महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) के प्रमुख राज ठाकरे ने पिछले दिनों महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में अकेले उतरने की घोषणा की है. शिवसेना (यूबीटी) प्रमुख उद्धव ठाकरे के चचेरे भाई राज ठाकरे का ऐलान भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) समेत पूरी महायुति गठबंधन की टेंशन बढ़ा सकता है. महाराष्ट्र में अक्टूबर-नवंबर में विधानसभा चुनाव होने हैं और विधानसभा में कुल 288 सीटें हैं. वहीं अब सवाल यह भी है कि क्या वाकई राज ठाकरे चुनाव में विपक्षियों को टक्कर दे सकते हैं या फिर मनसे को खबरों में रखने लिए यह ऐलान पार्टी के मुखिया की तरफ से किया गया है. एक नजर डालिए मनसे के अब तक के चुनावी रिकॉर्ड पर.
लोकसभा चुनाव में राज ठाकरे की पार्टी ने बीजेपी को समर्थन दिया था. अब जबकि पार्टी अकेले मैदान में उतरने की तैयारी कर रही है तो बाकी दलों की चुनौतियां बढ़ सकती हैं. वहीं विशेषज्ञ यह भी मानते हैं कि राज ठाकरे की पार्टी अभी तक उस दल में तब्दील नहीं हो सकी है जिसे वाकई 'किंगमेकर' का दर्जा दिया जा सके. राज ठाकरे ने साल 2006 में एमएनएस की स्थापना की थी. इसकी स्थापना के बाद से साल 2009 में पार्टी पहली बार विधानसभा चुनाव में उतरी थी. उस समय 'मराठी मानुस' के नारे के साथ 13 सीटें जीती थीं. हालांकि, इसके बाद के जितने भी चुनाव हुए, उनमें पार्टी को एक के बाद एक झटके लगे.
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साल 2014 में हुए विधानसभा चुनावों में एमएनएस ने सिर्फ दो सीटें ही जीती थीं. साल 2019 में तो यह संख्या घटकर बस एक सीट की रह गई. एमएनएस अब तक लोकसभा चुनाव में एक भी सीट नहीं जीत सकी है. साल 2019 और 2024 के लोकसभा चुनावों में पार्टी ने कोई उम्मीदवार ही नहीं उतारे. साल 2009 के विधानसभा चुनाव में एमएनएस को 5.17 फीसदी ही वोट मिले थे. साल 2014 में यह आंकड़ा घटकर 3.15 प्रतिशत और 2019 में 2.25 प्रतिशत ही रह गया. साल 2009 के लोकसभा चुनाव में एमएनएस को 4.1 प्रतिशत वोट मिले थे, जबकि 2014 में यह प्रतिशत घटकर 1.5 रह गया. वोट प्रतिशत में लगातार गिरावट ने पार्टी की स्थिति को कमजोर किया है. शायद इस वजह से ही राज ठाकरे इस बार अपनी रणनीति में बदलाव कर एक नई शुरुआत करना चाहते हैं.
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मनसे मुखिया राज ठाकरे ने कहा, 'विधानसभा चुनाव में 200 से 250 सीटों पर चुनाव लड़ेंगे.' गौरतलब है कि मनसे ने लोकसभा चुनावों में राज्य में सत्तारूढ़ महायुति को समर्थन दिया था. इसमें बीजेपी, मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना और उपमुख्यमंत्री अजित पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी शामिल है. लोकसभा चुनाव के दौरान एमएनएस और बीजेपी के बीच सीटों को लेकर लंबी चर्चा हुई थी. इसमें एमएनएस ने दो सीटों की मांग की थी जबकि बीजेपी एक सीट देने को तैयार थी. आखिरी में सहमति नहीं बन पाई और एमएनएस ने लोकसभा चुनाव नहीं लड़ने का निर्णय लिया.
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