इसी साल होने वाले महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में सोयाबीन और प्याज विपक्ष के लिए बड़े राजनीतिक औजार बन सकते हैं. दोनों के दाम के मुद्दे पर किसान सरकार से नाराज बताए जा रहे हैं. प्याज के कम दाम के खिलाफ बीते लोकसभा चुनाव में हम किसानों की नाराजगी को देख चुके हैं. प्याज बेल्ट की 14 लोकसभा सीटों में से 12 पर इंडिया गठबंधन और एक पर निर्दलीय को जीत मिली थी. अब विधानसभा चुनाव से पहले एक बार फिर दाम का मुद्दा गरमा गया है. वो भी एक नहीं बल्कि दो-दो फसलों का.
सोयाबीन के दाम के मुद्दे पर पहले से ही किसान नाराज हैं, क्योंकि उन्हें एमएसपी के मुकाबले लगभग एक हजार रुपये प्रति क्विंटल का कम दाम मिल रहा है. दूसरी ओर, प्याज जैसी राजनीतिक तौर पर बेहद संवेदनशील फसल का दाम जब किसानों को थोड़ा ठीक मिलना शुरू ही हुआ है तो सरकार उसे गिराने की कोशिश में जुट गई है. अब वो नेफेड और नेशनल कॉपरेटिव कंज्यूमर्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (एनसीसीएफ) के जरिए सिर्फ 35 रुपये किलो पर प्याज बेचने जा रही है. इससे नाराजगी और बढ़ गई है.
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महाराष्ट्र के किसान नेता और पूर्व सांसद राजू शेट्टी का कहना है कि सोयाबीन किसानों को सरकार की आयात नीति की वजह से प्रति एकड़ 50 हजार रुपये का नुकसान हो रहा है. इससे पूरे राज्य में सोयाबीन उत्पादकों में सरकार के खिलाफ गुस्सा है. दूसरी ओर, अब सरकार प्याज के दाम गिरा रही है. महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम अजित पवार और देवेंद्र फडणवीस किसानों से कुछ और बात करते हैं जबकि केंद्र उसके उलट फैसला ले लेता है. शेट्टी ने तंज कसा कि केंद्र सरकार में अजित पवार और देवेंद्र फडणवीस की कोई सुनवाई नहीं हो रही है. वरना सरकार 35 रुपये किलो प्याज बेचने का एलान नहीं करती.
सुप्रीम कोर्ट द्वारा तीन कृषि कानूनों को लेकर बनाई गई कमेटी के सदस्य रहे अनिल घनवट का कहना है कि किसानों को जिस कृषि उपज का दाम सही मिलता है उसे सरकार गिराने लग जाती है. लेकिन जिसका दाम कम मिल रहा होता है उससे होने वाले नुकसान की भरपाई के लिए सामने नहीं आती. सोयाबीन और प्याज के साथ ऐसा ही हो रहा है.
बाजार में इस समय प्याज का रिटेल प्राइस 55 से 60 रुपये किलो तक है, जबकि सरकार इसे 35 रुपये पर बेचने जा रही है. सीधे तौर पर कह सकते हैं कि सरकार के इस कदम की वजह से बाजार डिस्टर्ब होगा. इससे किसानों को आर्थिक नुकसान होगा. सरकार रिटेल में कम भाव पर बिक्री करने की बजाय ओपन ऑक्शन से सीधे मंडियों में प्याज बेचे.
घनवट का कहना है कि इस समय 40 रुपये किलो के थोक भाव पर प्याज बिक रहा है. ऐसे में किसानों को लगभग 4 लाख रुपये प्रति एकड़ मिलता है. अब अगर सरकार की कोशिशों से थोक भाव 20 रुपये किलो हो जाएगा तो लगभग 2 लाख रुपये प्रति एकड़ का नुकसान होगा. क्या किसानों की आय इस तरह से बढ़ेगी.
सरकार की नीतियों की वजह से ही 4892 रुपये प्रति क्विंटल की एमएसपी वाला सोयाबीन आज किसान सिर्फ 4000 रुपये प्रति क्विंटल के भाव पर बेचने के लिए मजबूर है. ऐसे में क्या किसान उन लोगों को वोट देगा जिनकी वजह से उन्हें नुकसान हो रहा है. आयात शुल्क बहुत कम नहीं होता तो सोयाबीन के दाम में इतनी गिरावट नहीं होती.
किसान नेता ने बताया कि सोयाबीन का उत्पादन विदर्भ, मराठवाड़ा और उत्तर महाराष्ट्र में होता है. जबकि प्याज सेंट्रल महाराष्ट्र में होता है. अगर दाम सही नहीं मिला तो सिर्फ इन दो फसलों का फैक्टर लगभग 100 सीटों पर असर डालेगा. राज्य में विधानसभा की 288 सीटें हैं. जिन किसानों को आर्थिक चोट पहुंच रही है वो माफी मांगने से नहीं मानेंगे. पिछले दिनों अजित पवार ने प्याज किसानों से माफी मांगते हुए कहा था कि प्याज एक्सपोर्ट पर बैन लगाना केंद्र की गलती थी.
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