ब्रिटेन में कोरोना का टीका बनाने वाली कंपनी AstraZeneca ने हाल ही में वहां की अदालत में स्वीकार किया है कि कोरोना के टीके के कारण Blood Cells में थक्का बनने की दुर्लभ घटनाएं हुई हैं. गौरतलब है कि भारत सहित दुनिया के तमाम देशों में कोरोना काल के बाद अचानक Brain and Heart Stroke से युवाओं की मौत होने के मामले लगातार सामने आ रहे हैं. इसके पीछे की वजह रक्त कोशिकाओं में खून का थक्का बनना बताई गई है. इससे कोरोना की वैक्सीन का दुष्प्रभाव होने की आशंकाओं ने भी जन्म लिया. ताजा मामले में नई बात यही है कि कोरोना का टीका विकसित करने वाली ब्रिटिश फार्मा कंपनी ने पहली बार अदालत में स्वीकार किया है कि टीका लगने के बाद खून थक्का बनने के Rare Incident हुए हैं. इसके साथ ही भारत में भी कोरोना वैक्सीन के प्रभावों पर सवाल उठाने वालों ने एक बार फिर अपने दावों की परतें उधेड़ना शुरू कर दिया है.
कोरोना से साल 2020-21 में सबसे ज्यादा प्रभावित हुए ब्रिटेन की फार्मा कंपनी एस्ट्राजेनेका ने कोरोना का टीका विकसित किया था. इस टीके का उत्पादन भारत की फार्मा कंपनी Serum Institute of India ने Covishield के नाम से किया था. भारत में कोविशील्ड की ही सबसे ज्यादा 175 करोड़ डोज और कोवैक्सीन टीके की 36 करोड़ डाेज लगी थी.
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इस प्रकार के सभी 51 मामलों में कुल 100 मिलियन पाउंड यानी लगभग 1000 करोड़ रुपये का हर्जाना मांगा गया है. स्कॉट के मामले में सुनवाई के दौरान एस्ट्राजेनेका ने टीका के कारण दुर्लभ मामलों में खून का थक्का बनने की बात स्वीकार की है. साथ ही कंपनी ने यह दलील भी दी है कि टीकाकरण से 60 लाख लोगों को कोरोना संक्रमण से जीवनदान भी मिला है. इस मामले के साथ ही भारत में भी vaccination Drive के असर पर बहस तेज हो गई है.
कोरोना पर चर्चाओं का दौर शुरू होने के साथ ही वेद विज्ञानी डॉ शेषनारायण वाजपेई ने दावा किया है कि वह भारत सरकार को कोरोना की पहली लहर शुरू होने के पहले ही इस वायरस के महामारी का रूप लेने के बारे में जनवरी 2020 से आगाह कर रहे हैं. वाराणसी स्थित BHU से ज्योतिष एवं वेद विज्ञान में डॉक्टरेट उपाधि धारक डा वाजपेई का कहना है कि वह मौसम जनित प्राकृतिक आपदाओं, भूकंप और आतंकवादी घटनाओं के पूर्वानुमान सरकार तक पिछले कुछ सालों से नियमित तौर पर साझा कर रहे हैं. उनका दावा है कि वह प्रधानमंत्री कार्यालय, मौसम विभाग और पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के साथ वेद विज्ञान पर आधारित अपने पूर्वानुमान हर महीने साझा करते हैं.
इस कड़ी में उन्होंने 19 मार्च को ईमेल के जरिए PMO काे कोरोना वैक्सीन के असर से वायरस का संक्रमण कम होने के बजाय बढ़ने का पूर्वानुमान व्यक्त किया था. उन्होंने वेद विज्ञान के हवाले से सुझाव दिया था कि महामारी की कोई दवा नहीं बनाई जा सकती है. महामारी अपने समय से प्रारंभ होती है और अपने समय से ही समाप्त होती है. उनकी दलील है कि इस तरह की महामारी जनित आपदा के पीछे समय की गति ही एकमात्र कारण है.
उनका कहना है कि कोरोना के संबंध में उनके पूर्वानुमान को लेकर जब पीएमओ या किसी मंत्रालय की तरफ से उनसे कोई संपर्क नहीं किया गया, तब उन्होंने यह जानकारी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) प्रमुख मोहन भागवत के साथ भी ईमेल से साझा की. इस पर RSS की पर्यावरण इकाई के प्रमुख गोपाल आर्य ने डाॅ वाजपेई को फोन करके उनसे महामारी से जुड़े Method of Prediction के बारे विस्तार से चर्चा की थी. हालांकि इसके बाद भी सरकार की ओर से इस मामले में उनसे किसी ने कोई संपर्क नहीं किया.
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डॉ वाजपेई के दावों पर कोई प्रतिक्रिया व्यक्त करने से बचते हुए दिल्ली स्थित राम मनोहर लोहिया अस्पताल के पूर्व सर्जन डाॅ अरुण पटेल ने कहा कि यह मानना पूरी तरह से सही नहीं है कि किसी महामारी से बचने के लिए टीका बनाना व्यर्थ की कवायद है. डॉ पटेल ने कहा कि किसी भी टीके का असर देश, काल और परिस्थितियों के मुताबिक अलग अलग होता है.
उन्होंने कहा कि कोरोना के टीके के असर की ही अगर बात की जाए तो भारत में इसके Side Effect सामने आने की दर महज 0.5 प्रतिशत रही. टीका बनाने वाली कंपनी की ओर से पहले ही बता दिया गया था कि टीका लगने के बाद उन लोगों को बुखार आने सहित अन्य समस्याएं हो सकती हैं, जिनके शरीर का मिजाज टीका के लिए पूरी तरह अनुकूल नहीं है. ऐसा हुआ भी, क्योंकि हर व्यक्ति के शरीर का विन्यास अलग अलग होता है. डॉ पटेल ने दलील दी कि टीका के साइड इफेक्ट दिखने की दर 10 लाख में से एक व्यक्ति में रही. यह सामान्य दर है और इसके आधार पर यह नहीं कहा जा सकता है कि टीके से महामारी फैलने का खतरा है. हालांकि डॉ पटेल ने स्वीकार किया कि उन्होंने खुद टीका नहीं लगवाया है, क्योंकि उन्हें अपने शरीर के लिए टीका लगवाना जरूरी नहीं लगा. एक डाक्टर होने के नाते वह इस बात का फैसला करने में सक्षम हैं कि उनके अपने शरीर के लिए कौन सी दवा सही है.
वहीं, लखनऊ स्थित अवध अस्पताल के न्यूरो सर्जन डॉ अभिनव गुप्ता का कहना है कि इस तरह की महामारी के समय टीकाकरण, बचाव का सामान्य एवं जरूरी उपाय है. उन्होंने कहा कि Modern Science हो या वेद विज्ञान, किसी भी दवा या टीका के साइड इफेक्ट की हकीकत से कोई इंकार नहीं कर सकता है. इसलिए बहुत कम मात्रा में साइड इफेक्ट की आशंका मात्र को देखते हुए दवा या टीका बनाने से पीछे हटना, कतई समझदारी नहीं है. डॉ गुप्ता ने कहा कि जहां तक कोरोना के टीके के साइड इफेक्ट का सवाल है तो इसके शोध की लंबी प्रक्रिया है. इस दिशा में भारत सहित दुनिया भर में शोध चल रहे हैं और इनके सटीक परिणाम मिलने में कुछ साल लगेंगे.
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