PMFBY: किसानों के लिए परेशानी का स‍बब बना फसल बीमा, आसान नहीं है मुक्ति‍ की राह

PMFBY: किसानों के लिए परेशानी का स‍बब बना फसल बीमा, आसान नहीं है मुक्ति‍ की राह

फसल बीमा योजना की टाइमिंग की अगर बात की जाए तो जलवायु परिवर्तन जैसी चुनौत‍ियों के बीच प्रधानमंत्री फसल बीमा याेजना को लागू कर माेदी सरकार ने सजगता का काम क‍ि‍या है, लेक‍िन बीमा कंपन‍ियों का मकड़जाल क‍िसानों को परेशान करने वाला है.

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PMFBY: किसानों के लिए परेशानी का स‍बब बना फसल बीमा, आसान नहीं है मुक्ति‍ की राहफसल बीमा कंपन‍ियों के मकड़जाल से क‍िसान परेशान -फोटो -क‍िसान तक

बीमाधड़ी: प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना को 2016 में किसानों के लिए सबसे कारगर सुरक्षा कवच के तौर पर लागू कि‍या गया था. खासकर, जलवायु परिवर्तन के इस चुनौती भरे समय में, जबक‍ि बेमौसम बारिश ने पिछले कुछ सालों में किसानों की कमर कर तोड़ कर रख दी है, ऐसे समय किसानों को फसल बीमा का वाज‍िब सुरक्षा कवच न मिलना, किसी त्रासदी से कम नहीं है. पिछले दो सालों में मौसम की मार ने जिस तरह से किसानों की मुसीबत बढ़ाई है, उसे देखते हुए फसल बीमा की उपयोगिता और ज्यादा बढ़ जाती है. 

पिछले महीने मार्च में हुई आंधी, बारिश और ओलावृष्ट‍ि ने रबी की फसल को खासा नुकसान पहुंचाया है. अब अप्रैल में मौसम की आंख मिचौली ने आम सहित अन्य फलों की फसलों को चौपट कर दिया है. कुदरत के आगे सब बेबस हैं, ऐसे में किसानों को फसल के नुकसान की भरपाई के लिए फसल बीमा ही एकमात्र सहारा है.

टाइमिंग दुरुस्त, कंपन‍ियों की मनमानी भरपूर  

फसल बीमा योजना की टाइमिंग की अगर बात की जाए तो, बेशक यह योजना जलवायु परिवर्तन सहित अन्य चुनौतियों के लिहाज से समय की मांग है. प्रधानमंत्री फसल बीमा याेजना को लागू कर माेदी सरकार ने इस मांग को पूरी सजगता के साथ पूरा किया है. मगर, बीते 6 साल का अनुभव बताता है कि बीमा कंपनियों की मनमानी और सरकारी अफसरों की लापरवाही से बना नापाक गठजोड़, किसानों के लिए सिरदर्द बन गया है. यह बात दीगर है कि इस योजना का उद्देश्य और सरकार की नियत, पूरी तरह से पाक साफ है. सिर्फ बेलगाम बीमा कंपनियों की महज मुनाफा कमाने की मंशा ने इस बेहतरीन योजना के मकसद को परास्त होने पर मजबूर कर दिया है. 

नियम भी बौने साबित हुए

अगर नियमों की बात की जाए तो इस योजना में फसल के नुकसान की क्षतिपूर्ति के दावों का समय से भुगतान सुनिश्चित करने पर पूरा जोर दिया गया है. दरअसल, प्रीमियम की राश‍ि का भुगतान सरकार और किसान, मिलकर करते हैं, ऐसे में राज्य सरकारों की ओर से प्रीमियम के भुगतान में देरी का बहाना बना कर बीमा कंपनियां किसानों के क्लेम के भुगतान में देरी करती हैं. इसका ताजा उदाहरण गत मार्च में देखने को मिला, जब मौसम की मार से पीड़‍ित किसान रबी सीजन में गेहूं की फसल नष्ट होने के गम से जूझ रहे थे, उसी समय किसानों को पिछले साल यानि 2022 के रबी सीजन में हुए उपज के नुकसान के दावों की भरपाई करते हुए क्षतिपूर्ति का भुगतान हुआ. 

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इस विषय पर विमर्श की धार को तेज करने वालों के लिए यह एक नया मुद्दा था. इसके साथ ही यह बहस तेज हो गई कि ऐसी फसल बीमा योजना किसानों के किस काम की है, जिसमें फसल नष्ट होने के दावों की पुष्ट‍ि होने में एक साल से अध‍िक समय लग जाए. ऐसे में सरकार की मंशा पर भी सवाल उठना लाजिमी था. सवाल यह भी उठा क‍ि हर्जाने के भुगतान में देरी के लिए किसी बीमा कंपनी को अर्थदंड का सामना क्यों नहीं करना पड़ा. जबक‍ि, बीमा योजना का नियम साफ तौर पर ताकीद करता है कि किसान की फसल की पूरी प्रीमियम राश‍ि जमा होने और फसल नुकसान के सर्वे के लिए क्रॉप कटिंग होने के 30 दिन के भीतर अगर किसानाें को हुए नुकसान के दावे की राश‍ि नहीं मिलती है, तो संबंध‍ित बीमा कंपनी किसान को 12 प्रतिशत ब्याज के साथ दावे का भुगतान करेगी.

मगर, अफसोस की बात यह है कि 2016 में फसल बीमा योजना लागू होने के बाद से लेकर, अब तक किसी अग्रणी बीमा कंपनी को ऐसी किसी कार्रवाई का सामना नहीं करना पड़ा. ऐसा होने का ही नतीजा रहा कि अब तक लाखों किसानों का इस योजना से मोहभंग हो चुका है. उन्होंने फसल का बीमा करना ही बंद कर दिया है. इस स्थ‍िति को देख कर, फसल बीमा योजना के भविष्य पर उठते सवालों को नजरंदाज करना आसान नहीं होगा.  

बीमाधड़ी का मनोविज्ञान

किसानों के साथ बीमा के नाम पर कंपनियों द्वारा की जा रही धोखाधड़ी काे 'बीमाधड़ी' का तमगा दिया गया है. बीमाधड़ी के पीछे का मनोविज्ञान भी बिल्कुल सहज है और इसी में इस समस्या के कारण और समाधान दोनों छुपे हैं. यह बिल्कुल सामान्य सी बात है कि प्राकृतिक आपदा एवं अन्य कारणाें से फसल काे हुए नकसान की किसानों को भरपाई करने की जिम्मेदारी बीमा कंपनी की है. रिलायंस, आईसीआईसीआई, इफको और एचडीएफसी जैसी बड़ी कंपनियों को दी गई इस जिम्मेदारी को सजगता से पूरा करना अपेक्षि‍त है. मगर, विचारणीय पहलू यह भी है कि, कंपनी कोई भी हो, उसका मूल चरित्र, अपने कारोबार में मुनाफा कमाना ही होता है. 

बीमा कारोबार में लगी ये कंपनियां भी इस मकसद से अछूती नहीं हैं और अछूती रह भी नहीं सकती हैं. वजह, साफ है कि हर कंपनी की तरह इन कंपनियों का भी मूल मकसद पहले अपना मुनाफा सुनिश्वित करना है और इसके बाद जो बचे उससे जितना हो सके, उतना किसानों का भला हो जाए. सरकार को यह समझना पड़ेगा कि ये कंपनियां 'चैरिटी' करने के लिए बीमा कारोबार में नहीं उतरी हैं. सरकार को इस व्यवहारिक सच्चाई को समझते हुए कम से कम फसल बीमा योजना को निजी क्षेत्र की कंपनियों से मुक्त रखना चाहिए.

 समाधान 

समाधान के तौर पर फ‍िलहाल एक रास्ता दिखता है. इसके तहत सरकार को या तो सार्वजनिक क्षेत्र की किसी एक कंपनी का गठन कर पूरे देश में किसानों के फसल बीमा के दावों का निस्तारण करने की जिम्मेदारी उसी एक कंपनी को सौंपनी चाहिए. आखि‍रकार, फसल बीमा के प्रीमियम की राश‍ि का एक बड़ा हिस्सा, केन्द्र और राज्य सरकारें चुका रही हैं. यह पैसा भी जनता की ही गाढ़ी कमाई का है. यह पैसा, क्षतिपूर्ति के रूप में किसानों के बजाए निजी बीमा कंपनि‍यों की जेब में जाना बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है.

आध‍िकारिक आंकड़ों से पता चला है कि पिछले 6 साल में फसल बीमा से जुड़ी कंपनियों का मुनाफा 60 गुना तक बढ़ा है. इससे स्पष्ट है कि फसल बीमा योजना का वास्तविक लाभ किसानों के बजाए बीमा कंपनियों को ही मिल रहा है. सरकार को इस स्थ‍िति से निपटने के लिए फसल बीमा के मामले में निजी क्षेत्र पर भरोसा करने के बजाए या तो किसानों के दावों का निस्तारण करने की जिम्मेदारी स्वयं अपने हाथों में लेना चाहिए या फसल बीमा का अलग काेष गठ‍ित कर सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी को बीमा राश‍ि के भुगतान की जिम्मेदारी सौंपनी चाहिए.
 
किसानों को अगर बीमा कंपनि‍यों के चंगुल से मुक्त करना है तो भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राध‍िकरण (एनएचएआई) का उदाहरण भी एक नजीर बन सकता है. इसमें टोल टैक्स वसूली के लिए फास्ट टैग के रिचार्ज से संचित राश‍ि का अलग कोष बनाना, राजमार्ग के निर्माण में बड़ी भूमिका निभाता है. फस्ट टैग की महज जमानत राश‍ि से ही एनएचएआई के कोष में भारी मात्रा में धनराश‍ि एकत्र हो गई है. इसका ब्याज भी एनएचएआई की जेब में जाता है, जबक‍ि यह पैसा जनता का है. यही वह कोष है, जिसने एनएचआई ही नहीं बल्क‍ि समूचे परिवहन मंत्रालय को कामधेनु बना दिया है. अगर यह ट्रिक सड़क परिवहन क्षेत्र को समृद्ध बना सकती है, तो इसी तरह की ट्रिक से किसानों के कल्याण का मकसद पूरा करने में सरकार को कोई हिचक नहीं होनी चाहिए. आख‍िरकार यह भी अन्नदाताओं की समृद्ध‍ि सुनिश्चित करने के संकल्प का सवाल है, और इस संकल्प को सिद्ध करना, मोदी सरकार का मूल मंतव्य है. 

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