भारत सरकार की तरफ से तिलहन की खेती को प्रोत्साहित करने के लिए कई अहम फैसले लिए गए हैं. इन्हीं में से एक है किसानों को कई योजनाओं के तहत मिलने वाली सब्सिडी जिसमें कई तरह के फायदे उन्हें मिलते हैं. केंद्र सरकार की तरफ से यह सब्सिडी खासतौर पर राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (NFSM)और ऑयलसीड्स मिशन के तहत मिलती है. सरकार की तरफ से तिल जैसी तिलहन फसलों के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए बीज, उर्वरक, कीटनाशक, सिंचाई उपकरण पर सब्सिडी मिलती है.
सरकार किसानों को तिल की खेती के लिए लगातार प्रोत्साहित कर रही है. बीजों पर सब्सिडी देकर सरकार यह सुनिश्चित करना चाहती है कि किसान कम से कम लागत में ज्यादा से ज्यादा उत्पादन करे. अगर किसान तिल की खेती के लिए मशीनरी (जैसे थ्रेसर, स्प्रेयर, पावर वीडर) लेना चाहते हैं तो उन्हें 40 से 60 प्रतिशत तक सब्सिडी मिल सकती है. कई राज्य जैसे मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश अपने स्तर पर विशेष तिलहन योजनाएं चलाते हैं.
उदाहरण के तौर पर अगर बात करें देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश की तो यहां पर अमेठी जिले में किसानों को दो तरह से सब्सिडी मिलती है. 10 साल से कम गुणवत्ता वाले बीजों पर 20 से से 30 फीसदी तक सब्सिडी. 10 वर्ष से ज्यादा गुणवत्ता वाले बीजों पर 40 प्रतिशत से 50 फीसदी तक सब्सिडी मिलती है. इसी तरह से बिहार में किसानों को तिल के बीजों पर 80 प्रतिशत तक की सब्सिडी मिलती है यानी किसानों को सिर्फ 20 फीसदी ही खर्च करना पड़ता है.
इन योजनाओं का मकसद यही है कि किसानों को अच्छी क्वालिटी के बीज कम कीमत पर मिलें. साथ ही उन्हें तिल की खेती के लिए ज्यादा निवेश भी न करना पड़े. इसके अलावा कृषि विभाग के अधिकारी समय-समय पर ट्रेनिंग और जानकारी भी उपलब्ध कराते हैं ताकि किसान नई तकनीकों के साथ खेती कर सकें. कई राज्य सरकारें भी अपने स्तर पर अतिरिक्त सब्सिडी देती हैं.
सरकार की तरफ से किसानों को उपज का फायदा मिले इसके लिए तिल का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) तय करती है. साल 2023-24 के लिए सफेद तिल का एमएसपी करीब 8,635 रुपये प्रति क्विंटल था. ऐसे किसान जो तिल की खेती के लिए सब्सिडी लेना चाहते हैं वो अपने जिले के कृषि विभाग कार्यालय या कृषि विज्ञान केंद्र (केवीके) से संपर्क कर सकते हैं.
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