ओडिशा में किसान इस साल पहले के मुकाबले अधिक रकबे में रबी फसलों की खेती करेंगे. क्योंकि प्रदेश सरकार ने चावल परती प्रबंधन के लिए क्षेत्र कवरेज को पिछले सीजन के 70,000 हेक्टेयर की तुलना में इस सीजन में पांच गुना बढ़ा दिया है. आधिकारिक सूत्रों ने कहा कि अब तक यह 3.4 लाख हेक्टेयर को कवर कर चुका है और इस बार चार लाख हेक्टेयर को छूने का लक्ष्य रखा गया है. दरअसल, सिंचाई के अभाव के चलते धान की कटाई करने के बाद ओडिशा के किसान रबी फसलों की बुवाई नहीं कर पाते हैं. इससे राज्य में सर्दी के मौसम में अधिकांश कृषि भूमि परती रह जाती है.
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, चावल परती प्रबंधन पहल का उद्देश्य किसानों की आय बढ़ाना है. इसले लिए इन परती जमीनों पर धान की कटाई के बाद रबी फसलों की बुवाई की जाएगी. रबी फसल की बुवाई का सीजन नवंबर से दिसंबर महीने के बीच होता है. वहीं, फसल की कटाई जून तक चलती है. यही वजह है कि कृषि और किसान अधिकारिता विभाग धान की परती जमीन से निपटने के लिए 2022 से एक प्रमुख परियोजना 'चावल परती प्रबंधन पर व्यापक परियोजना' चला रहा है.
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विभाग के एक अधिकारी ने कहा कि ओडिशा में लगभग 16 लाख हेक्टेयर चावल परती क्षेत्र है, जिसमें से 10 लाख हेक्टेयर का प्रभावी ढंग से उपयोग किया जा सकता है. किसानों को आठ फसलें उगाने में मदद मिलती हैं, जिसमें हरा चना, काला चना, मसूर, मटर और बंगाल चना शामिल हैं. इसके अलावा घास मटर, सरसों और तिल इस कार्यक्रम के तहत उगाए जाते हैं. अधिकारी ने कहा कि फसल का चुनाव जलवायु क्षेत्र की उपयुक्तता और स्थानीय अभ्यास के आधार पर तय किया जाता है. साथ ही सरकार कम रासायनिक और पर्यावरण सघन खेती पर ध्यान केंद्रित कर रही है.
अधिकारी ने कहा कि किसानों को बीज, जैव उर्वरक, सूक्ष्म पोषक तत्व, प्रकाश जाल, फेरोमोन जाल, खरपतवारनाशी और आवश्यकता आधारित पौध संरक्षण रसायनों जैसे विभिन्न हस्तक्षेपों से सहायता दी गई है. विभाग के प्रमुख सचिव अरबिंद कुमार पाधी ने कहा कि ओडिशा अब डेढ़ दशक से खपत से ज्यादा धान का उत्पादन कर रहा है. उन्होंने कहा कि धान से लेकर गैर-धान फसलों तक फसल विविधीकरण, नीतिगत क्षेत्र में हमारा मुख्य फोकस रहा है. इसके अलावा, कृषि पर जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों को कम करने के लिए, हमने हमेशा सभी सरकारी हस्तक्षेपों को जलवायु के अनुकूल बनाने की कोशिश की है.
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उन्होंने कहा कि चावल परती प्रबंधन एक ऐसा कार्यक्रम है, जिससे ओडिशा में फसलों की पैदावार बढ़ेगी. साथ ही मिट्टी के स्वास्थ्य को समृद्ध करने में भी मदद मिलेगी. उन्होंने कहा कि इस कार्यक्रम से किसानों की आय भी बढ़ेगी. साथ ही कृषि-खाद्य प्रणाली को जलवायु स्मार्ट बनाने के लिए वास्तव में सबसे अच्छी अनुकूलन रणनीति है.
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