पराली जलाने से रोकने के लिए किसानों को 100 रुपये/क्विंटल दे सरकार, समिति ने की सिफारिश

पराली जलाने से रोकने के लिए किसानों को 100 रुपये/क्विंटल दे सरकार, समिति ने की सिफारिश

पराली जलाने से भूमि की उर्वरक क्षमता में कमी आती है. साथ ही यह वायु प्रदूषण का एक बड़ा कारण भी बनता है. धुएं से उत्पन्न होने वाले जहरीले गैस का हमारे स्वास्थ्य पर भी गंभीर प्रभाव पड़ता है. खासकर शहरी क्षेत्रों में जहां प्रदूषण का स्तर पहले से ही उच्च है. इसके अलावा, पराली जलाने से ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन भी बढ़ता है, जो जलवायु परिवर्तन को और बढ़ावा देता है.

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भारत में कृषि गतिविधियां देश की अर्थव्यवस्था का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, लेकिन साथ ही साथ कृषि से जुड़ी कई समस्याएं भी हैं, जो पर्यावरण पर गहरा प्रभाव डाल रही हैं. इनमें से एक प्रमुख समस्या है पराली जलाने का काम. यह काम विशेष रूप से पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में अत्यधिक देखी जाती है, जो न केवल पर्यावरण के लिए हानिकारक है, बल्कि किसानों के लिए भी एक बड़ी चुनौती बन चुकी है. इस समस्या को लेकर हाल ही में कृषि, पशुपालन और खाद्य प्रसंस्करण पर स्थायी समिति ने केंद्र सरकार से महत्वपूर्ण सिफारिश की है.

पराली जलाने का प्रभाव

पराली जलाने से भूमि की उर्वरक क्षमता में कमी आती है. साथ ही यह वायु प्रदूषण का एक बड़ा कारण भी बनता है. धुएं से पैदा होने वाले जहरीले गैस का हमारे स्वास्थ्य पर भी गंभीर प्रभाव पड़ता है, खासकर शहरी क्षेत्रों में जहां प्रदूषण का स्तर पहले से ही उच्च है. इसके अलावा, पराली जलाने से ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन भी बढ़ता है, जो जलवायु परिवर्तन को और बढ़ावा देता है. 

स्थायी समिति की सिफारिश

इस गंभीर समस्या के समाधान के लिए संसदीय स्थायी समिति ने केंद्र सरकार से एक महत्वपूर्ण कदम उठाने की सिफारिश की है. समिति ने कहा है कि धान की पराली को इकट्ठा करने में किसानों की जो अतिरिक्त लागत होती है, उसकी भरपाई के लिए सरकार को प्रति क्विंटल 100 रुपये की वित्तीय सहायता देनी चाहिए. समिति का मानना है कि यह कदम किसानों को पराली जलाने से रोकने और पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने में मदद करेगा. 

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क्यों की गई सिफारिश

कृषि स्थायी समिति की रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि यह वित्तीय सहायता न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के अतिरिक्त होनी चाहिए और किसानों को यह राशि सीधे उनके बैंक खाते में ट्रांसफर की जानी चाहिए. इससे किसानों को पराली इकट्ठा करने की अतिरिक्त लागत को झेलने में मदद मिलेगी, जिससे वे जलाने के बजाय पराली को सही तरीके से उपयोग करने के लिए तैयार होंगे.

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इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम

संसदीय स्थायी समिति की यह सिफारिश कृषि क्षेत्र में एक सकारात्मक बदलाव का संकेत है. अगर केंद्र सरकार इस सिफारिश को लागू करती है, तो इससे न केवल पर्यावरणीय प्रभाव में कमी आएगी, बल्कि किसानों को भी आर्थिक रूप से मदद मिलेगी. इसके अलावा, इस तरह के कदम किसानों को ग्रीन टेक्नोलॉजी की ओर भी प्रेरित कर सकते हैं, जैसे कि बायोमास गैसिफिकेशन और बायोफ्यूल उत्पादन, जो पराली से ऊर्जा पैदा करने के अच्छे उपाय हैं.

किसानों की स्थिति में सुधार

यह सिफारिश किसानों के लिए एक बड़ी राहत हो सकती है, जो पहले पराली जलाने के कारण उपजाऊ भूमि को नुकसान और पर्यावरणीय प्रतिबंधों का सामना करते थे. यदि सरकार इस सिफारिश को मंजूरी देती है, तो यह एक बड़ा कदम होगा, किसानों की आय को बढ़ाने और पर्यावरणीय संरक्षण की दिशा में. 

पराली जलाने की समस्या से निपटने के लिए संसदीय स्थायी समिति द्वारा की गई सिफारिश किसानों के लिए एक सकारात्मक कदम हो सकता है. यह न केवल कृषि उत्पादन को प्रभावित करेगा, बल्कि पर्यावरणीय सुधार के लिए भी महत्वपूर्ण साबित होगा. ऐसे कदमों से भारत की कृषि नीति में सुधार आ सकता है और पर्यावरण के संरक्षण में मदद मिल सकती है. अब देखना यह होगा कि केंद्र सरकार इस सिफारिश पर कैसे कार्यवाही करती है और किसानों के लिए यह वित्तीय सहायता कब और कैसे उपलब्ध कराई जाएगी.

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