किसान उत्पादक संगठन (AI Generated Image)किसान उत्पादक संगठनों (FPO) को मजबूत बनाने के लिए केंद्र सरकार मौजूदा केंद्रीय योजना को अगले पांच वर्षों यानी 2026 से 2031 तक बढ़ाने जा रही है. कृषि सचिव देवेश चतुर्वेदी ने शुक्रवार को CII FPO समिट में यह घोषणा करते हुए कहा कि अभी तक बने 10,000 एफपीओ को स्थिर खड़ा करने और उनकी क्षमता बढ़ाने के लिए यह विस्तार जरूरी है. उन्होंने कहा कि पिछले दो वर्षों में बड़ी संख्या में एफपीओ बने हैं, जिन्हें अब समुदाय-आधारित संगठनों और इंप्लीमेंटिंग एजेंसियों की मदद से लगातार "हैंडहोल्डिंग" की जरूरत है. मंत्रालय ने यह भी स्वीकार किया है कि एफपीओ को सफल बनाने में अभी भी क्षमता निर्माण, पूंजी की कमी और कंप्लायंस जैसे कई व्यावहारिक अवरोध मौजूद हैं.
देवेश चतुर्वेदी ने बताया कि मौजूदा इक्विटी ग्रांट के तहत 30 लाख रुपये की सीमा बड़े स्तर के संचालन के लिए पर्याप्त नहीं है. उन्होंने कहा कि यह सीमा कम से कम 50 लाख रुपये से 1 करोड़ रुपये तक होनी चाहिए, ताकि एफपीओ फसल खरीद, प्रोसेसिंग और किसानों को अग्रिम भुगतान जैसे महत्वपूर्ण कार्यों में सक्षम हो सकें. सरकार क्रेडिट गारंटी और कार्यशील पूंजी उपलब्ध कराने के नए मॉडल भी तलाश रही है.
एफपीओ पर कंपनी अधिनियम के तहत सख्त कंप्लायंस का दबाव भी बड़ी चुनौती है. कृषि विभाग ने कॉर्पोरेट कार्य मंत्रालय से अनुरोध किया है कि शुरुआती 3-5 वर्षों में एफपीओ पर लगने वाले जुर्मानों को कम किया जाए, ताकि वे धीरे-धीरे मजबूत बनकर कंप्लायंस का पालन कर सकें. उन्होंने राज्यों को सलाह दी कि एफपीओ की मदद के लिए किफायती चार्टर्ड अकाउंटेंट और कंपनी सेक्रेटरी की पैनल सूची तैयार की जाए.
2020 में चित्रकूट से शुरू हुई 10,000 एफपीओ योजना ने 2024-25 में लगभग 9,000 करोड़ रुपये का टर्नओवर हासिल किया है और अंतिम रिपोर्ट आने के बाद यह आंकड़ा 10,000 करोड़ रुपये तक पहुंचने की उम्मीद है. ये एफपीओ देश के लगभग 52 लाख किसानों से जुड़े हैं. अगर निजी और सरकारी संस्थाओं में पंजीकृत 40 से 50 हजार अन्य एफपीओ भी जोड़ दिए जाएं तो यह संख्या काफी बड़ी हो जाती है.
कृषि सचिव ने कहा कि कई एफपीओ स्थानीय उत्पादों जैसे केले के रेशे, गुड़, मिलेट्स, दालों आदि को प्रोसेस कर बाजार में बेचने की दिशा में महत्वपूर्ण काम कर रहे हैं. यह "मेक इन इंडिया, लोकल फॉर लोकल" पहल को आगे बढ़ाता है. हालांकि, उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि कुछ एफपीओ केवल कागज पर मौजूद हैं और वास्तविक किसान भागीदारी नहीं है. ऐसे फर्जी एफपीओ की पहचान कर असली और सक्रिय संगठनों को मजबूत करना सरकार की प्राथमिकता है. (पीटीआई)
कार्यक्रम में APEDA सचिव सुधांशु ने बताया कि संगठन एफपीओ को अंतरराष्ट्रीय बाजार से जोड़ने, क्वालिटी जागरूकता बढ़ाने और इंफ्रास्ट्रक्चर उपलब्ध कराने पर काम कर रहा है. उन्होंने वाराणसी क्षेत्र से सब्जियों के निर्यात में हुई उल्लेखनीय वृद्धि और पुणे के पुरंदर हाइट्स एफपीओ की यूरोपीय संघ तक पहुंचने वाली फिग वैल्यू ऐडेड प्रोडक्ट्स की सफलता को उदाहरण के रूप में रखा. समिट में सह्याद्री फार्म्स के चेयरमैन विलास शिंदे, पीआई इंडस्ट्रीज के सलिल सिंगल, प्राउएस ग्रुप के राजेश श्रीवास्तव और नाबार्ड से के. आर. रामलिंगम सहित कई कृषि विशेषज्ञ मौजूद रहे.
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