविद्यालय सबौर से जुड़े छह किसानों को जीनोम पुरस्कार से सम्मानित और पुरस्कृत किया जा रहा है. इसके साथ ही पुरस्कार पाने वाले ये सभी राज्य के पहले किसान हैं.
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इस पुरस्कार में दो किसान समूह को दस-दस लाख रुपये और चार किसानों को एक-एक लाख रुपये दिये जाएंगे. साथ ही प्रमाणपत्र और प्रशस्ति पत्र भी दिए जाएंगे. इस पुरस्कार के लिए लीची ग्रोवर एसोसिएशन ऑफ बिहार मुजफ्फरपुर और दूसरा भागलपुर कतरनी धान उत्पादन संघ का चयन किया गया है. साथ ही चार किसानों में रोहतास जिले के अर्जुन सिंह, दिलीप सिंह सहित जमुई के अर्जुन मंडल और मुंगेर जिले के सत्यदेव सिंह का चयन किया गया है.
भागलपुर कतरनी धान उत्पादन संघ के अध्यक्ष सुबोध चौधरी को कतरनी धान की परंपरागत वैरायटी और उसके गुणों को संरक्षित करने के लिए भारत सरकार के द्वारा वर्ष 2021-22 के लिए प्लांट जीनोम सेवियर कम्युनिटी अवॉर्ड दिया जा रहा है. उनके संघ में कुल 13 किसान हैं. केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के द्वारा सम्मान मिलने से राज्य के अन्य किसानों में कतरनी की खेती सहित अन्य परंपरागत फसलों के बीजों की वैरायटी को संरक्षित करने की ललक जगेगी. साथ ही इस राशि से किसान समूह को आगे बढ़ाने में मदद मिलेगी.
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लीची ग्रोवर एसोसिएशन ऑफ बिहार. मुजफ्फरपुर को वर्ष 2020-21 के लिए पुरस्कार दिया जा रहा है. इस संघ के अध्यक्ष बच्चा सिंह कहते हैं कि उन्हें शाही और चाइना वैरायटी के अलावा विलुप्त होने वाली 12 अन्य वैरायटी के संग्रह और पौधशाला लगाने के लिए चयनित किया गया है. इसमें उन्होंने लीची की विलुप्त होने वाली गंडकी संपदा, गंडकी लालिमा, गंडकी योगिता, रोज सेंटेंड, स्वर्ण रूपा, लेट बेदाना, अर्ली बेदाना, लौंगिया, त्रिकोलिया, मंदराजी, पुरबी, लौंगन के पौधों का संग्रह किया है. आगे कहते हैं कि राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र के पूर्व निदेशक डॉ. विशालनाथ के सहयोग से लीची की वैरायटी की पहचान की गई थी. वे 2018 से लीची की विलुप्त होने वाली क़िस्मों का संग्रह कर रहे हैं. बिहार कृषि विश्वविद्यालय सबौर के द्वारा आवेदन की अनुशंसा करने पर पिछले 15 फरवरी को विशेषज्ञ की टीम ने निरीक्षण किया. उसके बाद अवार्ड के लिए चयन किया गया है.
प्लांट जीनोम सेवियर कृषक पुरस्कार के लिए पहली बार बिहार के चार किसानों का चयन हुआ है. इसमें वर्ष 2021-22 के लिए जमुई जिले के लक्ष्मीपुर प्रखंड के चिनबेरिया गांव के 80 वर्षीय अर्जुन मंडल को विलुप्त औषधीय पौधों के संरक्षण करने के लिए पुरस्कार दिया जाएगा. वहीं ये अपने फार्म हाउस में 100 से अधिक औषधीय पौधे के संरक्षण का काम कर रहे हैं.
मुंगेर जिले के लौना गांव के सत्यदेव सिंह को 'टिटुआ मसूर' के संरक्षण के लिए, रोहतास जिले के सासाराम ब्लॉक के दिलीप सिंह को 'गुलशन' नामक टमाटर के संरक्षण के लिए प्लांट जीनोम सेवियर कृषक पुरस्कार दिया जाएगा. इसके साथ ही वर्ष 2020-21 के लिए रोहतास जिले के संझौली ब्लॉक के मसोना गांव के अर्जुन सिंह को स्वेता नाम के लौकी और नटकी धान के बीजों के संरक्षण के लिए सभी किसानों को 12 सितंबर को पुरस्कार दिया जाएगा. वहीं अर्जुन सिंह कहते हैं कि उन्होंने कभी सोचा नहीं था कि उनको भारत सरकार के द्वारा इतना बड़ा अवार्ड दिया जाएगा. वे कहते हैं कि उनके लिए काफी खुशी की बात है.
बिहार कृषि विश्वविद्यालय सबौर के पौधा किस्म संरक्षण एवं किसान अधिकार प्राधिकरण सेल के नोडल अधिकारी डॉ सतेंद्र कुमार ने बताया कि कृषि विश्वविद्यालय सबौर के कुलपति के कुशल नेतृत्व में छह किसानों को अलग-अलग कैटेगरी में प्लांट जीनोम सेवियर पुरस्कार भारत सरकार के द्वारा मिलने वाला है. वे आगे कहते हैं कि खास किस्म या पुरानी प्रजातियों को जिनका गुणात्मक महत्व ज्यादा हो, इसके लिए किसानों को प्रोत्साहन के लिए यह पुरस्कार दिया जाता है. इस पुरस्कार को लेकर बीएयू काफी प्रयास कर रहा था. वहीं पिछले साल इसके लिए आवेदन किया गया था.
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