Distressed Monument : राणा सांगा की खातिर इस गांव को रहता है राष्ट्रवादी सरकार बनने का इंतजार
इन दिनों पूरे देश में राष्ट्रवाद यानी Nationalism की चर्चा जोरों पर है. चुनावी माहौल में राष्ट्रवाद का मुद्दा राजस्थान के एक गांव के लिए खासी अहमियत रखता है. भरतपुर में खानवा गांव के लोगों काे राष्ट्रवाद की अलख जगाने वाले राणा सांगा की विरासत संजोने के लिए राजस्थान में राष्ट्रवादी सरकार बनने की दरकार रहती है.
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खानवा युद्ध की यादों को भरतपुर के खानवा गांव में सहेजा गया है राणा सांगा स्मारक
विदेशी आक्रांताओं से लोहा लेकर भारत में राष्ट्रवाद के विचार को आगे बढ़ाने में राजस्थान के राजाओं की अहम भूमिका रही है. इनमें मेवाड़ के राजा राणा सांगा का स्थान सर्वोपरि है. लगभग 500 साल पहले राणा सांगा ने खानवा के युद्ध में बाबर से इस कदर लोहा लिया कि वह युद्ध से ही तौबा करने को मजबूर हो गया. साल 1527 में लड़ा गया यह युद्ध इतिहास में जितना प्रसिद्ध है, उससे कहीं ज्यादा बड़ा स्थान, राणा सांगा के पराक्रम को इतिहास में मिला. इसकी वजह राणा सांगा के शरीर पर लगे 80 घाव थे, जिनके कारण शरीर पूरी तरह से छलनी होने के बावजूद उन्होंने बाबर की सेना को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया था. धौलपुर-भरतपुर National Highway पर स्थित खानवा गांव आज भी राणा सांगा के इस पराक्रम का गवाह है. सरकार ने राष्ट्रवाद की जड़ों को मजबूत करने वाले राणा सांगा के पराक्रम से भावी पीढ़ी को रूबरू कराने के लिए खानवा के युद्ध की विरासत को भली भांति संजोने का काम किया. मगर, विडंबना सिर्फ इस बात की है कि Govt Servants अब इस विरासत को संवारने की जिम्मेदारी नहीं निभा पा रहे हैं.
उजड़े चमन की दास्तान
खानवा गांव में प्रवेश करते ही शानदार स्कूल, पानी की बड़ी टंकी और दुरुस्त सड़कों के दोनों ओर गांव वालों के आलीशान मकान, सैलानियों का स्वागत करते हैं. यह नजारा देखकर समझा जा सकता है कि इतिहास में दर्ज एक वीर सपूत का नाम इस गांव से जुड़े होने मात्र से, गांव वालों को बेहतर Civic Amenities मयस्सर हुई हैं. गांव की समृद्धि में इस विरासत ने इजाफा ही किया है.
गांव से खेतों की ओर से जाने पर, परकोटे दार एक विशालकाय दीवार दिखती है, जिसकी हद एक ऊंची पहाड़ी को घेरने तक सीमित है. इस पहाड़ी के शीर्ष पर काले रंग की 3 भव्य प्रतिमाएं नुमांया होती हैं. घोड़े पर सवार इन मूर्तियों के हाथ आसमान की ओर है और इनके हाथों में महज 15 साल पहले थमाई गई तलवार एवं खंजर अब नदारद हैं. इस दृश्य के साथ ही राणा सांगा के उजड़े चमन की दास्तान शुरू होती है और पहाड़ी के शीर्ष पर पहुंचने तक, इस दास्तान के स्याह पन्नों की परतें भी प्याज के छिलकों की तरह उधड़ने लगती हैं.
500 साल बनाम 15 साल
खनवा गांव में एक तरफ 500 साल पहले हुए मशहूर युद्ध की विरासत के दर्शन होते हैं, वहीं दूसरी तरफ भ्रष्ट सरकारी तंत्र की गहरी हो चुकी जड़ों का भी दीदार होता है. सही मायने में यह गांव 500 साल की विरासत को संजोने और सरकारी तंत्र को ढोने के लिए विवश है. इस गांव में राणा सांगा की विरासत को संजोने की कहानी महज डेढ़ दशक पहले 2008 में शुरू हुई, जब राष्ट्रवाद की पुरजोर वकालत करने वाली भाजपा की राजस्थान में वसुंधरा राजे सरकार थी.
सरकार ने खानवा की पहाड़ी पर राणा सांगा की वीरगाथा को बड़े ही करीने से उकेरने का काम किया. पहाड़ी को चारों ओर से परकोटे से घेर कर इसे आधुनिक पर्यटन सुविधाओं से लैस किया गया. पहाड़ी पर पहुंचने के रास्ते में दर्जन भर कला दीर्घाएं बनाकर खानवा युद्ध से जुड़ी राणा सांगा की यादों को ताजा करने वाली बेशकीमती कलाकृतियां लगाई गई. इन्हें शानदार फसाड लाइटिंग से रौशन किया गया.
आज आलम यह है कि इन कला दीर्घाओं के आधे दरवाजों के ताले टूट गए हैं, पत्थर और कैनवास पर उकेरी गई Oil Paintings टूट चुकी हैं. इतना ही नहीं, रात के समय पूरी पहाड़ी को दूधिया रोशनी से रौशन करने वाली लाईटों के अब टूटे फूटे अवशेष ही बचे हैं. हद पार तो तब होती है, जब पहाड़ी पर ऊपर पहुंच कर राणा सांगा और उनके सिपहसालार राजा हसन खां मेवाती एवं राजा मेदनी राय की तलवारें भी उनकी मूर्तियों से गायब कर दी गई हैं. महज 15 सालों में इस विरासत स्थल की जो बदहाली हुई है, वह सरकारी तंत्र के भ्रष्टाचार का ज्वलंत प्रमाण है.
होता है इंतजार कि बदले सरकार
खानवा गांव का नाम इतिहास के पन्नों में दर्ज होने के कारण इस गांव के लोग गौरवान्वित महसूस करते हैं. हालांकि गांव वालों की यह अनुभूति स्थाई नहीं रह पाती है. इसके पीछे की मूल वजह, राष्ट्रवाद के प्रति सरकारों की सोच और इस सोच के मुताबिक सरकारी कर्मचारियों का रवैया है.
किसान तक ने राजस्थान में इलेक्शन कारवां के दौरान इस गांव में बिखरी पड़ी राणा सांगा की विरासत का जायजा लिया. इस दौरान इतिहास की इस धरोहर के साथ हो रहे भद्दे मजाक के बारे में गांव के शिक्षक राजेन्द्र सिंह ने किसान तकबताया कि पिछले 5 साल से राज्य में कांग्रेस की सरकार थी. उन्होंने बताया कि जैसे ही राज्य में कांग्रेस की सरकार आती है, तभी इस विरासत स्थल के दुर्दिन शुरू हो जाते हैं.
उन्होंने बताया कि 2008 में भाजपा सरकार ने अपना कार्यकाल पूरा करने से पहले इस विरासत स्थल को बनवाया था. इसके बाद 2013 तक कांग्रेस सरकार रही, उस दौरान इसके रखरखाव पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया. इसके बाद फिर भाजपा सरकार बनने पर 2015 में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत,इस गांव में राष्ट्रवाद के स्मृति चिन्ह देखने आए थे. उस समय इसकी टूट फूट को दूर कर दिया गया था. इसके बाद 2018 में फिर कांग्रेस सरकार बनने पर इस धरोहर को सरकारी उपेक्षा का शिकार होना पड़ा. सिंह ने कहा कि राजस्थान में अब पुन: भाजपा की सरकार बनी है. गांव वालों को उम्मीद है कि इस पावन स्थल के दिन फिर बहुरेंगे.