पराली के लिए NASA के सैटेलाइट से देख रही सरकार, मगर फसल नुकसान का आकलन पटवारी भरोसे

पराली के लिए NASA के सैटेलाइट से देख रही सरकार, मगर फसल नुकसान का आकलन पटवारी भरोसे

जब सरकार पराली जलाने वाले खेतों का पता लगाने के लिए नासा की विदेशी सैटेलाइट का इस्तेमाल करती है और किसानों को पकड़ लेते है तो फिर उसी किसान की जब फसल का नुकसान हो जाता है तो उसके आंकलन के लिए ये सारी तकनीक और सैटेलाइट कहां होती हैं? इसी सवाल को जब सदन में उठाया गया तो कृषि मंत्रालय से इसका जवाब आया है.

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पराली के लिए NASA के सैटेलाइट से देख रही सरकार, मगर फसल नुकसान का आकलन पटवारी भरोसेप्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के क्लेम में कितनी तकनीक का इस्तेमाल?

देश के केंद्र में बैठे मंत्रियों, कृषि सचिवों और पर्यावरण के तथाकथित रक्षकों को जब दिल्ली-एनसीआर में धुआं लगता है तो उनकी उंगलियां और तर्राई आंखें सीधे किसानों की तरफ ही जाती हैं. इनके फरमानों में दिल्ली के सारे प्रदूषण का 'मुख्य आरोपी' अन्नदाता किसान ही होता है. आरोप लगाए जाते हैं कि दिल्ली से सटे हरियाणा-पंजाब के किसानों की जलाई पराली से दिल्ली का दम घुटता है. अब इसकी रोकथाम के लिए सरकार का पूरा अमला हाइपर-एक्टिव हो जाता है और तत्परता तो ऐसी दिखाई जाती है कि पराली जलाने वाले किसानों को धर-दबोचने के लिए पुलिस प्रशासन से लेकर अंतरिक्ष में भ्रमण कर रहीं सैटेलाइट तक की मदद ली जाती है. मगर जब बात किसानों की नुकसान हुई फसल का मुआवजा देने की आती है तब सरकार की ना तो ये सैटेलाइट दिखती हैं और ना ही बड़े बाबुओं का आमला. अब सदन में भी सरकार से जब यही सवाल किया गया तो जवाब भी 'फसल बीमा की शर्तों' की तरह ही मिला, एक दम गोलमोल.

पराली की घटनाओं के लिए NASA की सैटेलाइट

ये बात जानकर आप भी हैरान होंगे कि सरकार को जब पराली जलाने वाले खेतों का पता लगाना होता है तो वह किसानों को पकड़ने के लिए ना सिर्फ पूरे प्रशासन को एक पैर पर दौड़ा देती है बल्कि ISRO ही नहीं बल्कि अमेरिका की स्पेस एजेंसी NASA तक की सैटेलाइट तक किराए पर ले लेती है, ताकि पराली जलाने वाले खेतों की एकदम क्लियर तस्वीरें मिल सकें. बता दें कि पब्लिक प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध जानकारी के मुताबिक भारत सरकार नासा की कम से कम 3 सेटैलाइट से मोटा पैसा खर्च करके ये डाटा मंगवाती है. इनमें नासा की सुओमी एनपीपी सैटेलाइट, सुओमी नेशनल पोलर-ऑर्बिटिंग पार्टनरशिप (NPP) सैटेलाइट और एक्वा सैटेलाइट से सरकार पराली जलाने की घटनाओं का डाटा लेती है. 

अब सवाल ये बनता है कि जब पराली की घटनाओं का पता लगाने के लिए सरकार इतनी हाई-लेवल तकनीक को विदेशों से तक उधार पर ले लेती है, तो यही तत्परता और नियत किसानों को उनकी फसलों के नुकसान का आकलन करने में क्यों नहीं दिखाई जाती. बात केवल महंगी तकनीत तक ही सीमित नहीं है, बल्कि 'प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना' की शर्तें ही इतनी मुश्किल हैं कि किसानों को अपनी नष्ट हो चुकी फसल का मुआवजा लेना ही किसी जंग के बराबर हो जाता है.

कितनी कठिन हैं फसल बीमा योजना की शर्तें

जब फसल बीमा योजना का प्रीमियम भरने की बात आती है तो हर एक किसान को अलग-अलग प्रीमियम देना होता है. लेकिन जब इन्हीं किसानों को उनकी फसलों का मुआवजा देने की बात आती है तो सरकार एक किसान के खेत को यूनिट मानने से इनकार कर देती है. दरअसल, नियम ये है कि क्लेम देने के लिए केवल एक खेत को इंश्योरेंस यून‍िट मानने की बजाय पटवार मंडल या पूरे गांव को एक यूनिट माना जाता है. यानी कि अगर एक सिर्फ एक या दो-चार किसानों की फसलों का नुकसान हुआ तो क्लेम नहीं मिल पाएगा. जब तक पूरे पटवार मंडल या गांव की फसलें नष्ट नहीं हो जातीं, तब तक फसल बीमा का क्लेम नहीं मिल सकता.

इसी तरह अगर किसान की फसल का नुकसान हुआ है तो उसे 72 घंटे के अंदर बीमा कंपनी को सूचना देना होगा वरना क्लेम नहीं मिलेगा. ऊपर से बीमा कंपनी को सूचित करने के लिए केवल एक मांत्र टोल-फ्री नंबर ही है, जिसपर सूचना देना अपने आप में बहुत मुश्किल काम है. ना ही बीमा कंपन‍ियों का क‍िसी भी ज‍िले या ब्लॉक में ऑफिस मिलता है, जहां किसान जाकर सूचित कर सकें.

वहीं जब फसल के नुकसान का आकलन करने की बात आती है तो सरकार यहां कोई तकनीक का इस्तेमाल नहीं करती, बल्कि पूरी तरह से सरकारी कर्मचारियों के जिम्मे ये काम सौंप देती है. इससे भी बड़ी दिक्कत ये है कि फसल नुकसान का आकलन करने के लिए कृषि विभाग के अधिकारियों के बजाय पटवारी को काम पर लगाया जाता है, जो कि कृषि का विशेषज्ञ भी नहीं होता और फसल नुकसान का सही आकलन करने में असमर्थ होता है.

फसल आकलन में कितनी तकनीक का इस्तेमाल?

जब लोकसभा में इसी बात को लेकर सवाल उठा तो सरकार की तरफ से कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री रामनाथ ठाकुर ने सदन में इसका जवाब दिया. ठाकुर ने अपने जवाब में बताया कि कृषि एवं किसान कल्याण विभाग ने महालनोबिस राष्ट्रीय फसल पूर्वानुमान केंद्र (MNCFC) के माध्यम से विभिन्न सरकारी और निजी एजेंसियों को शामिल करके, सैटेलाइट या रिमोट सेंसिंग डेटा जैसी तकनीक का उपयोग किया जा रहा है और समय पर पारदर्शी तरीके से फसल के अनुमान का पायलट अध्ययन किया है.

सरकार ने बताया कि इस पायलट अध्यन से मिले निष्कर्षों के आधार पर और हितधारकों और तकनीकी परामर्श के साथ विचार-विमर्श के बाद, खरीफ 2023 से धान और गेहूं की फसलों के लिए YES-TECH की शुरुआत की गई है. YES-TECH यानी तकनीकी पर आधारित उपज अनुमान प्रणाली. सरकार ने फसल नुकसान के आकलन में सुधार लाने और किसानों को समय पर बीमा क्लेम का भुगतान करने के लिए पारंपरिक फसल कटाई प्रयोगों (सीसीई) पर आधारित उपज आकलन के साथ तकनीकी आधारित उपज आकलन को लागू किया है. इस पहल के अंतर्गत फसल अनुमान का 30% तक काम अनिवार्य रूप से यस-टेक को दिया गया है.

जाहिर है कि किसानों की फसल नुकसान का आकलन करने के लिए सरकार सैटेलाइट या रिमोट सेंसिंग डेटा पर आधारित YES-TECH प्रणाली को लागू किया है. मगर इतने बड़े देश में इतनी बड़ी कृषि को कवर करने वाली बीमा योजना के क्लेम का सिर्फ 30 प्रतिशत जिम्मा ही इस YES-TECH प्रणाली से कराया जा रहा है.  

कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री ने लोकसभा में बताया कि खरीफ 2023 में, सभी कार्यान्वयन राज्यों ने YESTECH का उपयोग करके क्लेम की गणना और भुगतान सफलतापूर्वक पूरा कर लिया है और किसी भी हितधारक से कोई विवाद की सूचना नहीं मिली है. इससे योजना और प्रक्रिया में पारदर्शिता और दक्षता बढ़ गई है.

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