देशभर में धान खरीद प्रक्रिया चल रही है. पंजाब में धान खरीद की धीमी प्रक्रिया और उठान में देरी का मुद्दा गरमाया हुआ है. खासकर धान की पीआर-126 किस्म को लेकर मामला तूल पकड़े हुए है. पंजाब राज्य किसान एवं कृषि श्रमिक आयोग के पूर्व अध्यक्ष अजय वीर जाखड़ ने द ट्रिब्यून में पब्लिश लेख में चरमराई धान खरीद व्यवस्था के लिए राज्य प्रशासन को जिम्मेदार ठहराया है. उन्होंने कहा कि कोरोना में लॉकडाउन के दौरान भी जब देश में सब कुछ थम सा गया था तब पंजाब में अनाज की खरीद बिना रुके चल रही थी. अब पहली बार पंजाब धान खरीद में गड़बड़ी से जूझ रहा है. यह राज्य प्रशासन की विफलता को दिखाता है.
द ट्रिब्यून में पब्लिश लेख में अजय वीर जाखड़ कहते हैं कि राज्य में अजीबोगरीब घटनाक्रम देखने को मिल रहा है, जिसमें किसान आढ़तियों और मिल मालिकों का समर्थन कर रहे हैं, जबकि वही उन्हें लूटते हैं. करीब 15 साल पहले तक किसान यूनियनों को आढ़तियों की मोनोपॉली वाले गलत रवैये के खिलाफ विरोध करते देखना आम बात थी. अब स्थिति बदल गई है, आढ़तियों ने किसान यूनियनों के नेताओं को अपनी ओर मिला लिया है. यह या तो उनकी ईमानदारी या फिर उनके फैसले का स्पष्ट संकेत है.
राज्य ने किसानों को एक खास धान किस्म पीआर-126 की खेती के लिए प्रोत्साहित किया, जिसे मिलर्स कम रिकवरी का हवाला देते हुए लेने से मना कर देते हैं. जबकि, विभागीय अधिकारी न तो किसानों को और न ही मिलर्स को विश्वास में लेते हैं. किसानों को बिना शिक्षित किए बाजार में खुलेआम धान की इस किस्म के बीज बेचे जा रहे हैं. जबकि, विरोध में यह दावे किए जा रहे हैं कि मिलिंग प्रॉसेस में टूटे चावल का स्तर अधिक है. ट्रांसपोर्टर अनाज को ट्रांसफर करने से इनकार कर रहे हैं. भारतीय खाद्य निगम अनाज को उपभोग केंद्रों तक नहीं पहुंचा रहा है और समय पर स्टोरेज की जगह खाली नहीं कर रहा है. ये तहसील, जिला, और राष्ट्रीय स्तर पर कुशासन और विफलता के लक्षण हैं.
धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य 2,350 रुपये प्रति क्विंटल है और इसका पूरा भुगतान केंद्र सरकार करती है, साथ ही मिलिंग लागत भी. लेकिन, किसानों को उनके धान के लिए लगभग 4-8 फीसदी कम एमएसपी मिल रहा है, जो आढ़ती संघों के जरिए मिलरों की गलत मांग के चलते है. कई किसान घाटे की भरपाई के लिए धान के विभिन्न ग्रेड और किस्मों को मिलाने के लिए मजबूर हैं और अधिक नमी वाले धान को मंडी में पहुंचाते हैं. एफसीआई के जरिए अधिक नमी वाले धान न लेने से समस्याओं की शुरुआत हो जाती है.
अजय वीर जाखड़ कहते हैं कि इससे भी बड़ा मामला यह है कि पंजाब से धान की वार्षिक खरीद लगभग 185 लाख मीट्रिक टन है और इसकी कीमत लगभग 43,500 करोड़ रुपये है. खरीदी गई उपज के अकेले आधे हिस्से के लिए किसानों पर 6 फीसदी का अवैध शुल्क लगाया जाता है. यह हर सीजन 1,300 करोड़ रुपये होता है और हर कोई इसमें शामिल है आढ़ती, मिलर, खरीद एजेंसियां और प्रशासन. यह मनी लॉन्ड्रिंग का मामला है, जिसकी जांच ईडी के जरिए की जानी चाहिए.
वह कहते हैं कि यह संकट इस वजह से है क्योंकि पंजाब मंडी बोर्ड और इसकी बाजार समितियां जो मंडियों को कंट्रोल करती हैं वह राज्य में सत्तारूढ़ पार्टी के संरक्षण में बनती हैं. जैसे आढ़ती संघ हैं जो मंडी में होने वाली गतिविधियों को कंट्रोल कररते हैं. यह बहुत जरूरी है कि बोर्ड और बाजार समितियों के अधिकांश सदस्यों को पदों पर मनोनीत किए जाने की बजाय चुनाव के जरिए चयन किया जाना चाहिए.
वह कहते हैं कि यह अजीब बात है कि किसान यूनियन के नेता असल मुद्दों पर चुप्पी साधे हैं. निष्क्रिय हो गए शिकायत समाधान सिस्टम किसानों को अपने मुद्दे उठाने के लिए यूनियनों की ओर रुख करने को मजबूर करते हैं. राजनीतिक दलों की तरह किसान यूनियनें भी जगह बनाने के लिए कंपटीशन कर रही हैं. इससे यूनियन के नेता लॉन्ग टर्म सॉल्यूशन की बजाय लोकलुभावन उपायों की तलाश करने लगते हैं.
जब पंजाब में किसान राजमार्ग बंद कर देते हैं, रेलवे ट्रैक पर धरना देते हैं और मुद्दे से भटककर दूसरे मुद्दों का सपोर्ट करने लगते हैं तो मीडिया और समाज गलत तरीके से यह एनालिसिस करता है कि किसान यूनियनें विरोधी हो गई हैं. यह गलत धारणा है क्योंकि विरोधी वह नहीं होता जो हमेशा विरोध करता है. विरोधी स्वतंत्र रूप से तर्क करता है और हर मोड़ पर विरोध करने के लिए तैयार नहीं होता. इसके चलते किसानों के विरोध ने गैर-कृषि समुदायों का समर्थन और सहानुभूति खो दी है. अधिक चिंताजनक यह है कि देश का एक बड़ा हिस्सा अब उदासीन हो गया है. यदि रिजल्ट बदलना है, तो व्यवहार भी बदलना होगा.
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