छत्तीसगढ़ के बस्तर में आदिवासी पेड़ों को भगवान का दर्जा देते हैं. इसके साथ ही सभी पेड़ों की पूजा भी करते हैं और उसे संरक्षित करने का पूरा प्रयास करते हैं. जंगल को बचाने के लिए अलग तरह का जुनून यहां के आदिवासियों में दिखता है. ऐसे ही एक आदिवासी किसान हैं दामोदर कश्यप जिन्होंने अपने बल पर 400 एकड़ जमीन पर जंगल लगा दिया है.
बस्तर में संघकरमरी गांव के 79 साल के बुजुर्ग आदिवासी ग्रामीण दामोदर ने जंगल को देवता मानते हुए अपने जीवन का पूरा समय जंगल लगाने और उसकी रक्षा करने में लगा दिया. 79 साल के दामोदर कश्यप की उपलब्धि ये है कि इन्होंने अपना पूरा जीवन पर्यावरण को समर्पित कर दिया है.
दामोदर कश्यप ने अब तक गांव वालों के सहयोग से 400 एकड़ से अधिक जमीन पर घना जंगल तैयार कर दिया है. बस्तर जिले के संघकरमरी गांव में रहने वाले बुजुर्ग ग्रामीण दामोदर कश्यप बतातें हैं कि 400 एकड़ से अधिक जमीन पर जंगल बनाना आसान नहीं था. उन्होंने कहा कि इसके लिए इच्छाशक्ति और समर्पण जरूरी है.
यहां बहुत सारे पेड़ वन विभाग की और से कूप कटाई के नाम पर काट दिए गए. बाकी बचे पेड़ों को गांव वालों ने साफ कर खेत बनाना शुरू कर दिया. तब दामोदर कश्यप ने पेड़ों को बचाने और इसके लिए लोगों को जागरूक करने का फैसला किया. शुरुआत में उन्हें ग्रामीणों के विरोध का सामना करना पड़ा, तब भी उन्होंने हार नहीं मानी और जंगल तैयार कर दिखाया.
दामोदर कश्यप वर्ष 1977 में गांव के सरपंच बने तो ताकत में इजाफा हुआ और उसके बाद वे इस मुहिम में जुट गए. जिस जगह पहले जंगल हुआ करते था, वहां की ठूंठ (जड़ वाला हिस्सा) को भी बचाया जिससे प्राकृतिक तौर पर नए पौधे कोपल की तरह निकल सकें. साथ ही साथ बस्तर के मौसम के अनुकूल पौधों को लगाने का काम भी शुरू किया.
किसान दामोदर के लगातार प्रयास से ग्रामीणों का भी हौसला बढ़ने लगा और उसी हौसले का फल है कि आज उनके गांव के आसपास 400 एकड़ में घना जंगल तैयार हो गया है. दामोदर बताते हैं कि उनके जंगल को देखने वन विभाग के अधिकारी भी आते हैं और सबसे खास बात ये कि आज तक उनके जंगलों में कभी आग नहीं लगी.
जंगल और पर्यावरण के प्रति इतना समर्पण होने के बावजूद दामोदर कश्यप को वो पहचान नहीं मिल पाई थी जो उन्हें मिलनी चाहिए थी. लेकिन समय-समय पर उनका जिक्र भी कई जगहों पर होने लगा. यही वजह है कि आज छत्तीसगढ़ कोर्स की 9वीं कक्षा के सामाजिक विज्ञान की किताब में दामोदर पर आर्टिकल छापा गया है जिसे पढ़कर लोग जानकारी ले सकते हैं.
दामोदर कश्यप आज देश के सभी राज्यों में जाकर पर्यावरण बचाने वाली संस्थाओं के साथ मिलकर चर्चा करते हैं कि पेड़ों को बचाने के लिए कौन-कौन से कदम उठाए जाने चाहिए. प्रकृति के लिए उनके समर्पण को देखते हुए स्विट्जरलैंड और फिलीपींस से भी उन्हें सम्मानित किया जा चुका है.
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