भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) द्वारा बिहार के बेगूसराय स्थित भारतीय मक्का अनुसंधान संस्थान (IIMR) के क्षेत्रीय मक्का अनुसंधान एवं बीज उत्पादन केंद्र को कर्नाटक के शिवमोगा में स्थानांतरित करने के निर्णय ने बिहार में राजनीतिक विवाद को जन्म दे दिया है. इस विवाद की शुरुआत तब हुई जब केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान का एक पत्र वायरल हुआ, जिसमें उन्होंने शिवमोगा के सांसद बी.वाई. राघवेंद्र को सूचित किया कि आईआईएमआर का एक क्षेत्रीय केंद्र शिवमोगा में स्थापित किया जाएगा. इस निर्णय पर बिहार के राजनीतिक दलों ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है. विपक्षी दलों ने इसे बिहार के किसानों के साथ अन्याय करार दिया है. कांग्रेस ने कहा कि "पहले आदमी का पलायन होता था, अब मक्का अनुसंधान केंद्र का भी कर दिया गया." वहीं, आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने इसे बिहार और किसानों के खिलाफ फैसला बताते हुए केंद्र सरकार पर निशाना साधा.
शिवमोगा के लोकसभा सांसद बी. वाई. राघवेंद्र के अनुसार, केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने उन्हें पत्र लिखकर बताया कि आईआईएमआर का एक क्षेत्रीय अनुसंधान केंद्र शिवमोगा में स्थापित किया जाएगा, जिसके लिए बेगूसराय का केंद्र स्थानांतरित किया जा रहा है. इस पत्र के सामने आने के बाद बिहार में राजनीतिक दलों ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है. कांग्रेस पार्टी ने इस निर्णय की आलोचना करते हुए कहा कि पहले केवल लोगों का पलायन होता था, अब मक्का अनुसंधान संस्था का भी "पलायन" करवा दिया गया है. कांग्रेस ने व्यंग्यात्मक रूप में कहा, "मक्का पैदा करेगा बिहार, लेकिन उस पर रिसर्च 2000 किलोमीटर दूर होगी."
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आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने इस निर्णय को किसान और बिहार विरोधी बताते हुए कहा कि बिहार के किसान नीलगाय और बाढ़ जैसी समस्याओं का सामना करते हुए भी मक्का उत्पादन में अग्रणी हैं. उन्होंने चिंता जताई कि इस निर्णय का किसानों की आय पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा.
बिहार देश के प्रमुख मक्का उत्पादक राज्यों में से एक है. विशेष रूप से रबी मक्का की खेती में बिहार अग्रणी भूमिका निभाता है, जिसकी उत्पादकता काफी अधिक होती है. बिहार के पूर्णिया, कटिहार, भागलपुर, मधेपुरा, सहरसा, खगड़िया और समस्तीपुर जैसे जिले मक्का उत्पादन के प्रमुख क्षेत्र हैं. राज्य में लगभग 0.72 मिलियन हेक्टेयर भूमि पर मक्का की खेती होती है, जो राष्ट्रीय उत्पादन का 14% हिस्सा है. बिहार में मक्का उत्पादन का महत्व केवल फसल तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह किसानों की आय का प्रमुख स्रोत भी है. यहां के लगभग 15 लाख किसान मक्का उत्पादन से सीधे जुड़े हुए हैं.
बेगूसराय स्थित क्षेत्रीय मक्का अनुसंधान एवं बीज उत्पादन केंद्र कुशमौत की स्थापना 4 मई 1997 को हुई थी. इस केंद्र ने जलवायु अनुकूल मक्का संकर विकास, बीज उत्पादन और किसानों को तकनीकी जानकारी प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. इस केंद्र पर मक्का की इनब्रेड लाइनों के बीज गुणन, संकर संयोजनों के मूल्यांकन और जलवायु अनुकूल मक्का संकर के विकास पर अनुसंधान किया जाता था. इस केंद्र की सहायता से किसानों को अधिक उपज देने वाली मक्का किस्मों का ज्ञान प्राप्त होता था, जिससे उनकी उत्पादन क्षमता में सुधार हुआ है.
बिहार के कटिहार जिले के महादेव नगर निवासी रंजन कुमार, जो पूर्व में कृषि पत्रकार रह चुके हैं और एक अनुभवी मक्का किसान भी हैं, ने बेगूसराय स्थित कुसमौत मक्का अनुसंधान केंद्र के स्थानांतरण को दुर्भाग्यपूर्ण बताया है. उन्होंने कहा कि पिछले 25 वर्षों से इस संस्थान ने लाखों किसानों को लाभ पहुंचाया है. इसके स्थानांतरण से बिहार के किसानों के सामने कई समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं.
रंजन कुमार के अनुसार, इस केंद्र के स्थानांतरण के बाद किसानों को नई मक्का किस्मों और खेती संबंधी नवीनतम तकनीकों की जानकारी प्राप्त करने में कठिनाई हो सकती है. उन्होंने बताया कि बेगूसराय के पड़ोसी जिले खगड़िया में गंडक नदी के किनारे उत्पादित मक्का में सबसे अधिक स्टार्च पाया जाता है. उत्तर बिहार का सीमांचल, अंगांचल और मिथिलांचल देश का प्रमुख मक्का उत्पादन क्षेत्र हैं, जहां से प्रतिवर्ष करोड़ों टन मक्का देश-विदेश में निर्यात किया जाता है, जो किसानों के लिए आय का एक प्रमुख साधन है.
रंजन कुमार ने आगे कहा कि बेगूसराय के इस केंद्र ने किसानों को मक्का पौधरोपण की उन्नत तकनीकें प्रदान की थीं, जिससे लाखों एकड़ भूमि पर मक्का की खेती का क्षेत्रफल और प्रति एकड़ उत्पादन में वृद्धि हुई थी. इस केंद्र के माध्यम से किसानों को उन्नत किस्म के बीज भी उपलब्ध कराए जाते थे, जिसके स्थानांतरण के बाद किसानों को गुणवत्तापूर्ण बीज प्राप्त करने में परेशानी हो सकती है.
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उन्होंने यह भी आशंका जताई कि इस निर्णय के बाद मक्का उत्पादक किसानों को निजी कंपनियों पर निर्भर रहना पड़ सकता है, जिससे किसानों को आर्थिक नुकसान होने की संभावना है. साथ ही, बिहार में पहले से ही मक्का प्रसंस्करण की समस्या गंभीर बनी हुई है. ऐसे में इस केंद्र के स्थानांतरण से इस क्षेत्र में निवेश और विकास पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है.
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