किसान नेता सरवन सिंह पंढेर ने शनिवार को किसानों के मुद्दे और शंभू बॉर्डर पर सुरक्षा बलों द्वारा की गई कार्रवाई पर संसद में चर्चा कराने का आग्रह किया. उन्होंने कहा कि संसद हमारा लोकतंत्र का मंदिर है और हम किसानों के मुद्दों पर चर्चा चाहते हैं. संसद में न तो सरकार और न ही विपक्ष ने हमारे मुद्दों को उठाया कि कैसे केंद्रीय बलों ने शंभू बॉर्डर पर निर्दयतापूर्वक व्यवहार किया. शुक्रवार को भारी संख्या में किसान केंद्र सरकार से फसलों पर एमएसपी की कानूनी गारंटी समेत अन्य मांगों के लिए दवाब बनाने की योजना के तहत दिल्ली कूच कर रहे थे. सुरक्षाबलों ने प्रदर्शनकारी किसानों को तितर-बितर करने के लिए आंसू गैस के गोले दागे थे.
सरवन सिंह पंढेर ने कहा कि केंद्र सरकार को मुद्दों को सुलझाने के लिए किसानों से बात करने में कोई दिलचस्पी नहीं ले रही है. उन्हें सरकार से बातचीत करने का कोई प्रस्ताव नहीं मिला है. पंढेर ने कहा कि सबसे ज्यादा मतदाता किसान और मजदूर समुदाय के हैं. ऐसा लगता है कि संसद में किसानों के बारे में बात करने वाला कोई सांसद नहीं है. पंढेर ने दावा किया कि शुक्रवार को पुलिस की कार्रवाई से 20 किसान घायल हुए हैं.
पंढेर ने आगे कहा कि अगर सरकार हमसे बातचीत नहीं करती है तो 101 किसानों का जत्था रविवार को दिल्ली की ओर कूच करेगा. कई किसान संगठन हमारे दिल्ली चलो मार्च का समर्थन कर रहे हैं. किसान सरकार से बातचीत का इंतजार करेंगे, नहीं तो 101 किसानों का जत्था 8 दिसंबर को दोपहर 12 बजे दिल्ली की ओर कूच करेगा.
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उन्होंने कहा कि चाहे एनडीए सरकार हो या राज्यों में इंडिया गठबंधन सरकार, किसान खुश नहीं हैं. सभी सरकारों में समस्याएं हैं. पंजाब में भी लोग आम आदमी पार्टी की सरकार के काम से खुश नहीं हैं. पंढेर ने विपक्ष की आलोचना करते हुए कहा कि जब मुद्दा मीडिया में आता है तो वे सिर्फ रोटी सेंकते हैं. जहां तक विपक्ष का सवाल है, अगर कोई बयान देता है तो मैं नहीं कह सकता कि क्या यह उचित नहीं है. लेकिन, जब किसानों को समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है और मुद्दे मीडिया में हैं तो वे केवल किसानों के नाम पर राजनीतिक रोटियां सेंकना चाहते हैं. हम उनके एजेंडे में किसानों की चिंता नहीं देख रहे हैं.
किसान नेता ने कहा कि हम (किसान) सिर्फ अपनी फसलों के लिए उचित मूल्य मांग रहे हैं. किसानों और मजदूरों की स्थिति अच्छी नहीं है. हमारी मांग है कि हमें अपनी फसलों के लिए उचित मूल्य मिले. एक तरफ, सभी कॉर्पोरेट क्षेत्रों को अपने उत्पादों की कीमत तय करने का अधिकार है, दूसरी तरफ, किसानों को उनकी फसलों का उचित मूल्य नहीं मिल रहा है. (एएनआई)
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