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जानिए लोकसभा में क्‍या होती हैं स्‍पीकर की शक्तियां, क्‍यों बीजेपी और साथियों के लिए महत्‍वपूर्ण है पद  

जानिए लोकसभा में क्‍या होती हैं स्‍पीकर की शक्तियां, क्‍यों बीजेपी और साथियों के लिए महत्‍वपूर्ण है पद  

18वीं लोकसभा की बैठक की तैयारी के बीच एनडीए में बीजेपी के प्रमुख सहयोगी टीडीपी और जेडी(यू) के बीच अध्यक्ष पद के लिए होड़ मची हुई है. प्रोटेम या अस्थायी अध्यक्ष की तरफ से नए सदस्यों को शपथ दिलाने के बाद, स्‍पीकर को सदन का पीठासीन अधिकारी चुना जाता है. अनुच्छेद 93 के अनुसार सदन के शुरू होने के बाद 'जितनी जल्दी हो सके' उतनी जल्‍दी इनका चुनाव कर लेना चाहिए

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 संविधान में लोकसभा स्‍पीकर का पद बहुत महत्‍वपूर्ण होता है  संविधान में लोकसभा स्‍पीकर का पद बहुत महत्‍वपूर्ण होता है

18वीं लोकसभा का कार्यकाल शुरू होने में बस कुछ ही दिन बचे हैं और केंद्र में नई सरकार आ चुकी है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तीसरी बार केंद्र सरकार की अगुवाई कर रहे हैं लेकिन इस बार मामला थोड़ा अलग है. केंद्र में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की सरकार तो है लेकिन बिना पूर्ण बहुमत के. इस बार राष्‍ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए ) में दो नए दल भी हैं तेलगुदेशम पार्टी (टीडीपी) और नीतीश कुमार की जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू). दोनों ही दलों की मांग है कि उन्‍हें लोकसभा में स्‍पीकर का पद दिया जाए. जानिए आखिर स्‍पीकर का पद इतना महत्‍वपूर्ण क्‍यों है और इस पद के पास कितनी शक्तियां होती हैं. 

कब तक हो जाना चाहिए चुनाव 

18वीं लोकसभा की बैठक की तैयारी के बीच एनडीए में बीजेपी के प्रमुख सहयोगी टीडीपी और जेडी(यू) के बीच अध्यक्ष पद के लिए होड़ मची हुई है. प्रोटेम या अस्थायी अध्यक्ष की तरफ से नए सदस्यों को शपथ दिलाने के बाद, स्‍पीकर को सदन का पीठासीन अधिकारी चुना जाता है. संसदीय लोकतंत्र में स्‍पीकर की भूमिका बहुत अहम होती है. भारतीय संविधान में स्‍पीकर और डिप्‍टी स्‍पीकर के पदों का नियम है. अनुच्छेद 93 के अनुसार सदन के शुरू होने के बाद 'जितनी जल्दी हो सके' उतनी जल्‍दी इनका चुनाव कर लेना चाहिए. 

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कैसे होता है चुनाव 

स्‍पीकर का चुनाव सदन में साधारण बहुमत से होता है. सदन के भंग होने के साथ ही उनका कार्यकाल भी खत्‍म हो जाता है, जब तक कि अध्यक्ष इस्तीफा न दे दे या उससे पहले पद से हटा न दिया जाए. संविधान के अनुच्छेद 94 के अनुसार स्‍पीकर के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव 14 दिनों के नोटिस पर लाया जा सकता है. इसके अलावा, सदन के किसी भी अन्य सदस्य की तरह अध्यक्ष को भी अयोग्यता का सामना करना पड़ सकता है.

क्‍या होती है योग्‍यता 

लोकसभा का बनने के लिए कोई खास योग्यता नहीं है यानी कोई भी सदस्य विचार किए जाने का हकदार है. हालांकि अध्यक्ष का पद सदन के बाकी सदस्यों से अलग होता है. सदन में स्‍पीकर की चेयर की जगह से लेकर उसके द्वारा निर्णायक मत देने तक, सदन के कामकाज का प्रभावी रूप से प्रभारी होने से लेकर सदस्यों की अयोग्यता से निपटने जैसे महत्वपूर्ण संवैधानिक कार्य करने तक - अध्यक्ष साफतौर पर लोकसभा के पीठासीन अधिकारी के रूप में पदस्थ होते हैं. स्‍पीकर की सैलरी भारत की संचित निधि से लिया जाता है, जबकि बाकी सांसदों का वेतन सदन की तरफ से पास कानून के आधार पर लिया जाता है. 

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कैसे होता है संचालन 

अध्यक्ष सदन के बारे में बेहतर जानकारी रखते हुए यह तय करते हैं कि सदन का संचालन कैसे किया जाए. सरकारी कामकाज का संचालन अध्यक्ष की तरफ से सदन के नेता के परामर्श से तय किया जाता है. सदस्यों को प्रश्न पूछने या किसी मामले पर चर्चा करने के लिए अध्यक्ष से पहले मंजूरी लेने की जरूरत होती है. सदन के कामकाज के लिए नियम और प्रक्रियाएं हैं लेकिन इन नियमों का पालन सुनिश्चित करने और प्रक्रियाओं को चुनने में स्‍पीकर के पास बहुत विस्‍तृत शक्तियां हैं. यह अध्यक्ष की निष्पक्षता को सदन में विपक्ष की बात रखने के लिए एक महत्वपूर्ण जांच और संतुलन बनाता है.  

स्‍पीकर की शक्तियां 

कौन सा सांसद किस तरह का सवाल पूछेगा, यह भी स्‍पीकर तय करता है. साथ ही सदन की कार्यवाही को कैसे प्रकाशित किया जाए यह भी स्‍पीकर ही तय करता है. अध्यक्ष के पास उन टिप्पणियों को पूरी तरह या आंशिक रूप से हटाने का अधिकार है, जो असंसदीय समझी जाती हैं. सत्तारूढ़ दल के खिलाफ आलोचनात्मक टिप्पणियों को प्रकाशित नहीं किया जा सकता है, अगर अध्यक्ष उन्हें हटाने का फैसला करता है. 

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जब सदन में सत्ता पक्ष की सीटें कम लगती हैं तो अध्यक्ष विभाजन के अनुरोध को नजरअंदाज कर सकते हैं. साथ ही वह ध्वनि मत से विधेयक को भी पास करा सकते हैं.  

लोक सभा में प्रक्रिया और कार्य संचालन के नियमों के अनुसार अगर स्‍पीकर को कोई दावा 'अनावश्यक रूप से किया गया' लगता है तो उन्हें क्रमशः 'हां' के पक्ष में और 'नहीं' के पक्ष में सदस्यों से अपने स्थान पर खड़े होने और निर्णय लेने के लिए कहना चाहिए. 
 
ऐसे केस में मतदाताओं के नाम दर्ज नहीं किए जाएंगे. मत विभाजन के आधार पर वोटिंग का रिकॉर्ड आने वाले समय के लिए महत्वपूर्ण होता है. एक सांसद को असहमति दर्ज करने और अपने निर्वाचन क्षेत्र के जनादेश को दिखाने का मौका मिलता है. 

अविश्वास प्रस्ताव 

स्पीकर की निष्पक्षता विपक्ष पर सबसे ज्‍यादा तब असर डालती है जब सरकार के खिलाफ़ अविश्वास प्रस्ताव लाया जाता है. साल 2018 में जब वाईएसआरसीपी और टीडीपी ने अविश्वास प्रस्ताव के लिए नोटिस दिया था, तब स्पीकर सुमित्रा महाजन ने प्रस्ताव को स्वीकार करने और वोटिंग के लिए रखने से पहले सदन को कई बार स्थगित किया था. 

वोट देने का अधिकार
 
संविधान के अनुच्छेद 100 के अनुसार, जो सदनों में मतदान के बारे में बताता है, राज्यसभा के सभापति या लोकसभा के अध्यक्ष या इस तरह से कार्य करने वाला कोई भी व्यक्ति पहले तो वोट नहीं देगा, लेकिन वोटों की बराबरी की स्थिति में उसे वोट देने का अधिकार होगा.' परंपरागत रूप से अध्यक्ष सरकार के पक्ष में मतदान करता है. 

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महत्‍वपूर्ण शक्तियां 

विपक्ष के लिए संविधान की दसवीं अनुसूची के तहत स्‍पीकर की शक्ति की वास्तविकताएं शायद सदन के संचालन से कहीं ज्‍यादा महत्वपूर्ण हैं.  संविधान में 50वें (संशोधन) अधिनियम, 1985 के जरिए पेश किया गया दसवीं अनुसूची या दलबदल विरोधी कानून सदन के स्‍पीकर को किसी पार्टी से 'दलबदल' करने वाले विधायकों को अयोग्य ठहराने की शक्ति देता है. सन् 1992 में किहोटो होलोहन बनाम जाचिल्हु के ऐतिहासिक मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने अध्यक्ष को दी गई शक्ति को बरकरार रखा और कहा कि केवल अध्यक्ष का अंतिम आदेश ही न्यायिक समीक्षा के अधीन होगा. 

दलबदल सदन में संख्या को बदल सकता है और सरकार को गिरा सकता है. अगर अध्यक्ष समय पर कार्रवाई करते हैं और ऐसे सदस्यों को अयोग्य ठहराते हैं, तो नई सरकार के पास बहुमत नहीं हो सकता है. हालांकि अयोग्यता याचिकाओं पर निर्णय लेने में देरी दसवीं अनुसूची को प्रभावित कर सकती है. 

साल 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्‍ट्र विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर को निर्देश दिया था कि वह शिवसेना के उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे गुट के विधायकों के खिलाफ जल्द से जल्द अयोग्यता की कार्यवाही शुरू करें. उस समय, याचिकाएं डेढ़ साल से अधिक समय तक लंबित रहीं, जिससे उद्धव के नेतृत्व वाली सरकार गिर गई. साल 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया था कि विधानसभाओं और लोकसभा के अध्यक्षों को असाधारण परिस्थितियों को छोड़कर तीन महीने के भीतर अयोग्यता याचिकाओं पर फैसला करना चाहिए.