दो दिन पहले शंभू बॉर्डर पर उस समय हाई वोल्टेज ड्रामा देखा जब आंदोलन पर बैठे किसान और स्थानीय लोगों में झड़प हो गई. इस विवाद के बाद किसान संगठनों ने सरकार से मांग की है कि उन्हें दिल्ली में कोई एक स्थान दिया जाए जहां वे आंदोलन कर सकें. सरकार से यह मांग संयुक्त किसान मोर्चा (गैर-राजनीतिक) ने उठाई है. किसानों का कहना है कि अगर सरकार उनसे सुलह के लिए बातचीत नहीं करती है, तो उन्हें दिल्ली में कोई जगह दी जाए जहां वे अपने आंदोलन को जारी रख सकें.
किसान संगठन के नेताओं ने कहा कि किसानों के पैनल और मंत्रियों के नुमाइंदों के बीच तीन बार मीटिंग हुई, लेकि वह बेनतीजा रही. शंभू बॉर्डर पर 18 फरवरी से ही गतिरोध जारी है क्योंकि किसान संगठनों और केंद्र सरकार के बीच बातचीत का कोई नतीजा नहीं निकल पाया है. किसान नेता मीडिया कर्मियों को मौजूदा स्थिति दिखाने के लिए शंभू पुल पर ले गए. एक किसान नेता काका सिंह ने 'दि ट्रिब्यून' को बताया, "अर्धसैनिक बलों के जवानों को देखिए. हमें पुल के पास आते देख उन्होंने मोर्चा संभाल लिया है. हाइवे पर लोहे की कीलें गाड़ दी गई हैं और किसानों के प्रवेश को रोकने के लिए बड़े-बड़े पत्थर रख दिए गए हैं."
किसान ने इस बात पर जोर दिया कि मौजूदा नाकाबंदी किसानों की वजह से नहीं बल्कि हरियाणा सरकार की कार्रवाई का नतीजा है. काका सिंह ने कहा, "चूंकि नई सरकार ने कामकाज संभाला है और विपक्ष मजबूत हुआ है, इसलिए हमें उम्मीद है कि सरकार बातचीत शुरू करेगी, किसानों की चिंताओं का समाधान करेगी और न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर कानूनी गारंटी देगी."
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शंभू बॉर्डर के प्रदर्शन स्थल पर आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान यूनियन नेताओं ने सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी (AAP) पर भी निशाना साधा. उन्होंने घग्गर में अवैध रेत खनन में शामिल रेत माफिया के कथित सदस्यों पर रविवार को अराजकता फैलाने और मंच पर कब्जा करने का प्रयास करने का आरोप लगाया. किसान नेता गुरमनीत सिंह मंगत ने कहा कि चल रहे विरोध प्रदर्शन ने रेत माफिया की गतिविधियों को काफी प्रभावित किया है. यह इलाका, जो पहले अवैध रेत खनन के लिए इस्तेमाल किया जाता था, अब अंबाला जाने वाले यात्रियों के लिए एक मुख्य मार्ग बन गया है. मंगत ने आगे दावा किया कि प्रदर्शन में गड़बड़ी करने वाले लोगों को स्थानीय AAP विधायक गुरलाल सिंह घनौर का समर्थन प्राप्त है.
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